"गीता 15:14" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मैं ही सब प्रणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर [[अग्नि देव|अग्नि]]<ref>अग्निदेवता [[यज्ञ]] के प्रधान अंग हैं। ये सर्वत्र [[प्रकाश]] करने वाले एवं सभी पुरुषार्थों को प्रदान करने वाले हैं।</ref> रूप होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ ।।14।। | |
− | मैं ही सब प्रणियों के शरीर में स्थित रहने वाला प्राण और अपान से संयुक्त वैश्वानर < | ||
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11:07, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-15 श्लोक-14 / Gita Chapter-15 Verse-14
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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