कइ

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कइ - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी) प्रत्यय (हिन्दी की)[1]

1. की।

उदाहरण-

शोभा दशरथ भवन कइ, को कवि बरनै पार। - रामचरितमानस[2]

2. को। के लिये।

उदाहरण-

तोहि सम हित न मोर संसारा। बहे जात कइ भइसि अधारा। - रामचरितमानस[3]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 732 |
  2. रामचरितमानस, 1।297, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
  3. रामचरितमानस, 2।23, सम्पादक शंभूनारायण चौबे, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण

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