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| कोई भेद नज़र आये | | कोई भेद नज़र आये |
| बस तब साक्षी भाव से | | बस तब साक्षी भाव से |
− | दृष्टा बन जाओ
| + | द्रष्टाबन जाओ |
| और देखो उसकी लीला | | और देखो उसकी लीला |
| हाथ पकडता है या छोडता | | हाथ पकडता है या छोडता |
05:02, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
योगक्षेम वहाम्यम तुमने ही तो कहा ना -वंदना गुप्ता
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कवि
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वंदना गुप्ता
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मुख्य रचनाएँ
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'बदलती सोच के नए अर्थ', 'टूटते सितारों की उड़ान', 'सरस्वती सुमन', 'हृदय तारों का स्पंदन', 'कृष्ण से संवाद' आदि।
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विधाएँ
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कवितायें, आलेख, समीक्षा और कहानियाँ
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अन्य जानकारी
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वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
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इन्हें भी देखें
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कवि सूची, साहित्यकार सूची
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जब आत्मज्ञान मिल जाये
उसमे और खुद में ना
कोई भेद नज़र आये
बस तब साक्षी भाव से
द्रष्टाबन जाओ
और देखो उसकी लीला
हाथ पकडता है या छोडता
पार उतारता है या डुबोता
कर दिया अब सर्वस्व समर्पण
फिर कैसा डर ………
योगक्षेम वहाम्यहम तुमने ही तो कहा न ………
तो अब तुम जानो और तुम्हारा काम
न मेरी जीत इसमे न हार
जो है प्रभु तुम्हारा ही तो है
जीव हूँ तो क्या
घाटे का सौदा कैसे कर सकता हूँ
आखिर तुम्हारा ही तो अंश हूँ
अब देखें क्या होता है
वो कौन सी नयी लीला रचता है
घट - घट वासी
कब घट को समाहित करता है
जहाँ ना घट हो ना तट हो
बस एक आनन्द का स्वर हो
बस उसी का इंतज़ार है
जहाँ दूरियाँ मिट जायें
इक दूजे मे समा जायें
भेद दृष्टि समता मे बदल जाये
वो वो ना रहे
मै मै ना रहूँ
कोई आकार ना हो
बस एक ब्रह्माकार हो
आनन्दनाद हो
सब अन्तस का विलास हो
जब शब्द निशब्द जो जाये
अखंड समाधि लग जाये
आनन्द ही आनन्द समा जाये
ज्योति ज्योतिपुंज मे समा जाये
बस वो तेजोमय रूप बन जाये
ये धारा ऐसी मुड जाये
जो खुद राधा बन जाये
तो कैसे न कृष्ण मिल जाये
वो भी उतना खोजता है
जितना जीव भटकता है
वो भी उतना तरसता है
ब्रह्म भी जीव मिलन को तडपता है
जब आह चरम को छू जाये
वो भी मिलन को व्याकुल हो जाये
तो कैसे धीरज धर पाये
खुद दौडा दौडा चला आये
यूँ मिलन को पूर्णत्व मिल जाये ………
देखें क्या होता है ? कब वो भी मिलन को तरसता है कब हमारे भाव उसे
विचलित करते हैं………बस उस क्षण का इंतज़ार है
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