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'''शुचींद्रम शक्तिपीठ''' [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में से एक है। [[हिन्दू धर्म]] के [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जहां-जहां [[सती]] के अंग के टुकड़े, धारण किए [[वस्त्र]] या [[आभूषण]] गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थान]] कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] का वर्णन है।
 
==स्थिति==
 
==स्थिति==
[[कन्याकुमारी]] के त्रिसागर संगम स्थल से 13 किलोमीटर दूर शुचींद्रम में स्थित स्थाणु-शिव के मंदिर में ही शुचि शक्तिपीठ स्थापित है। यहाँ सती के ऊर्ध्वदंत<ref>मतांतर से पृष्ठ भाग</ref> गिरे थे। यहाँ की शक्ति 'नारायणी' तथा भैरव 'संहार या 'संकूर' हैं। मान्यता है कि यहाँ देवी अब तक तपस्यारत हैं।  
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[[तमिलनाडु]] में [[कन्याकुमारी]] के 'त्रिसागर' संगम स्थल से 13 किलोमीटर की दूरी पर शुचींद्रम में स्थित स्थाणु-शिव के मंदिर में ही शुचि शक्तिपीठ स्थापित है। यहाँ सती के 'ऊर्ध्वदंत'<ref>मतांतर से पृष्ठ भाग</ref> गिरे थे। यहाँ की शक्ति 'नारायणी' तथा भैरव 'संहार या 'संकूर' हैं। मान्यता है कि यहाँ देवी अब तक तपस्यारत हैं।
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शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम् क्षेत्र भी कहते हैं। [[महर्षि गौतम]] के शाप से [[इंद्र]] को यहीं मुक्ति मिली थी, वह शुचिता (पवित्रता) को प्राप्त हुए, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा।  
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शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम् क्षेत्र भी कहते हैं। [[महर्षि गौतम]] के शाप से [[इंद्र]] को यहीं मुक्ति मिली थी, वह शुचिता (पवित्रता) को प्राप्त हुए, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा।
 
==पौराणिक संदर्भ==
 
==पौराणिक संदर्भ==
पौराणिक आख्यान है कि [[बाणासुर]] ने घोर तपस्या करके [[शिव]] से अमरत्व का वरदान माँगा। शिव ने कहा कि वह कुमारी कन्या के अतिरिक्त सभी के लिए अजेय होगा। वर पाकर वह उत्पाती हो गया तथा [[देवता|देवताओं]] को भी परास्त कर डाला, जिसके देवलोक में भी त्राहि-त्राहि मच गई। इस पर देवगण [[विष्णु]] की शरण में गए और उनके परामर्श पर [[महायज्ञ]] किया, जिससे [[दुर्गा|भगवती दुर्गा]] एक अंश से कन्या रूप में प्रकटीं। देवी ने शिव को पति रूप में पाने हेतु दक्षिण [[समुद्र]] [[तट]] पर तप किया और शिव ने उन्हें वांछित वर दिया। इस पर देवताओं को चिंता हुई कि यदि कन्या का शिव से [[विवाह]] हो गया, तो बाणासुर का वध कैसे होगा? अतः [[नारद]] ने शिव को शुचींद्रम तीर्थ में प्रपंच में उलझा दिया, जिससे विवाह मुहूर्त निकल गया। इससे शिव वहाँ पर स्थाणु रूप में स्थित हो गए। देवी ने पुनः तप प्रारंभ किया और मान्यता है कि वह अब तक कन्यारूप में तपस्यारत हैं। इधर अपने दूतों से देवी के सौंदर्य की चर्चा सुन बाणासुर ने उसने विवाह का प्रस्ताव किया, तब उसका देवी से युद्ध हुआ और अंततः बाणासुर का वध देवी के हाथों हो गया।  
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पौराणिक आख्यान है कि [[बाणासुर]] ने घोर तपस्या करके [[शिव]] से अमरत्व का वरदान माँगा। शिव ने कहा कि वह कुमारी कन्या के अतिरिक्त सभी के लिए अजेय होगा। वर पाकर वह उत्पाती हो गया तथा [[देवता|देवताओं]] को भी परास्त कर डाला, जिसके देवलोक में भी त्राहि-त्राहि मच गई। इस पर देवगण [[विष्णु]] की शरण में गए और उनके परामर्श पर [[महायज्ञ]] किया, जिससे [[दुर्गा|भगवती दुर्गा]] एक अंश से कन्या रूप में प्रकटीं। देवी ने शिव को पति रूप में पाने हेतु दक्षिण [[समुद्र]] [[तट]] पर तप किया और शिव ने उन्हें वांछित वर दिया। इस पर देवताओं को चिंता हुई कि यदि कन्या का शिव से [[विवाह]] हो गया, तो बाणासुर का वध कैसे होगा? अतः [[नारद]] ने शिव को शुचींद्रम तीर्थ में प्रपंच में उलझा दिया, जिससे विवाह मुहूर्त निकल गया। इससे शिव वहाँ पर स्थाणु रूप में स्थित हो गए। देवी ने पुनः तप प्रारंभ किया और मान्यता है कि वह अब तक कन्यारूप में तपस्यारत हैं। इधर अपने दूतों से देवी के सौंदर्य की चर्चा सुन बाणासुर ने उसने विवाह का प्रस्ताव किया, तब उसका देवी से युद्ध हुआ और अंततः बाणासुर का वध देवी के हाथों हो गया।
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==देवी स्वरूप==
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इस [[शक्तिपीठ]] में [[सती|माता सती]] शक्ति नारायणी रूप में, जबकि भगवान भोलेनाथ संहार भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवती देवी ने महाराक्षस [[बाणासुर]] का वध किया था और यहीं पर [[इन्द्र|देवराज इन्द्र]] को [[महर्षि गौतम]] के शाप से मुक्ति मिली थी। यहां के मंदिर में नारायणी मां की भव्य एवं भावोत्पादक प्रतिमा है और उनके हाथ में एक माला है। निज मंदिर में भद्रकाली जी का मंदिर भी है। ये भगवती देवी की सखी मानी जाती हैं।
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==पूजा-उपासना==
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माता के इस शक्तिपीठ में [[पूजा]]-उपासना का एक अलग महत्व है। आस्थावान भक्तों के अनुसार यहां उपासना करने से वैदिक और अन्य [[मंत्र]] सिद्ध होते हैं। [[नवरात्र]], चैत्र पूर्णिमा, [[आषाढ़]] एवं आश्विन आमवस्या, [[शिवरात्रि]] आदि विशेष सुअवसरों पर यहां विशेष उत्सव होते हैं, जिसमें देवी मां का हीरों से श्रृंगार किया जाता है। [[कन्याकुमारी]] में [[स्नान]] करने से भक्तों के सारे पाप मिट जाते हैं और वे पवित्र हो जाते हैं।<ref>{{cite web |url= http://dharm.raftaar.in/Religion/Hinduism/Religious-Places/Suchindram-Shakti-Peeth-Temple|title= शुचींद्रम मंदिर, शक्तिपीठ|accessmonthday= 25 सितम्बर|accessyear= 2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=रफ़्तार|language= हिन्दी}}</ref>
  
 
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12:33, 25 सितम्बर 2014 का अवतरण

शुचींद्रम शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

स्थिति

तमिलनाडु में कन्याकुमारी के 'त्रिसागर' संगम स्थल से 13 किलोमीटर की दूरी पर शुचींद्रम में स्थित स्थाणु-शिव के मंदिर में ही शुचि शक्तिपीठ स्थापित है। यहाँ सती के 'ऊर्ध्वदंत'[1] गिरे थे। यहाँ की शक्ति 'नारायणी' तथा भैरव 'संहार या 'संकूर' हैं। मान्यता है कि यहाँ देवी अब तक तपस्यारत हैं।

नामकरण

शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम् क्षेत्र भी कहते हैं। महर्षि गौतम के शाप से इंद्र को यहीं मुक्ति मिली थी, वह शुचिता (पवित्रता) को प्राप्त हुए, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा।

पौराणिक संदर्भ

पौराणिक आख्यान है कि बाणासुर ने घोर तपस्या करके शिव से अमरत्व का वरदान माँगा। शिव ने कहा कि वह कुमारी कन्या के अतिरिक्त सभी के लिए अजेय होगा। वर पाकर वह उत्पाती हो गया तथा देवताओं को भी परास्त कर डाला, जिसके देवलोक में भी त्राहि-त्राहि मच गई। इस पर देवगण विष्णु की शरण में गए और उनके परामर्श पर महायज्ञ किया, जिससे भगवती दुर्गा एक अंश से कन्या रूप में प्रकटीं। देवी ने शिव को पति रूप में पाने हेतु दक्षिण समुद्र तट पर तप किया और शिव ने उन्हें वांछित वर दिया। इस पर देवताओं को चिंता हुई कि यदि कन्या का शिव से विवाह हो गया, तो बाणासुर का वध कैसे होगा? अतः नारद ने शिव को शुचींद्रम तीर्थ में प्रपंच में उलझा दिया, जिससे विवाह मुहूर्त निकल गया। इससे शिव वहाँ पर स्थाणु रूप में स्थित हो गए। देवी ने पुनः तप प्रारंभ किया और मान्यता है कि वह अब तक कन्यारूप में तपस्यारत हैं। इधर अपने दूतों से देवी के सौंदर्य की चर्चा सुन बाणासुर ने उसने विवाह का प्रस्ताव किया, तब उसका देवी से युद्ध हुआ और अंततः बाणासुर का वध देवी के हाथों हो गया।

देवी स्वरूप

इस शक्तिपीठ में माता सती शक्ति नारायणी रूप में, जबकि भगवान भोलेनाथ संहार भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवती देवी ने महाराक्षस बाणासुर का वध किया था और यहीं पर देवराज इन्द्र को महर्षि गौतम के शाप से मुक्ति मिली थी। यहां के मंदिर में नारायणी मां की भव्य एवं भावोत्पादक प्रतिमा है और उनके हाथ में एक माला है। निज मंदिर में भद्रकाली जी का मंदिर भी है। ये भगवती देवी की सखी मानी जाती हैं।

पूजा-उपासना

माता के इस शक्तिपीठ में पूजा-उपासना का एक अलग महत्व है। आस्थावान भक्तों के अनुसार यहां उपासना करने से वैदिक और अन्य मंत्र सिद्ध होते हैं। नवरात्र, चैत्र पूर्णिमा, आषाढ़ एवं आश्विन आमवस्या, शिवरात्रि आदि विशेष सुअवसरों पर यहां विशेष उत्सव होते हैं, जिसमें देवी मां का हीरों से श्रृंगार किया जाता है। कन्याकुमारी में स्नान करने से भक्तों के सारे पाप मिट जाते हैं और वे पवित्र हो जाते हैं।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मतांतर से पृष्ठ भाग
  2. शुचींद्रम मंदिर, शक्तिपीठ (हिन्दी) रफ़्तार। अभिगमन तिथि: 25 सितम्बर, 2014।

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