आर. के. लक्ष्मण
आर. के. लक्ष्मण
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पूरा नाम | रासीपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण |
जन्म | 24 अक्टूबर, 1921 |
जन्म भूमि | मैसूर |
मृत्यु | 26 जनवरी, 2015 |
मृत्यु स्थान | पुणे, महाराष्ट्र |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | व्यंग्य चित्रकारी |
मुख्य रचनाएँ | 'टनल टु टाइम' (आत्मकथा), 'द बेस्ट ऑफ़ लक्षमण सीरीज', 'दि एलोक्वोयेन्ट ब्रश', 'द मेसेंजर', 'होटल रिवीयेरा', 'सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया' आदि। |
विद्यालय | मैसूर विश्वविद्यालय |
शिक्षा | बी. ए. |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्म भूषण', 'पद्म विभूषण', 'रेमन मेग्सेसे पुरस्कार', 'बी. डी. गोयनका पुरस्कार', 'दुर्गा रतन स्वर्ण पदक' |
प्रसिद्धि | कार्टूनिस्ट |
नागरिकता | भारतीय |
परिवार | आर. के. नारायण (भाई) |
अन्य जानकारी | आर. के. लक्ष्मण द्वारा बनाया 'कॉमन मैन' का कार्टून वर्ष 1951 से ही भारत के जाने-माने अंग्रेज़ी अख़बार 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के पहले पृष्ठ पर 'यू सेड इट' शीर्षक के साथ छपता आया है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रासीपुरम कृष्णस्वामी लक्ष्मण (अंग्रेज़ी: R. K. Laxman, जन्म- 24 अक्टूबर, 1921; मृत्यु: 26 जनवरी, 2015) को भारत के एक प्रमुख व्यंग-चित्रकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। अपने कार्टूनों के ज़रिए आर. के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक व्यापक स्थान दिया और उसके जीवन की मायूसी, अँधेरे, उजाले, ख़ुशी और ग़म को शब्दों और रेखाओं की मदद से समाज के सामने रखा। असाधारण व्यक्तित्व के धनी आर. के. लक्ष्मण ने वक़्त की नब्ज को पहचान कर देश, समाज और स्थितियों की अक्कासी की। लक्ष्मण के कार्टूनों की दुनिया व्यापक है और इसमें समाज का चेहरा तो दिखता ही है, साथ ही भारतीय राजनीति में होने वाले बदलाव भी दिखाई देते हैं।
जन्म तथा शिक्षा
आर. के. लक्ष्मण का जन्म 24 अक्टूबर, 1921 को मैसूर, कर्नाटक में हुआ था। उनके पिता स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्त थे। पिता की छ: संतान थीं, जिनमें लक्ष्मण सबसे कम उम्र के थे। उनके एक बड़े भाई प्रसिद्ध साहित्यकार आर. के. नारायण का इन्हें पूरा सहयोग प्राप्त था। आर. के. लक्ष्मण ने हाईस्कूल पास करने के बाद ही यह तय कर लिया था कि वह कार्टूनिस्ट के रूप में अपना कैरियर बनाएँगे। बी.ए. के बाद उन्होंने 'मैसूर विश्वविद्यालय' में पढ़ते हुए फ्रीलांस कलाकार के रूप में 'स्वराज अख़बार' के लिए कार्टून बनाने शुरू किए, जिससे उन्हें बहुत ख्याति मिली। साथ ही एनिमेटेड फ़िल्मों में भी लक्ष्मण ने मिथकीय पात्र 'नारद' का चित्रांकन किया।
निर्भीक पत्रकार
लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण एक कथाकार तथा उपन्यासकार थे, जिनकी रचनाएँ 'गाइड' तथा 'मालगुडी डेज़' ने प्रसिद्धि की ऊँचाइयों को छुआ था। आर. के. लक्ष्मण ने उनके लिए भी चित्र बनाए, जो 'हिंदू' समाचार पत्र में छपे। उसके बाद लक्ष्मण राजनीतिक स्थितियों पर कार्टून बनाते हुए निर्भीक तथा बेबाक पत्रकार माने जाने लगे। 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' में 'यू सेड इट' आज भी लक्ष्मण के कार्टून सम्मानपूर्वक प्रकाशित करता है।
विशेषता
एक कार्टूनिस्ट के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त करने के साथ ही लक्ष्मण ने महत्त्वपूर्ण लेखन भी किया। उनकी आत्मकथा 'टनल टु टाइम' उनकी लेखन क्षमता का प्रमाण सामने लाती है। आर. के. लक्ष्मण के कार्टूनों में एक आम आदमी को प्रस्तुत करती एक छवि जितनी सादगी भरी है, उतनी ही पैनी भी होती है। लक्ष्मण ने जिस आम आदमी को केंद्र में रख कर सृजन किया, उस आदमी की पीड़ा को उन्होंने न सिर्फ़ महसूस किया, बल्कि उसे रेखाओं की मदद से व्यापक सरोकारों से जोड़ा। अपने समय और समाज से मुठभेड़ करते हुए लक्ष्मण ने हमेशा ही बहुत ही सलीक़े से अपनी बात हमारे सामने रखी। लक्ष्मण के कार्टूनों की एक बड़ी ख़ूबी यह भी है कि उन्होंने हर उस व्यक्ति को अपने सृजन का विषय बनाया, जो उन्हें मुनासिब लगा। व्यक्ति के पद और प्रभाव की वजह से उन्होंने कभी भी किसी तरह का समझौता नहीं किया। दरअसल यह उस आम आदमी का ही जीवट है, जो वक़्त पड़ने पर बड़े से बड़े आदमी की आँखों में आँखें डालकर तन कर बात करता है। लक्ष्मण का यह आदमी जीवन के सुख-दुख को एक-दूसरे से बाँटता हुआ जीवन में नए रंग भी भरता है और जीने का अंदाज़ भी सिखाता है।
प्रमुख पुस्तकें
- टनल टु टाइम (आत्मकथा)
- द बेस्ट ऑफ़ लक्षमण सीरीज
- दि एलोक्वोयेन्ट ब्रश
- द मेसेंजर
- होटल रिवीयेरा
- सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया
'कॉमन मैन' कार्टून के निर्माता
अपने कार्टूनों के जरिए आर.के. लक्ष्मण ने एक आम आदमी को एक ख़ास जगह दी। हाशिये पर पड़े आम आदमी के जीवन की मायूसी, अंधेरे, उजाले, खुशी और गम को शब्द चित्रों के सहारे दुनिया के सामने रखा। लक्ष्मण के कार्टूनों की दुनिया काफ़ी व्यापक है और इसमें समाज का चेहरा तो दिखता ही है, साथ ही भारतीय राजनीति में होने वाले बदलाव भी दिखाई देते हैं। भ्रष्टाचार, अपराध, अशिक्षा, राजनीतिक पार्टियों के छलावों से जो तस्वीर निकल कर आती है वो है आर. के लक्ष्मण का आम आदमी की। आम आदमी सिर्फ जिंदगी की मुश्किलों से लड़ता है, उसे चुपचाप झेलता है, सुनता है, देखता है, पर बोलता नहीं, यही वजह है कि आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी ताउम्र खामोश रहा। आर. के. लक्ष्मण का आम आदमी शुरू-शुरू में बंगाली, तमिल, पंजाबी या फिर किसी और प्रांत का हुआ करता था लेकिन काफ़ी कम समय में आम आदमी की पहचान बन गया ये कार्टून टेढा चश्मा, मुड़ी-चुड़ी धोती, चारखाना कोट, सिर पर बचे चंद बाल। लक्ष्मण का आम आदमी पूरी दुनिया में ख़ास बन गया था। 1985 में लक्ष्मण ऐसे पहले भारतीय कार्टूनिस्ट बन गए जिनके कार्टून की लंदन में एकल प्रदर्शनी लगाई गई। लंदन की उसी यात्रा के दौरान वो दुनिया के जाने-माने कार्टूनिस्ट डेविड लो और इलिंगवॉर्थ से मिले- ये वो शख्स थे जिनके कार्टून को देखकर लक्ष्मण को कार्टूनिस्ट बनने की प्रेरणा मिली थी। लक्ष्मण की काबीलीयत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लंदन का अखबार 'दि इवनिंग स्टैंडर्ड' ने उन्हें एक समय डेविड लो की कुर्सी संभालने का ऑफर दिया था। लक्ष्मण के कार्टून फिल्मों में भी इस्तेमाल हुए। फ़िल्म 'मिस्टर एंड मिसेज' और तमिल फ़िल्म 'कामराज' के लिए लक्ष्मण ने कार्टून बनाए। लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण की कृति "मालगुडी डेज" को जब टेलीविज़न पर दिखाया गया तो उसके लिए भी लक्ष्मण ने स्केच तैयार किये। लक्ष्मण का आम आदमी उस वक़्त फिर ख़ास हो उठा जब डेक्कन एयरलाइंस की सस्ती विमान सेवा शुरू हुई। एयरलाइंस के संस्थापक कैप्टन गोपीनाथ अपने सस्ते विमान के लिए प्रतीक चिह्न की तलाश में थे, और इसके लिए उन्हें लक्ष्मण के आम आदमी से बेहतर कुछ और नही मिल सकता था।[1]
सम्मान एवं पुरस्कार
आर. के. लक्ष्मण को उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं-
- पद्म भूषण
- पद्म विभूषण
- रेमन मेग्सेसे पुरस्कार (1984)
- बी. डी. गोयनका पुरस्कार
- दुर्गा रतन स्वर्ण पदक
समाचार
- 26 जनवरी, 2015 सोमवार
मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण का निधन
भारत के मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण का 26 जनवरी, 2015 को 94 वर्ष की उम्र में पुणे में निधन हो गया। वे हफ़्ते भर से भी ज्यादा समय से दीनानाथ मंगेशकर अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल के अधिकारियों ने उनके निधन की पुष्टि की। लक्ष्मण को संक्रमण के बाद इंटेसिव केअर यूनिट में भर्ती कराया गया था। दिल के मरीज़ लक्ष्मण के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। लक्ष्मण अपने कार्टून चरित्र "कॉमन मैन" यानी आम आदमी के लिए मशहूर थे। यह कार्टून आम आदमी की आकांक्षाओं और उसकी सोच को तो दर्शाता है ही, राजनीतिक हस्तियों पर कटाक्ष भी करता है। यह कार्टून वर्ष 1951 से ही भारत के जाने-माने अंग्रेज़ी अख़बार 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के पहले पेज पर 'यू सेड इट' शीर्षक के साथ छपता आया है। भारत सरकार ने आरके लक्ष्मण को 2005 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। डाक विभाग ने "कॉमन मैन" पर 1988 में एक डाक टिकट भी जारी किया था। पुणे में 2001 में "कॉमन मैन" की आठ फ़ीट की एक प्रतिमा लगाई गई थी। आरके लक्ष्मण क़रीब 60 साल तक कॉमन मैन, कॉमन सेंस और कॉमन प्रॉब्लम्स की आवाज़ बने रहे।
- समाचार को विभिन्न स्रोतों पर पढ़ें
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मशहूर कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण का निधन (हिन्दी) एबीपी न्यूज़। अभिगमन तिथि: 27 जनवरी, 2015।
बाहरी कड़ियाँ
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