महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 85 श्लोक 39-54

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पंचाशीतितम (85) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व:पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 39-54 का हिन्दी अनुवाद


जिस पक्ष में भीमसेन, अर्जुन, वृष्णिवीर सात्यकि, पांचालवीर उत्तमौजा, दुर्जय युधामन्यु , दुर्घर्ष धृष्‍टद्युम्न, अपरा-जीत वीर शिखण्डी, अश्‍मक, केकय राजकुमार, सोमक पुत्र क्षत्र-धमा्र, चेदिराज धृष्‍टकेतु, चेकितान, काशिराज के पुत्र अभिभू, द्रोपदी के पांचों पुत्र, राजा विराट और महारथी द्रुपद हैं, जहां पुरुषसिंह नकुल, सहदेव और मन्त्रदाता मधुसूदन हैं, वहां इस संसार में कौन ऐसा वीर है, जो जीवित रहने की इच्छा रखकर इन वीरों के साथ कभी युद्ध करेगा।अथवा दुर्योधन , कर्ण, सुबलपुत्र शकुनि तथा चैथे दुःशासन के सिवा मैं पाचवें किसी ऐसे वीरको नहीं देखता , जो दिव्यास्त्र प्रकट करने वाले मेरे इन शत्रुओं का वेग सह सके। रथ पर बैठे हुए भगवान् श्रीकृष्ण हाथों में बागडोर लेकर जिनका सारथ्य करते हैं तथा जिनकी ओर से कवचधारी अर्जुन युद्ध करने वाले हैं, उनकी कभी पराजय नही हो सकती। संजय । यह दुर्योधन मेरे उन विलापों को कभी याद नही करेगा। तुम कहते हो कि पुरषसिंह भीष्‍म और द्रोणचार्य मारे गये। विदुर ने भविष्‍य में होने वाली दूरतक की घटनाओं को ध्यान में रखकर जो बातें कही थी उनही के अनुसार इस समय हमें यह फल मिल रहा हैं। इसे देखकर मैं यह समझता हू कि मेरे पुत्र सात्यकि और अर्जुन के द्वारा अपनी सेना का संहार देखते हुए शोक कर रहे होंगे। बहुत-से रथो की बैठको को रथियों से शून्य देखकर मेरे पुत्र शोक में डूब गये होंगे;ऐसा मेरा विश्‍वास है। जैसे ग्रीष्‍म ऋृतु में वायु का सहारा पाकर बढी हुई अग्नि सूखे घास को जला डालती है, उसी प्रकार अर्जुन मेरी सेना को दुग्ध कर डालेंगे। संजय। तुम कथा कहने में कुशल हो;अतः युद्ध का सारा समाचार मुझसे कहो। तात। जब तुम लोग अभिमन्यु के मारे जाने पर अर्जुन का महान् अपराध करके सायंकाल में शिविर को लौटे थे, उस समय तुम्हारे मन की क्या अवस्था थी। । तात गाण्डीवधारी अर्जुन का महान् अपकार करके मेरे पुत्र युद्ध में उनके पराक्रम को कभी नही सह सकेंगे। कौन -सा कर्तव्य निश्रित किया? कर्ण कर्ण दुःशासन तथा शकुनि ने क्या करने की सलाह दी। तात संजय । युद्ध में मेरे मूर्ख पुत्र दुर्योधन के अत्यन्त अन्याय से एकत्र हुए मेरे अन्य सभी पुत्रों पर जो कुछ बीता था तथा लोभ का अनुसरण करने वाले, क्रोध से विकृत चित-वाले, राग से दूषित हदय वाले राज्यकामी मूढ और दुर्बुद्धि दुर्योधन जो न्याय अथवा अन्याय किया हो, वह सब मुझसे कहो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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