राग जैजैवंती गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय। ऊंची नीची राह लपटीली[1], पांव नहीं ठहराय। सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥ ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्यो न जाय। पिया दूर पंथ म्हारो झीणो[2], सुरत[3] झकोला[4] खाय॥ कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़[5] पैंड़ बटमार। है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥ मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय। जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥