महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 7 श्लोक 1-15

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

सप्तम (7) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा

धृतराष्ट्र ने कहा - संजय ! प्रधान पुरुष भीष्म, द्रोण और कर्ण आदि के मारे जाने से मेरी सेना का घमंड चूर - चूर हो गया है। मैं देखता हूँ, अब यह बच नहीं सकेगी। वे दोनों कुरुश्रेष्ठ महाधनुर्धर वीर भीष्म और द्रोणाचार्य मेरे लिये मारे गये; यह सुन लेने पर इस अधम जीवन को रखने का अब कोई प्रयोजन नहीं है। जिसकी दोनों भुजाओं में समान रूप से दस - दस हजार हाथियों का बल था, युद्ध में शोभा पाने वाले उस राधा पुत्र कर्ण के मारे जाने का समाचार सुनकर मैं इस शोक को सहन नहीं कर पाता हूँ। संजय ! जैसा के तुम कह रहे हो कि मेरी सेना के प्रमुख वीर मारे जा चुके हैं, उसी प्रकार यह भी बताओ कि कौन कौर वीर नहीं मारे गये हैं। इस सेना में जो कोई भी श्रेष्ठ वीर जीवित हैं, उनका परिचय दो। आज तुमने जिन लोगों के नाम लिखे हैं, उनकी मृत्यु हो जाने पर तो जो भी अब जीवित हैं वे सभी मरे हुए के ही समान हैं, ऐसा मेरा विश्वास है।
संजय कहते हैं - राजन् ! द्विजश्रेष्ठ द्रोणाचार्य ने जिस वीर को चित्र ( अद्भुत ), शुभ्र ( प्रकाशमान ), दिव्य तथा धनुर्वेदोक्त चार प्रकार के महान् अस्त्र समर्पित किये थे, जो सफल प्रयत्न करने वाला महारथी वीर है, जिसके हाथ बड़ी शीघ्रता से चलते हैं, जिसका धनुष, जिसकी मुट्ठी और जिसके बाण सभी सुदृढ़ हैं, वह वेगशाली तथा पराक्रमी द्रोण पुत्र अश्वत्थामा आपके लिये युद्ध की इच्छा रखकर समर भूमि में डटा हुआ है। सात्वत कुल का श्रेष्ठ महारथी, आनर्त निवासी, भोजवंशी अस्त्रवेत्ता, हृदिक पुत्र कृतवर्मा भी आपके लिये युद्ध करने को दृढ़ निश्चय से डटा हुआ है। जिनहें युद्ध में विचलित करना अत्यन्त कठिन है, जो आपके सैनिकों के प्रथम सेनापति एवं वेगशाली वीर हैं, जो अपनी बात सच्ची कर दिखाने के लिये अपने सगे भानजे पाण्डवों को छोडत्रकर तथा अज्ञात शत्रु युधिष्ठिर के सामने युद्ध स्थलमें सूत पुत्र कर्ण के तेज और उत्साह को नष्ट करने की प्रतिज्ञा करके आपके पक्ष में चले आये थे, वे बलवान् दुर्धर्ष तथा इन्द्र के समान पराक्रमी ऋतायन पुत्र शल्य आपके लिये युद्ध करने को तैयार हैं।
अच्छी नस्ल के सिंधी, पहाड़ी, दरियाई, काबुली और वनायु देश के बहुसंख्यक घोड़ों तथा अपनी सेना के साथ गान्धारराज शकुनि आपके लिये युद्ध करने को डटा हुआ है। राजन् ! अनेक प्रकार के विचित्र अस्त्रों द्वारा युद्ध करने वाले, गौतम वंशीय शरद्वान् के पुत्र महाबाहु कृपाचार्यद भी महान् भार सहन करने में समर्थ विचित्र धनुष हाथ में ल्रकर आपके लिये यु;द्ध करने को तैयार हैं। कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर ! महारथी केकय राजकुमार भी सुन्दर घोड़ों से जुते हुए, ध्वजा - पताकाओं से सुशोभित रथपर आरुढ़ हो आपके लिये युद्ध करने की इच्छा से डटा हुआ है। नरेन्द्र ! कुरुकुल का प्रमुख वीर आपका पुत्र पुरुमित्र अग्नि और सूर्य के समान कान्तिमान् रथ पर आरूढ़ हो बिना बादलों के आकाश मे ंसूर्य के समान प्रकाशित होता हुआ युद्ध के लिये खड़ा है। हाथियों की सेना के बीच जो अपने सुवर्ण भूषित रथ के द्वारा उपसिथत हो सिंह के समान सुशोभित होता हे, वह राजा दुर्योधन भी समरांगण में जूझने के लिये खड़ा है।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख