राग सावनी कल्याण पपइया रे, पिव की वाणि न बोल। सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़॥ चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण। पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥ थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज। चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज॥ प्रीतम कूं पतियां लिखूं रे, कागा तू ले जाय। जाइ प्रीतम जासूं यूं कहै रे, थांरि बिरहस धान न खाय॥ मीरा दासी व्याकुल रे, पिव पिव करत बिहाय। बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम विन रह्यौ न जाय॥