पशोपेश में हूँ -वंदना गुप्ता

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पशोपेश में हूँ -वंदना गुप्ता
वंदना गुप्ता
कवि वंदना गुप्ता
मुख्य रचनाएँ 'बदलती सोच के नए अर्थ', 'टूटते सितारों की उड़ान', 'सरस्वती सुमन', 'हृदय तारों का स्पंदन', 'कृष्ण से संवाद' आदि।
विधाएँ कवितायें, आलेख, समीक्षा और कहानियाँ
अन्य जानकारी वंदना जी के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं, जैसे- कादम्बिनी, बिंदिया, पाखी, हिंदी चेतना, शब्दांकन, गर्भनाल, उदंती, अट्टहास, आधुनिक साहित्य, नव्या, सिम्पली जयपुर आदि के अलावा विभिन्न ई-पत्रिकाओं में रचनाएँ, कहानियां, आलेख आदि प्रकाशित हो चुके हैं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
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वंदना गुप्ता की रचनाएँ
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जिस तरह 
संदेह के  बादलों से नहीं नापी जा सकती पृथ्वी की गहराई
दम्भ के झूठे रागों से नहीं बनायीं  जा सकती मौसिकी 
उसी तरह 
संदिग्ध की श्रेणी में रखा है खुद को 
 
तुम्हें चाहना 
फिर भी न पूरा पाना 
एक कमी का अधूरा रहना 
और फिर भटकना उम्र के बीहड़ में 
प्रेम का इकतारा ले 
नहीं हूँ सिर्फ इसी से संतुष्ट 
 
चाहने की प्रक्रिया के परिमाण को 
मापने के यंत्र नहीं होते 
तो कैसे संभव है अधूरापन 
जब तक न तुम्हें पूरी  तरह जान लूँ 
 
खोज के बिन्दुओं पर लगे पहरों को 
छिन्न भिन्न करने को आतुर 
जब भी पहुँचती हूँ निकट 
एक संदेह की मछली कुलबुलाती है 
और तुम हो जाते हो 
फिर पहुँच से दूर …… बहुत दूर 
 
पास और दूर होने की प्रक्रिया में 
कभी बनाते हो खुद को संदिग्ध 
तो कभी छोड़ देते हो सारे संदेह के तीर मेरी ओर 
 
खोज , परिमाण , चाहत , संदेह और तुम 
मेरी विध्वंसता तक 
मुझे ही कर देते हैं खड़ा शक के घेरे में 
जो तुम से होकर गुजरता है 
और हो जाती हूँ मैं निःसहाय 
सच और झूठ की वेदी पर 
 
और पड़ जाती हूँ सोच में 
किसी को चाहना और पाना एक बात हो सकती है 
मगर यदि किसी को जानना हो 
संदेह की सीपियाँ राहों में बिखरी हों 
और पहचान के चिन्ह प्रश्नचिन्ह बने खड़े हों 
तो शक की ऊँगली खुद की तरफ ही क्यों उठी होती है .......... माधव !!!
 

संदिग्ध तुम हो या मैं………… पशोपेश में हूँ 


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