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महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-15

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त्रयोविंश (23) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद


प्राण, अपान आदि का संवाद और ब्र्रह्माजी का सबकी श्रेष्ठता बतलाना

ब्राह्मण ने कहा- प्रिये! अब पंचहोताओं के यज्ञ का जैसा विधान है, उसके विषय में एक प्राचीन दृष्टान्त बतलाया जाता है। प्राण, अपान, उदान, समान और व्यान- ये पाँचों प्राण पाँच होता हैं। विद्वान् पुरुष इन्हें सबसे श्रेष्ठ मानते हैं। ब्राह्मणी बोली- नाथ! पहले तो मैं समझती थी कि स्वाभावत: सात होता हैं, किंतु अब आपके मुँह से पाँच हाताओं की बात मालूम हुई। अत: ये पाँचों होता किस प्रकार हैं? आप इनकी श्रेष्ठता का वर्णन कीजिये। ब्राह्मण ने कहा- प्रिये! वायु प्राण के द्वारा पुष्ट होकर अपान रूप, अपान के द्वारा पुष्ट होकर व्यान रूप, व्यान से पुष्ट होकर उदान रूप, उदान से परिप्ुष्ट होकर समान रूप होता है। एक बार इन पाँचों वायुओं ने सबके पूर्वज पितामह ब्रह्माजी से प्रश्न किया- ‘भगवन! हम में जो श्रेष्ठ हो उसका नाम बता दीजिये, वही हम लोगों में प्रधान होगा’। ब्रह्माजी ने कहा- प्राणधारियों के शरीर में स्थित हुए तुम लोगों में से जिसका लय हो जाने पर सभी प्राण लीन हो जायँ और जिसके संचरित होने पर सब के सब संचार करने लगें, वही श्रेष्ठ है। अब तुम्हारी जहाँ इच्छा हो, जाओ। यह सुनकर प्राणवायु ने अपान आदि से कहा- मेरे लीन होने पर प्राणियों के शरीर में स्थित सभी प्राण लीन हो जाते हैं तथा मेरे संचरित होने पर सब के सब संचार करने लगते हैं, इसलिये मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ। देखा, अब मैं लीन हो रहा हूँ (फिर तुम्हारा भी लय हो जायगा)। ब्राह्मण कहते हैं- शुभे! यों कहकर प्राणवायु थोड़ी देर के लिये छिप गया और उसके बाद फिर चलने लगा। तब समान और उदानवायु उससे पुन: बोले- ‘प्राण! जैसे हम लोग इस शरीर में व्याप्त हैं, उस तरह तुम इस शरीर में व्याप्त होकर नहीं रहते। इसलिये तु हम लोगों से श्रेष्ठ नहीं हो। केवल अपान तुम्हारे वश में है (अत: तुम्हारे लय होने से हमारी कोई हानि नहीं हो सकती)।’ तब प्राण पुन: पूर्ववत् चलने लगा। तदनन्तर अपान बोलो। अपान ने कहा- मेरे लीन होने पर प्राणियों के शरीर में स्थित सभी प्राण लीन हो जाते हैं तथा मेरे संचरित होने पर सब के सब संचार करने लगते हैं। इसलिये मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ। देखो, अब मैं लीन हो रहा हूँ (फिर तुम्हारा भी लय हो जायगा)। ब्राह्मण कहते हैं- तब व्यान, और उदान ने पूर्वोक्त बात कहने वाले अपान से कहा- ‘अपान! केवल प्राण तुम्हारे अधीन है, इसलिये तुम हमसे श्रेष्ठ नहीं हो सकते’। यह सुनकर अपान भी पूर्ववत् चलने लगा। तब व्यान ने उससे फिर कहा- ‘मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ। मेरी श्रेष्ठता का कारण क्या है। वह सुनो। ‘मेरे लीन होने पर प्राणियों के शरीर में स्थित सभी प्राण लीन हो जाते हैं तथा मेरे संचरित होने पर सब के सब संचार करने लगते हैं। इसलिये मैं ही सबसे श्रेष्ठ हूँ। देखो, अब मैं लीन हो रहा हूँ (फिर तुम्हारा भी लय हो जायगा)’। ब्राह्मण कहते हैं- तब व्यान कुछ देर के लिये जीन हो गया, फिर चलने लगा। उस समय प्राण, अपान, उदान और समान ने उससे कहा- ‘व्यान! तुम हमसे श्रेष्ठ नहीं हो, केवल समान वायु तुम्हारे वश में है’।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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