मैं और तू कहूँ या तू ही तू कहूँ या मैं ही मैं कहूँ भाव तो दो का ही बोध कराता है जब न मैं हो न तू बस प्रेम ही प्रेम हो बोध से परे आनंद ही आनंद हो वही तो परमानन्द है वही तो प्रेम है वही तो निराकारता है है न यही स्थिति तुम्हें पाने की , तुम में समाने की .........कृष्णा ! मोहना ! माधवा !