"रवि शंकर": अवतरणों में अंतर
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''' | '''रवि शंकर''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Ravi Shankar'', पूरा नाम: पंडित रवीन्द्र शंकर चौधरी, जन्म: 7 अप्रॅल, 1920 - मृत्यु: 11 दिसम्बर, 2012) विश्व में [[भारतीय शास्त्रीय संगीत]] की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उदघोषक थे। एक [[सितार]] वादक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की। रवि शंकर और सितार मानो एक-दूसरे के लिए ही बने हों। वह इस [[सदी]] के सबसे महान संगीतज्ञों में गिने जाते थे। रविशंकर को विदेशों में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। विदेशों में वे अत्यन्त लोकप्रिय एवं सफल रहे। रविशंकर के [[संगीत]] में एक प्रकार की आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त होती है। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
पं रवि शंकर का जन्म संस्कृति-संपन्न [[काशी]] में [[7 अप्रॅल]], सन् [[1920]] को हुआ | पं रवि शंकर का जन्म संस्कृति-संपन्न [[काशी]] में [[7 अप्रॅल]], सन् [[1920]] को हुआ था। आपका आरंभिक जीवन काशी के पुनीत घाटों के पर ही बीता। पंडित रविशंकर का बचपन बहुत ही सुखद रहा है। उनके पिता प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे और राजघराने में उच्च पद पर कार्यरत थे। रविशंकर जब केवल दस वर्ष के थे तभी संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ। पंडित रविशंकर ने बचपन में कला जगत में प्रवेश किया एक नर्तक के रूप में. उन्होंने अपने बड़े भाई [[उदय शंकर]] के साथ कई नृत्य कार्यक्रम किये। उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं- | ||
<blockquote>मैं बनारस में रहता था। [[संगीत]] से मेरा कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन मेरे दूसरे भाइयों की इसमें पूरी रुचि थी। कोई बांसुरी बजाता था तो कोई सितार। मेरे बडे भाई पंडित उदय शंकर जी नृत्य करते थे। वह मुझे अपने साथ पेरिस ले गए। उनके दल में अच्छे-अच्छे [[संगीतज्ञ]] और कलाकार थे। वहीं से मुझमें संगीत का शौक़ पैदा हुआ। पहले तो मैंने नृत्य सीखना शुरू किया, पर अधिक दिनों तक इस क्षेत्र में नहीं रहा। वजह यह थी कि मेरी रुचि संगीत में बढने लगी थी।- रवि शंकर</blockquote> | <blockquote>मैं बनारस में रहता था। [[संगीत]] से मेरा कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन मेरे दूसरे भाइयों की इसमें पूरी रुचि थी। कोई बांसुरी बजाता था तो कोई सितार। मेरे बडे भाई पंडित उदय शंकर जी नृत्य करते थे। वह मुझे अपने साथ पेरिस ले गए। उनके दल में अच्छे-अच्छे [[संगीतज्ञ]] और कलाकार थे। वहीं से मुझमें संगीत का शौक़ पैदा हुआ। पहले तो मैंने नृत्य सीखना शुरू किया, पर अधिक दिनों तक इस क्षेत्र में नहीं रहा। वजह यह थी कि मेरी रुचि संगीत में बढने लगी थी।- रवि शंकर</blockquote> | ||
==शिक्षा== | ==शिक्षा== | ||
आपकी आरंभिक संगीत शिक्षा घर पर ही हुई। उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार और गुरु [[उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ|उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां]] को आपने अपना गुरु बनाया। यहीं से आपकी संगीत यात्रा विधिवत आरंभ हुई। अलाउद्दीन ख़ां जैसे अनुभवी गुरु की आँखों ने आप के भीतर छिपे संगीत प्रेम को पहहान लिया था। उन्होंने आपको विधिवत अपना शिष्य बनाया। वह लंबे समय तक [[तबला]] [[अल्ला रक्खा|उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ]], [[किशन महाराज]] और [[सरोद]] वादक उस्ताद [[अली अकबर ख़ान]] के साथ जुड़े रहे। अठारह वर्ष की उम्र में उन्होंने [[नृत्य]] छोड़कर सितार सीखना शुरू किया। | आपकी आरंभिक संगीत शिक्षा घर पर ही हुई। उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार और गुरु [[उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ|उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां]] को आपने अपना गुरु बनाया। यहीं से आपकी संगीत यात्रा विधिवत आरंभ हुई। अलाउद्दीन ख़ां जैसे अनुभवी गुरु की आँखों ने आप के भीतर छिपे संगीत प्रेम को पहहान लिया था। उन्होंने आपको विधिवत अपना शिष्य बनाया। वह लंबे समय तक [[तबला]] [[अल्ला रक्खा|उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ]], [[किशन महाराज]] और [[सरोद]] वादक उस्ताद [[अली अकबर ख़ान]] के साथ जुड़े रहे। अठारह वर्ष की उम्र में उन्होंने [[नृत्य]] छोड़कर सितार सीखना शुरू किया। | ||
==परम्परागत भारतीय शैली== | |||
रविशंकर संगीत की परम्परागत भारतीय शैली के अनुयायी हैं। उनकी अंगुलियाँ जब भी सितार पर गतिशील होती हैं, सारा वातावरण झंकृत हो उठता है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय संगीत को ससम्मान प्रतिष्ठित करने में उनका उल्लेखनीय योगदान है। उन्होंने कई नई-पुरानी संगीत रचनाओं को भी अपनी विशिष्ट शैली से सशक्त अभिव्यक्ति पदान की है। | |||
==प्रथम प्रस्तुति== | ==प्रथम प्रस्तुति== | ||
*पंडित रविशंकर ने पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था। | *पंडित रविशंकर ने पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था। | ||
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*[[सत्यजीत रे]] की बंगाली फ़िल्म 'अपू त्रिलोगी' एक बहुचर्चित फ़िल्म थी। | *[[सत्यजीत रे]] की बंगाली फ़िल्म 'अपू त्रिलोगी' एक बहुचर्चित फ़िल्म थी। | ||
*हिन्दी फ़िल्म [[अनुराधा (फ़िल्म )|अनुराधा]] में भी आपने ही संगीत दिया है। | *हिन्दी फ़िल्म [[अनुराधा (फ़िल्म )|अनुराधा]] में भी आपने ही संगीत दिया है। | ||
*पंडित रविशंकर ने अपने लंबे संगीत जीवन में कई फ़िल्मों के लिए भी संगीत निर्देशन किया जिसमें प्रख्यात फ़िल्मकार सत्यजीत रे की फ़िल्में और गुलज़ार द्वारा निर्देशित "मीरा" भी शामिल है. | *पंडित रविशंकर ने अपने लंबे संगीत जीवन में कई फ़िल्मों के लिए भी संगीत निर्देशन किया जिसमें प्रख्यात फ़िल्मकार सत्यजीत रे की फ़िल्में और [[गुलज़ार]] द्वारा निर्देशित "मीरा" भी शामिल है. | ||
*रिचर्ड एटिनबरा की फ़िल्म 'गांधी' में भी आपका ही सुरीला संगीत था। | *रिचर्ड एटिनबरा की फ़िल्म 'गांधी' में भी आपका ही सुरीला संगीत था। | ||
*आपने कई पाश्चात्य फ़िल्मों में भी संगीत दिया है। | *आपने कई पाश्चात्य फ़िल्मों में भी संगीत दिया है। | ||
==सहृदय रवि शंकर== | ==सहृदय रवि शंकर== | ||
रवि शंकर ने वर्ष [[1971]] में 'बांग्लादेश मुक्ति संग्राम' के समय वहां से भारत आ गए लाखों शरणार्थियों की मदद के लिए कार्यक्रम करके धन एकत्र किया था। | रवि शंकर ने वर्ष [[1971]] में 'बांग्लादेश मुक्ति संग्राम' के समय वहां से भारत आ गए लाखों शरणार्थियों की मदद के लिए कार्यक्रम करके धन एकत्र किया था। [[हिन्दुस्तानी संगीत]] को रविशंकर ने रागों के मामले में भी बड़ा समृद्ध बनाया है। यों तो उन्होंने परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, जोगेश्वरी, वैरागी तोड़ी, कौशिकतोड़ी, मोहनकौंस, रसिया, मनमंजरी, पंचम आदि अनेक नये राग बनाए हैं, पर वैरागी और नटभैरव रागों का उनका सृजन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब रेडियो पर कोई न कोई कलाकार इनके बनाए इन दो रागों का न गाता-बजाता हो। | ||
हिन्दुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के मामले में भी बड़ा समृद्ध बनाया है। यों तो उन्होंने परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, जोगेश्वरी, वैरागी तोड़ी, कौशिकतोड़ी, मोहनकौंस, रसिया, मनमंजरी, पंचम आदि अनेक नये राग बनाए हैं, पर वैरागी और नटभैरव रागों का उनका सृजन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब रेडियो पर कोई न कोई कलाकार इनके बनाए इन दो रागों का न गाता-बजाता हो। | |||
==जुगलबन्दी== | ==जुगलबन्दी== | ||
प्रारम्भ में पंडित जी ने अमेरिका के प्रसिद्ध [[वायलिन]] वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबन्दियों में भी विश्व-भर का दौरा किया। [[तबला]] के महान् उस्ताद [[अल्ला रक्खा]] भी पंडित जी के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं। वास्तव में इस प्रकार की जुगलबन्दियों में ही उन्होंने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया आयाम दिया। | प्रारम्भ में पंडित जी ने अमेरिका के प्रसिद्ध [[वायलिन]] वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबन्दियों में भी विश्व-भर का दौरा किया। [[तबला]] के महान् उस्ताद [[अल्ला रक्खा]] भी पंडित जी के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं। वास्तव में इस प्रकार की जुगलबन्दियों में ही उन्होंने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया आयाम दिया। पंडित जी ने अपनी लम्बी संगीत-यात्रा में अपने और अपने सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ के अतिरिक्त उनकी ‘रागमाला’ नामक पुस्तक विदेश के एक सुप्रसिद्ध प्रकाशक ने प्रकाशित की है। | ||
पंडित जी ने अपनी लम्बी संगीत-यात्रा में अपने और अपने सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ के अतिरिक्त उनकी ‘रागमाला’ नामक पुस्तक विदेश के एक सुप्रसिद्ध प्रकाशक ने प्रकाशित की है। | |||
==पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
* | *पंडित रवि शंकर को विभिन्न विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की 14 मानद उपाधियां मिल चुकी हैं। | ||
*आप संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत संगीतज्ञों की एक संस्था के सदस्य | *आप संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत संगीतज्ञों की एक संस्था के सदस्य रहे। | ||
* | *रवि शंकर को तीन ग्रेमी पुरस्कार मिले हैं। | ||
*[[ | *[[रेमन मैग्सेसे पुरस्कार]], [[पद्म भूषण]], [[पद्म विभूषण]] तथा [[भारत]] का सर्वोच्च सम्मान [[भारत रत्न]] भी आपको मिल चुका है। | ||
*रवि शंकर को भारतीय संगीत ख़ासकर सितार वादन को पश्चिमी दुनिया के देशों तक पहुंचाने का श्रेय भी दिया जाता है। | *रवि शंकर को भारतीय संगीत ख़ासकर सितार वादन को पश्चिमी दुनिया के देशों तक पहुंचाने का श्रेय भी दिया जाता है। | ||
*[[1968]] में उनकी 'यहूदी मेनुहिन' के साथ उनकी एल्बम 'ईस्ट मीट्स वेस्ट' को पहला ग्रैमी पुरस्कार मिला था। फिर [[1972]] में 'जॉर्ज हैरिसन' के साथ उनके 'कॉनसर्ट फॉर बांग्लादेश' को ग्रैमी दिया गया। संगीत जगत का ऑस्कर माने जाने वाले ग्रैमी पुरस्कार की विश्व संगीत श्रेणी में पंडित रविशंकर के साथ स्पर्धा में ब्रिटेन के प्रख्यात संगीतकार जॉन मेक्लॉलिन और ब्राज़ील के गिलबर्टो गिल और मिल्टन नेसिमेल्टो भी शामिल थे। | *[[1968]] में उनकी 'यहूदी मेनुहिन' के साथ उनकी एल्बम 'ईस्ट मीट्स वेस्ट' को पहला ग्रैमी पुरस्कार मिला था। फिर [[1972]] में 'जॉर्ज हैरिसन' के साथ उनके 'कॉनसर्ट फॉर बांग्लादेश' को ग्रैमी दिया गया। संगीत जगत का ऑस्कर माने जाने वाले ग्रैमी पुरस्कार की विश्व संगीत श्रेणी में पंडित रविशंकर के साथ स्पर्धा में ब्रिटेन के प्रख्यात संगीतकार जॉन मेक्लॉलिन और ब्राज़ील के गिलबर्टो गिल और मिल्टन नेसिमेल्टो भी शामिल थे। | ||
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[[1986]] में राज्यसभा के मानद सदस्य चुनकर भी उन्हें सम्मानित किया | [[1986]] में [[राज्यसभा]] के मानद सदस्य चुनकर भी उन्हें सम्मानित किया गया। सितार वादक पंडित रविशंकर भारत के उन गिने चुने संगीतज्ञों में से थे जो पश्चिम में भी लोकप्रिय रहे। रवि शंकर अनेक दशकों से अपनी प्रतिभा दर्शाते रहे। [[1982]] के दिल्ली एशियाड (एशियाई खेल समारोह) के 'स्वागत गीत' को उन्होंने कई स्वर प्रदान किये थे। उनको देश-विदेश में कई बार सम्मानित किया जा चुका है। | ||
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07:08, 12 दिसम्बर 2012 का अवतरण
रवि शंकर
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पूरा नाम | पंडित रवीन्द्र शंकर चौधरी |
जन्म | 7 अप्रॅल, 1920 |
जन्म भूमि | बनारस, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 11 दिसम्बर, 2012 |
मृत्यु स्थान | सैन डियागो, अमेरिका |
पति/पत्नी | अन्नपूर्णा देवी और सुकन्या रंजन |
संतान | शुभेन्द्र शंकर, नोराह जोन्स और अनुष्का शंकर |
कर्म-क्षेत्र | संगीत कला |
विषय | सितार वादक और शास्त्रीय संगीत |
पुरस्कार-उपाधि | भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार |
नागरिकता | भारतीय |
फ़िल्मों में संगीत | अपू त्रिलोगी, अनुराधा, गांधी |
बाहरी कड़ियाँ | आधिकारिक वेबसाइट |
अद्यतन | 14:23, 31 जनवरी 2011 (IST) |
रवि शंकर (अंग्रेज़ी: Ravi Shankar, पूरा नाम: पंडित रवीन्द्र शंकर चौधरी, जन्म: 7 अप्रॅल, 1920 - मृत्यु: 11 दिसम्बर, 2012) विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उदघोषक थे। एक सितार वादक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की। रवि शंकर और सितार मानो एक-दूसरे के लिए ही बने हों। वह इस सदी के सबसे महान संगीतज्ञों में गिने जाते थे। रविशंकर को विदेशों में बहुत अधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। विदेशों में वे अत्यन्त लोकप्रिय एवं सफल रहे। रविशंकर के संगीत में एक प्रकार की आध्यात्मिक शान्ति प्राप्त होती है।
जीवन परिचय
पं रवि शंकर का जन्म संस्कृति-संपन्न काशी में 7 अप्रॅल, सन् 1920 को हुआ था। आपका आरंभिक जीवन काशी के पुनीत घाटों के पर ही बीता। पंडित रविशंकर का बचपन बहुत ही सुखद रहा है। उनके पिता प्रतिष्ठित बैरिस्टर थे और राजघराने में उच्च पद पर कार्यरत थे। रविशंकर जब केवल दस वर्ष के थे तभी संगीत के प्रति उनका लगाव शुरू हुआ। पंडित रविशंकर ने बचपन में कला जगत में प्रवेश किया एक नर्तक के रूप में. उन्होंने अपने बड़े भाई उदय शंकर के साथ कई नृत्य कार्यक्रम किये। उन दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं-
मैं बनारस में रहता था। संगीत से मेरा कोई सीधा संबंध नहीं था, लेकिन मेरे दूसरे भाइयों की इसमें पूरी रुचि थी। कोई बांसुरी बजाता था तो कोई सितार। मेरे बडे भाई पंडित उदय शंकर जी नृत्य करते थे। वह मुझे अपने साथ पेरिस ले गए। उनके दल में अच्छे-अच्छे संगीतज्ञ और कलाकार थे। वहीं से मुझमें संगीत का शौक़ पैदा हुआ। पहले तो मैंने नृत्य सीखना शुरू किया, पर अधिक दिनों तक इस क्षेत्र में नहीं रहा। वजह यह थी कि मेरी रुचि संगीत में बढने लगी थी।- रवि शंकर
शिक्षा
आपकी आरंभिक संगीत शिक्षा घर पर ही हुई। उस समय के प्रसिद्ध संगीतकार और गुरु उस्ताद अलाउद्दीन ख़ां को आपने अपना गुरु बनाया। यहीं से आपकी संगीत यात्रा विधिवत आरंभ हुई। अलाउद्दीन ख़ां जैसे अनुभवी गुरु की आँखों ने आप के भीतर छिपे संगीत प्रेम को पहहान लिया था। उन्होंने आपको विधिवत अपना शिष्य बनाया। वह लंबे समय तक तबला उस्ताद अल्ला रक्खा ख़ाँ, किशन महाराज और सरोद वादक उस्ताद अली अकबर ख़ान के साथ जुड़े रहे। अठारह वर्ष की उम्र में उन्होंने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू किया।
परम्परागत भारतीय शैली
रविशंकर संगीत की परम्परागत भारतीय शैली के अनुयायी हैं। उनकी अंगुलियाँ जब भी सितार पर गतिशील होती हैं, सारा वातावरण झंकृत हो उठता है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय संगीत को ससम्मान प्रतिष्ठित करने में उनका उल्लेखनीय योगदान है। उन्होंने कई नई-पुरानी संगीत रचनाओं को भी अपनी विशिष्ट शैली से सशक्त अभिव्यक्ति पदान की है।
प्रथम प्रस्तुति
- पंडित रविशंकर ने पहला कार्यक्रम 10 साल की उम्र में दिया था।
- भारत में पंडित रविशंकर ने पहला कार्यक्रम 1939 में दिया था।
- देश के बाहर पहला कार्यक्रम उन्होंने 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ में दिया था और यूरोप में पहला कार्यक्रम 1956 में दिया था।
- 1944 में औपचारिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वह मुंबई चले गए और उन्होंने फ़िल्मों के लिए संगीत दिया।
- 1960 के दशक के मध्य में उन्होंने तीन यादगार प्रस्तुतियां-
- मॉनटेरी पॉप फेस्टिवल
- कंसर्ट फॉर बांग्लादेश
- वुडस्टॉक फेस्टिवल दीं
संगीत निर्देशन

रवि शंकर ने भारत, कनाडा, यूरोप तथा अमेरिका में बैले तथा फ़िल्मों के लिए भी संगीत कम्पोज किया। इन फ़िल्मों में 'चार्ली', 'गांधी' और 'अपू त्रिलोगी' भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त आपने अनेक फ़िल्मों में भी अपने संगीत का जादू जगाया है।
- सत्यजीत रे की बंगाली फ़िल्म 'अपू त्रिलोगी' एक बहुचर्चित फ़िल्म थी।
- हिन्दी फ़िल्म अनुराधा में भी आपने ही संगीत दिया है।
- पंडित रविशंकर ने अपने लंबे संगीत जीवन में कई फ़िल्मों के लिए भी संगीत निर्देशन किया जिसमें प्रख्यात फ़िल्मकार सत्यजीत रे की फ़िल्में और गुलज़ार द्वारा निर्देशित "मीरा" भी शामिल है.
- रिचर्ड एटिनबरा की फ़िल्म 'गांधी' में भी आपका ही सुरीला संगीत था।
- आपने कई पाश्चात्य फ़िल्मों में भी संगीत दिया है।
सहृदय रवि शंकर
रवि शंकर ने वर्ष 1971 में 'बांग्लादेश मुक्ति संग्राम' के समय वहां से भारत आ गए लाखों शरणार्थियों की मदद के लिए कार्यक्रम करके धन एकत्र किया था। हिन्दुस्तानी संगीत को रविशंकर ने रागों के मामले में भी बड़ा समृद्ध बनाया है। यों तो उन्होंने परमेश्वरी, कामेश्वरी, गंगेश्वरी, जोगेश्वरी, वैरागी तोड़ी, कौशिकतोड़ी, मोहनकौंस, रसिया, मनमंजरी, पंचम आदि अनेक नये राग बनाए हैं, पर वैरागी और नटभैरव रागों का उनका सृजन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। शायद ही कोई दिन ऐसा जाता हो, जब रेडियो पर कोई न कोई कलाकार इनके बनाए इन दो रागों का न गाता-बजाता हो।
जुगलबन्दी
प्रारम्भ में पंडित जी ने अमेरिका के प्रसिद्ध वायलिन वादक येहुदी मेन्युहिन के साथ जुगलबन्दियों में भी विश्व-भर का दौरा किया। तबला के महान् उस्ताद अल्ला रक्खा भी पंडित जी के साथ जुगलबन्दी कर चुके हैं। वास्तव में इस प्रकार की जुगलबन्दियों में ही उन्होंने भारतीय वाद्य संगीत को एक नया आयाम दिया। पंडित जी ने अपनी लम्बी संगीत-यात्रा में अपने और अपने सम्बन्ध में कुछ महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखी हैं। ‘माई म्यूजिक माई लाइफ’ के अतिरिक्त उनकी ‘रागमाला’ नामक पुस्तक विदेश के एक सुप्रसिद्ध प्रकाशक ने प्रकाशित की है।
सम्मान और पुरस्कार
- पंडित रवि शंकर को विभिन्न विश्वविद्यालयों से डाक्टरेट की 14 मानद उपाधियां मिल चुकी हैं।
- आप संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतर्गत संगीतज्ञों की एक संस्था के सदस्य रहे।
- रवि शंकर को तीन ग्रेमी पुरस्कार मिले हैं।
- रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, पद्म भूषण, पद्म विभूषण तथा भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न भी आपको मिल चुका है।
- रवि शंकर को भारतीय संगीत ख़ासकर सितार वादन को पश्चिमी दुनिया के देशों तक पहुंचाने का श्रेय भी दिया जाता है।
- 1968 में उनकी 'यहूदी मेनुहिन' के साथ उनकी एल्बम 'ईस्ट मीट्स वेस्ट' को पहला ग्रैमी पुरस्कार मिला था। फिर 1972 में 'जॉर्ज हैरिसन' के साथ उनके 'कॉनसर्ट फॉर बांग्लादेश' को ग्रैमी दिया गया। संगीत जगत का ऑस्कर माने जाने वाले ग्रैमी पुरस्कार की विश्व संगीत श्रेणी में पंडित रविशंकर के साथ स्पर्धा में ब्रिटेन के प्रख्यात संगीतकार जॉन मेक्लॉलिन और ब्राज़ील के गिलबर्टो गिल और मिल्टन नेसिमेल्टो भी शामिल थे।
राज्यसभा मानद सदस्य
1986 में राज्यसभा के मानद सदस्य चुनकर भी उन्हें सम्मानित किया गया। सितार वादक पंडित रविशंकर भारत के उन गिने चुने संगीतज्ञों में से थे जो पश्चिम में भी लोकप्रिय रहे। रवि शंकर अनेक दशकों से अपनी प्रतिभा दर्शाते रहे। 1982 के दिल्ली एशियाड (एशियाई खेल समारोह) के 'स्वागत गीत' को उन्होंने कई स्वर प्रदान किये थे। उनको देश-विदेश में कई बार सम्मानित किया जा चुका है।
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