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'''पैंगोलिन''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Pangolin'') जिसे 'पंगोलीन' या 'वज्रशल्क' के नाम से भी जाना जाता है, फोलिडोटा गण का स्तनधारी प्राणी है। इसके शरीर पर केरोटिन के बने शल्कनुमा संरचना होती है जिससे यह अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। यह [[अफ़्रीका]] और [[एशिया]] में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसे [[भारत]] में सल्लू साँप भी कहते हैं। इनके निवास वाले वन शीघ्रता से काटे जा रहे हैं और अंधविश्वासी प्रथाओं के कारण इनका अक्सर शिकार भी करा जाता है, जिसकी वजह से पैंगोलिन की सभी जातिया अब संकटग्रस्त मानी जाती हैं और उन सब पर विलुप्ति का ख़तरा मंडरा रहा है।
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==शांत और शर्मिला जीव==
 
==शांत और शर्मिला जीव==
 
सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि इस जानवर से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। ये जानवर बेहद शर्मिला होता है और इंसानों की नजरों में आने से पहले ही भाग लेता है। पैंगोलिन अपना आशियाना ज्‍यादातर जमीन के नीचे बिल बनाकर या फिर सूखे और खोखले हो चुके पेड़ों में बनाता है। लेकिन पैसों के लालच में तस्‍कर इसकी जान को नहीं बख्‍शते हैं।
 
सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि इस जानवर से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। ये जानवर बेहद शर्मिला होता है और इंसानों की नजरों में आने से पहले ही भाग लेता है। पैंगोलिन अपना आशियाना ज्‍यादातर जमीन के नीचे बिल बनाकर या फिर सूखे और खोखले हो चुके पेड़ों में बनाता है। लेकिन पैसों के लालच में तस्‍कर इसकी जान को नहीं बख्‍शते हैं।
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10:36, 19 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण

पैंगोलिन
पैंगोलिन
जगत जंतु
संघ रज्जुकी (Chordata)
वर्ग स्तनधारी (Mammalia)
गण फ़ोलीडोटा (Pholidota)
कुल मैनिडाए (Manidae)
संबंधित लेख विश्व पैंगोलिन दिवस
अन्य जानकारी पैंगोलिन की जिह्वा चींटीख़ोरों की तरह होती है और इस से वह चींटी व दीमक खाने में सक्षम होता है, और यही उसका मुख्य आहार है।
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पैंगोलिन (अंग्रेज़ी: Pangolin) जिसे 'पंगोलीन' या 'वज्रशल्क' के नाम से भी जाना जाता है, फोलिडोटा गण का स्तनधारी प्राणी है। इसके शरीर पर केरोटिन के बने शल्कनुमा संरचना होती है जिससे यह अन्य प्राणियों से अपनी रक्षा करता है। यह अफ़्रीका और एशिया में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। इसे भारत में सल्लू साँप भी कहते हैं। इनके निवास वाले वन शीघ्रता से काटे जा रहे हैं और अंधविश्वासी प्रथाओं के कारण इनका अक्सर शिकार भी करा जाता है, जिसकी वजह से पैंगोलिन की सभी जातिया अब संकटग्रस्त मानी जाती हैं और उन सब पर विलुप्ति का ख़तरा मंडरा रहा है।

शांत और शर्मिला जीव

सबसे बड़ी हैरानी की बात ये है कि इस जानवर से किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। ये जानवर बेहद शर्मिला होता है और इंसानों की नजरों में आने से पहले ही भाग लेता है। पैंगोलिन अपना आशियाना ज्‍यादातर जमीन के नीचे बिल बनाकर या फिर सूखे और खोखले हो चुके पेड़ों में बनाता है। लेकिन पैसों के लालच में तस्‍कर इसकी जान को नहीं बख्‍शते हैं।

आहार

पैंगोलिन की जिह्वा चींटीख़ोरों की तरह होती है और इस से वह चींटी व दीमक खाने में सक्षम होता है, और यही उसका मुख्य आहार है। इसलिए पैंगोलिन को कभी-कभी शल्कदार चींटीख़ोर भी कहा जाता है।

संकटग्रस्त प्राणी

शरीर पर कड़ी और सुनहरी-भूरी स्केल्स वाले पैंगोलिन जीवों का मांस खूब शौक से खाया जाता है। इसके एक किलो की कीमत लगभग 27000 रुपए तक होती है, इसलिए चीन में ये एग्जॉटिक जानवरों की श्रेणी में मिलता है। यानी वेट मार्केट में दूसरे कम कीमत के सस्ते जीवों के साथ पैंगोलिन नहीं बिकता, बल्कि महंगे रेस्त्रां ही इसे बेचते या पकाते हैं।

तस्‍करी की वजह से पैंगोलिन पर अब विलुप्‍त होने का खतरा मंडराने लगा है। इसकी वजह एक ये भी है कि कुछ देशों में इसको लेकर नियम अलग और बेहद लचीले हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2010 और 2015 में पैंगोलिन की तस्करी के करीब 89 मामले सामने में आए थे, लेकिन इनमें से अधिकतर पर कार्रवाई ही नहीं हुई। जिन पर कार्रवाई हुई भी तो उन्‍हें मामूली जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया।

बनती है कई किस्म की दवाएं

पैंगोलिन का दूसरा और सबसे ज्यादा इस्तेमाल ट्रेडिशनल चाइनीज मेडिसिन में होता है। चीनी दवाओं का कारोबार लगभग 130 बिलियन डॉलर का माना जाता है। इसके तहत कई तरह के जंगली-जानवरों से दवाएं बनाई जाती हैं, जैसे- पैंगोलिन के अलावा सांप, बिच्छू, मकड़ी और कॉक्रोच। पैंगोलिन के मांस से अलग दवाएं बनती हैं तो इसके स्केल्स से अलग किस्म की दवा बनती हैं। हर दवा का उपयोग अलग बीमारी के लिए होता है।[1]

पैंगोलिन के स्केल्स यानी शरीर की ऊपरी कड़ी परत से बनने वाली दवाएं चॉकलेट के बार की तरह दिखती है लेकिन काफी कठोर होती है। इसे गर्म पानी या अल्कोहल में घोलकर पिया जाता है। इसके अलावा पैंगोलिन के मांस को नई मां को पिलाया जाता है ताकि उसे ताकत मिल सके। बहुत से लोग इसे जूस में डालकर पीना पसंद करते हैं। ट्रेडिनशल मेडिसिन बनाने वाले इसे धूप में सुखाकर कैप्सूल में बदलते हैं और फिर इसे भारी कीमत पर बेचा जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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