"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 30 श्लोक 1-16" के अवतरणों में अंतर

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पितरों ने कहा- ब्राह्मणश्रेष्ठ! इसी विषय में एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है, उसे सुनकर तुम्हें वैसा ही आचरण करना चाहिये।
 
पितरों ने कहा- ब्राह्मणश्रेष्ठ! इसी विषय में एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है, उसे सुनकर तुम्हें वैसा ही आचरण करना चाहिये।
 
पहले की बात है, अलर्क नाम से प्रसिद्ध एक राजर्षि थे, जो बड़े ही तपस्वी, धर्मज्ञस, सत्यावादी, महात्मा और दृढ़प्रतिज्ञ थे।
 
पहले की बात है, अलर्क नाम से प्रसिद्ध एक राजर्षि थे, जो बड़े ही तपस्वी, धर्मज्ञस, सत्यावादी, महात्मा और दृढ़प्रतिज्ञ थे।
उन्होंने अपने धनुष की सहायता से समुद्र पर्यन्त इस पृथ्वी को जीतकर अत्यन्त दुकष्कर पराक्रम कर दिखाया था। इसके पश्चात उनका मन सूक्षमतत्त्व की खोज में लगा।
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उन्होंने अपने धनुष की सहायता से समुद्र पर्यन्त इस पृथ्वी को जीतकर अत्यन्त दुकष्कर पराक्रम कर दिखाया था। इसके पश्चात् उनका मन सूक्षमतत्त्व की खोज में लगा।
 
महामते! वे बड़े-बड़े कर्मों का आरम्भ त्याग कर एक वृक्ष के नीचे जा बैठे और सूक्ष्मतत्त्व की खोज के लिये इस प्रकार चिन्ता करने लगे।
 
महामते! वे बड़े-बड़े कर्मों का आरम्भ त्याग कर एक वृक्ष के नीचे जा बैठे और सूक्ष्मतत्त्व की खोज के लिये इस प्रकार चिन्ता करने लगे।
 
अलर्क कहने लगे- मुझे मन से ही बल प्राप्त हुआ है, अत: वही सबसे प्रबल है। मन को जीत लेने पर ही मुझे स्थायी विजय प्राप्त हो सकती है। मैं इन्द्रियरूपी शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ, इसलिये बाहर के शत्रुओं पर हमला न करके इन भीतरी शत्रुओं को ही अपने बाणों का निशाना बनाऊँगा।
 
अलर्क कहने लगे- मुझे मन से ही बल प्राप्त हुआ है, अत: वही सबसे प्रबल है। मन को जीत लेने पर ही मुझे स्थायी विजय प्राप्त हो सकती है। मैं इन्द्रियरूपी शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ, इसलिये बाहर के शत्रुओं पर हमला न करके इन भीतरी शत्रुओं को ही अपने बाणों का निशाना बनाऊँगा।
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अलर्क ने कहा- मेरी यह नासिका अनेक प्रकार की सुगन्धियों का अनुभव करके भी फिर उन्हीं की इच्छा करती है, इसलिये इन तीखे बाणों मैं इस नासिका पर ही छोडूँगा।
 
अलर्क ने कहा- मेरी यह नासिका अनेक प्रकार की सुगन्धियों का अनुभव करके भी फिर उन्हीं की इच्छा करती है, इसलिये इन तीखे बाणों मैं इस नासिका पर ही छोडूँगा।
 
नासिका बोली- अलर्क! ये बाण मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इनसे तो तुम्हारे ही मर्म विदीर्ण होंगे और मर्म स्थानों का भेदन हो जाने पर तुम्हीं मरोगे, अत: तुम दूसरे प्रकार के बाणों का अनुसंधान करो, जिससे तुम मुझे मार सकोगे।
 
नासिका बोली- अलर्क! ये बाण मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इनसे तो तुम्हारे ही मर्म विदीर्ण होंगे और मर्म स्थानों का भेदन हो जाने पर तुम्हीं मरोगे, अत: तुम दूसरे प्रकार के बाणों का अनुसंधान करो, जिससे तुम मुझे मार सकोगे।
नासिका का यह कथन सुनकर अलर्क कुछ देर विचार करने के पश्चात (जिह्वा को लक्ष्य करके) कहने लगे।
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नासिका का यह कथन सुनकर अलर्क कुछ देर विचार करने के पश्चात् (जिह्वा को लक्ष्य करके) कहने लगे।
 
अलर्क ने कहा- यह रसना स्वादिष्ट रसों का उपभोग करके फिर उन्हें ही पाना चाहती है। इसलिये अब इसी के ऊपर अपने तीखे सायकों का प्रहार करूँगा।
 
अलर्क ने कहा- यह रसना स्वादिष्ट रसों का उपभोग करके फिर उन्हें ही पाना चाहती है। इसलिये अब इसी के ऊपर अपने तीखे सायकों का प्रहार करूँगा।
 
जिह्वा बोली- अलर्क! ये बाण मुझे किसी प्रकार नहीं छेछ सकते। ये तो तुम्हारे ही मर्म स्थानों को बींधेंगे। मर्म स्थानों के बिंध जाने पर तुम्हीं मरोगे। अत: दूसरे प्रकार के बाणों का प्रबन्ध सोचो, जिनकी सहायता से तुम मुझे मार सकोगे।
 
जिह्वा बोली- अलर्क! ये बाण मुझे किसी प्रकार नहीं छेछ सकते। ये तो तुम्हारे ही मर्म स्थानों को बींधेंगे। मर्म स्थानों के बिंध जाने पर तुम्हीं मरोगे। अत: दूसरे प्रकार के बाणों का प्रबन्ध सोचो, जिनकी सहायता से तुम मुझे मार सकोगे।

07:31, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

त्रिंय (30) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्रिंय अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


अलर्क के ध्यानयोग का उदाहरण देकर पितामहों का परशुरामजी को समझाना और परशुरामजी का तपस्या के द्वारा सिद्धि प्राप्त करना

पितरों ने कहा- ब्राह्मणश्रेष्ठ! इसी विषय में एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया जाता है, उसे सुनकर तुम्हें वैसा ही आचरण करना चाहिये। पहले की बात है, अलर्क नाम से प्रसिद्ध एक राजर्षि थे, जो बड़े ही तपस्वी, धर्मज्ञस, सत्यावादी, महात्मा और दृढ़प्रतिज्ञ थे। उन्होंने अपने धनुष की सहायता से समुद्र पर्यन्त इस पृथ्वी को जीतकर अत्यन्त दुकष्कर पराक्रम कर दिखाया था। इसके पश्चात् उनका मन सूक्षमतत्त्व की खोज में लगा। महामते! वे बड़े-बड़े कर्मों का आरम्भ त्याग कर एक वृक्ष के नीचे जा बैठे और सूक्ष्मतत्त्व की खोज के लिये इस प्रकार चिन्ता करने लगे। अलर्क कहने लगे- मुझे मन से ही बल प्राप्त हुआ है, अत: वही सबसे प्रबल है। मन को जीत लेने पर ही मुझे स्थायी विजय प्राप्त हो सकती है। मैं इन्द्रियरूपी शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ, इसलिये बाहर के शत्रुओं पर हमला न करके इन भीतरी शत्रुओं को ही अपने बाणों का निशाना बनाऊँगा। यह मन चंचलता के कारण अभी मनुष्यों से तरह-तरह के कर्म कराता है, अत: अब मैं मन पर ही तीखे बाणों का प्रहार करूँगा। मन बोला- अलर्क! तुम्हारे ये बाण मुझे किसी तरह नहीं बींध सकते। यदि इन्हें चलाओंगे तो ये तुम्हारे ही मर्मस्थानों को चीर डालेंगे और मर्म स्थानों के जीरे जाने पर तुम्हारी ही मृत्यु होगी, अत: तुम अन्य प्रकार के बाणों का विचार करो, जिनसे तुम मुझे मार सकोगे। यह सुनकर अलर्क ने थोड़ी देर तक विचार किया, इसके बाद वे (नासिका को लक्ष्य करके) बोले। अलर्क ने कहा- मेरी यह नासिका अनेक प्रकार की सुगन्धियों का अनुभव करके भी फिर उन्हीं की इच्छा करती है, इसलिये इन तीखे बाणों मैं इस नासिका पर ही छोडूँगा। नासिका बोली- अलर्क! ये बाण मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इनसे तो तुम्हारे ही मर्म विदीर्ण होंगे और मर्म स्थानों का भेदन हो जाने पर तुम्हीं मरोगे, अत: तुम दूसरे प्रकार के बाणों का अनुसंधान करो, जिससे तुम मुझे मार सकोगे। नासिका का यह कथन सुनकर अलर्क कुछ देर विचार करने के पश्चात् (जिह्वा को लक्ष्य करके) कहने लगे। अलर्क ने कहा- यह रसना स्वादिष्ट रसों का उपभोग करके फिर उन्हें ही पाना चाहती है। इसलिये अब इसी के ऊपर अपने तीखे सायकों का प्रहार करूँगा। जिह्वा बोली- अलर्क! ये बाण मुझे किसी प्रकार नहीं छेछ सकते। ये तो तुम्हारे ही मर्म स्थानों को बींधेंगे। मर्म स्थानों के बिंध जाने पर तुम्हीं मरोगे। अत: दूसरे प्रकार के बाणों का प्रबन्ध सोचो, जिनकी सहायता से तुम मुझे मार सकोगे। यह सुनकर अलर्क कुछ देर तक सोचते विचारते रहे, फिर (त्वचा पर कुपित होकर) बोले। अलर्क ने कहा- यह त्वचा नाना प्रकार के स्पर्शों का अनुभव करके फिर उन्हीं की अभिलाषा किया करती है, अत: नाना प्रकार के बाणों से मारकर इस त्वचा को ही विदीर्ण कर डालूँगा। त्वाचा बोली- अलर्क! ये बाण किसी प्रकार मुझे अपना निशाना नहीं बना सकते। ये तो तुम्हारा ही मर्म विदीर्ण करेंगे और मर्म विदीर्ण होने पर तुम्हीं मौत के मुख में पड़ोगे। मुझे मारने के लिये तो दूसरी तरह के बाणों की व्यवस्था सोचो, जिनसे तुम मुझे मार सकोगे।










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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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