महाभारत शल्य पर्व अध्याय 10 श्लोक 1-20

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

दशम (10) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

नकुलद्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध तथा उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध

संजय कहते हैं- राजन् उस सेना को इस तरह भागती देख प्रतापी मद्रराज शल्य ने अपने सारथि से कहा-सूत ! मेरे महावेगशाली घोडो़ को शीघ्रतापर्वूक आगे बढ़ाओं। देखो, ये सामने मस्तक पर शोभशाली श्वेत छत्र लगाये हुए पाण्डवपुत्र राजा युधिष्ठिर खडे़ हैं । सारथे ! मुझे शीघ्र उनके पास पहुँचा दो। फिर मेरा बल देखो। आज युद्ध में कुन्तीकुमार युधिष्ठिर मेरे सामने कदापि नहीं ठहर सकते । उनके ऐसा कहने पर मद्रराज का सारथि वहीं जा पहुँचा, जहाँ सत्यप्रतिज्ञ धर्मपुत्र युधिष्ठिर खडे़ थे । साथ ही पाण्डवों की तरह विशाल सेना भी सहसा वहाँ आ पहुँची। परन्तु जैसे तट उमड़ते हुए समुद्र को रोक देता है, उसी प्रकार अकेले राजा शल्य ने रणभूमि में उस सेना को आगे बढ़ने से रोक दिया । माननीय नरेश ! जैसे किसी नदी का वेग किसी पर्वत के पास पहुँचकर अवरुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार पाण्डवों की सेना का वह समुदाय युद्ध में निवृत्ति की सीमा नियत करके पुनःरणभूमि में लौट आये । राजन् ! पृथक्-पृथक् सेनाओं की व्यूह-रचना कर संग्राम वे सभी सैनिक लौट आये, तब दोंनों दलों में महाभयंकर संग्राम छिड़ गया, जहाँ पानी की तरह खून बहाया जा रहा था । इसी तरह रणदुर्भद नकुल ने कर्णपुत्र चित्रसेन पर आक्रमण किया। विचित्र धनुष धारण करने वाले वे दोनों वीर एक-दूसरे से भिड़कर दक्षिण तथा उत्तर की ओर से आये हुए दो बडे़ जलवर्षक मेघों के समान परस्पर बाणरूपी जल की बौछार करने लगे । उस समय वहाँ पाण्डुपुत्र नकुल और कर्णकुमार चित्रसेन में मुझे कोई अन्तर नहीं दिखायी देता था। दोनों ही अस्त्र-शस्‍त्रों के विद्वान्, बलवान् और रथयुद्ध में कुशल थे। परस्पर घात में लगे हुए वे दोनों वीर एक दूसरे के छिद्र (प्रहार के योग्य अवसर) ढूँढ़ रहे थे । महाराज ! इतने ही में चित्रसेन एक पानीदार पैने भल्ल के द्वारा नकुल के धनुष को मुट्ठी पकड़ने की जगह से काट दिया। धनुष कट जाने पर उनके ललाट में शिला पर तेज किये हुए सुनहरे पंखले तीन बाणों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। उस समय चित्रसेन में चित्त में तनिक भी घबराहट नहीं हुई । उसने अपने तीखे बाणों द्वारा नकुल के घोडों को भी मृत्यु के हवाले कर दिया तथा तीन-तीन बाणों से उनके ध्वज और सारथि को भी काट गिराया । राजन् ! शत्रु की भुजाओं से छूटकर ललाट में घँसे हुए उन तीन बाणों के द्वारा नकुल तीन शिखरों वाले पर्वत के समान शोभा पाने लगे । धनुष कट जाने पर रथहीन हुए वीर नकुल हाथ में ढाल-तलवार लेकर पर्वत के शिखर से उतरने वाले सिंह के समान रथ के नीचे आ गये । उस समय चित्रसेन पैदल आक्रमण करनेवाले नकुल के ऊपर बाणों की वृष्टि करने लगा। परन्तु शीघ्रतापूर्वक पराक्रम प्रकट करने वाले नकुल ने ढाल के द्वारा ही रोककर उस बाण वर्षा को नष्ट कर दिया । विचित्र रीति से युद्ध करने वाले महाबाहु नकुल परिश्रम को जीत चुके थे। वे सारी सेना के देखते-देखते चित्रसेन के रथ के समीप जा उसपर चढ़ गये । तत्पश्चात् पाण्डुकुमार ने सुन्दर नासिका और विशाल नेत्रों युक्त कुण्डल और मुकुटसहित चित्रसेन के मस्तक को धड़ से काट लिया । सूर्य के समान तेजस्वी चित्रसेन रथ के पिछले भाग में गिर पड़ा। चित्रसेन को मारा गया देख वहाँ खडे़ हुए पाण्डव महारथी नकुल को साधुवाद देने और प्रचुरमात्रा में सिंहनाद करने लगे ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख