रसखान की भाषा
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हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। रसखान को 'रस की ख़ान' कहा जाता है। इनके काव्य में भक्ति, श्रृंगार रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं। रसखान कृष्ण भक्त हैं और प्रभु के सगुण और निर्गुण निराकार रूप के प्रति श्रद्धालु हैं।
रसखान की भाषा
सोलहवीं शताब्दी में ब्रजभाषा साहित्यिक आसन पर प्रतिष्ठित हो चुकी थी। भक्त-कवि सूरदास इसे सार्वदेशिक काव्य भाषा बना चुके थे किन्तु उनकी शक्ति भाषा सौष्ठव की अपेक्षा भाव द्योतन में अधिक रमी। इसीलिए बाबू जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ब्रजभाषा का व्याकरण बनाते समय रसखान, बिहारी लाल और घनानन्द के काव्याध्ययन को सूरदास से अधिक महत्त्व देते हैं। बिहारी की व्यवस्था कुछ कड़ी तथा भाषा परिमार्जित एवं साहित्यिक है। घनानन्द में भाषा-सौन्दर्य उनकी 'लक्षणा' के कारण माना जाता है। रसखान की भाषा की विशेषता उसकी स्वाभाविकता है। उन्होंने ब्रजभाषा के साथ खिलवाड़ न कर उसके मधुर, सहज एवं स्वाभाविक रूप को अपनाया। साथ ही बोलचाल के शब्दों को साहित्यिक शब्दावली के निकट लाने का सफल प्रयास किया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ साहित्यदर्पण, पृ0 40;
- ↑ साहित्यदर्पण ,पृ0 48
- ↑ साहित्य दर्पण, पृ0 75
- ↑ सुजान रसखान, 4
- ↑ सुजान रसखान, 5
- ↑ सुजान रसखान, 7
- ↑ सुजान रसखान, 10
- ↑ सुजान रसखान,8
- ↑ सुजान रसखान,12
- ↑ सुजान रसखान, 20
- ↑ सुजान रसखान, 21
- ↑ सुजान रसखान, 46
- ↑ सुजान रसखान, 183
- ↑ मुख्यार्थ बाधे तद्युक्तो ययान्योऽर्थ: प्रतीयते। रूढे: प्रयोजनाद्वाऽसौ लक्षणा शक्तिरर्पिता॥ साहित्यदर्पण, पृ0 48
- ↑ काव्य-दर्पण, पृ0 22
- ↑ सुजान रसखान, 28
- ↑ सुजान रसखान, 41
- ↑ सुजान रसखान, 55
- ↑ सुजान रसखान, 100
- ↑ सुजान रसखान, 181
- ↑ काव्य-दर्पण, पृ0 23
- ↑ सुजान रसखान, 21
- ↑ सुजान रसखान,30
- ↑ सुजान रसखान, 38
- ↑ सुजान रसखान, 27
- ↑ सुजान रसखान, 60
- ↑ काव्य-दर्पण, पृ0 24
- ↑ सुजान रसखान, 46
- ↑ काव्य दर्पण, पृ0 25
- ↑ सुजान रसखान, 5
- ↑ सुजान रसखान, 43
- ↑ सुजान रसखान, 98
- ↑ सुजान रसखान, 138
- ↑ विरतास्वभिधाद्यासु ययाऽर्थों बोध्यते पर: सा वृत्तिव्यंजना नाम शब्दस्यार्थादिकस्य च॥ साहित्यदर्पण, पृ0 75
- ↑ सुजान रसखान,9
- ↑ सुजान रसखान
- ↑ सुजान रसखान, 18
- ↑ सुजान रसखान, 21
- ↑ सुजान रसखान, 24
- ↑ सुजान रसखान, 42
- ↑ सुजान रसखान, 45
- ↑ सुजान रसखान, 54
- ↑ सुजान रसखान,101
- ↑ सुजान रसखान,127
- ↑ सुजान रसखान, 142
- ↑ सुजान रसखान, 143
- ↑ सुजान रसखान, 157
- ↑ सुजान रसखान, 171
- ↑ सुजान रसखान, 185
- ↑ सुजान रसखान, 194
- ↑ 'रसखान का काव्य अभिधा का काव्य है'।
- ↑ साहित्य दर्पण, पृ0 674
- ↑ सुजान रसखान, 42
- ↑ सुजान रसखान, 44
- ↑ सुजान रसखान, 204
- ↑ ब्रजभाषा के कृष्ण भक्ति काव्य में अभिव्यंजनावाद, पृ0 185
- ↑ सुजान रसखान, 144
- ↑ सुजान रसखान, 82
- ↑ सुजान रसखान, 106
- ↑ सुजान रसखान, 98
- ↑ सुजान रसखान, 3
- ↑ सुजान रसखान, 66
- ↑ सुजान रसखान, 165
- ↑ सुजान रसखान, 183
- ↑ सुजान रसखान, 49
- ↑ सुजान रसखान, 35
- ↑ सुजान रसखान, 141
- ↑ सुजान रसखान, 15
- ↑ सुजान रसखान, 127
- ↑ सुजान रसखान, 126
- ↑ रसखान (जीवन और कृतित्व), पृ. 185
- ↑ सुजान रसखान, 189
- ↑ सुजान रसखान, 191
- ↑ सुजान रसखान, 211
- ↑ सुजान रसखान, 43
- ↑ सुजान रसखान, 12
- ↑ सुजान रसखान, 86
- ↑ सुजान रसखान, 4
- ↑ सुजान रसखान, 167
- ↑ काव्यकल्पद्रुम, भाग 1, पृ0 339
- ↑ सुजान रसखान, 172
- ↑ सुजान रसखान, 158
- ↑ काव्य कल्पद्रुम, पृ0 640
- ↑ सुजान रसखान, 202
- ↑ सुजान रसखान, 10
- ↑ सुजान रसखान, 167
- ↑ सुजान रसखान, 1
- ↑ सुजान रसखान, 21
- ↑ सुजान रसखान, 11
- ↑ सुजान रसखान, 43
- ↑ सुजान रसखान, 58
- ↑ सुजान रसखान, 107
- ↑ सुजान रसखान, 99
- ↑ सभा काशी
- ↑ विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रसखानि (ग्रंथावली) में दोनों को ब्रज भाषा का रूप देकर प्रयुक्त किया है। सुजान रसखान, पद 99