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'''गीजू भाई'''([[अंग्रेज़ी]]: ''Giju Bhai'', जन्म-[[15 नवम्बर]], [[1885]], [[सौराष्ट्र]], चित्तल; मृत्यु- [[23 जून]], [[1939]]) [[गुजराती भाषा]] के लेखक और महान शिक्षाशास्त्री थे। छोटे बच्चों की शिक्षा को नई दिशा देने ने इनका अत्याधिक योगदान रहा है। गीजू भाई समाज सुधार और राष्ट्रीय महत्त्व के अन्य कामों में भी वे पूरी रुचि लेते थे। | '''गीजू भाई''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Giju Bhai'', जन्म-[[15 नवम्बर]], [[1885]], [[सौराष्ट्र]], चित्तल; मृत्यु- [[23 जून]], [[1939]]) [[गुजराती भाषा]] के लेखक और महान शिक्षाशास्त्री थे। छोटे बच्चों की शिक्षा को नई दिशा देने ने इनका अत्याधिक योगदान रहा है। गीजू भाई समाज सुधार और राष्ट्रीय महत्त्व के अन्य कामों में भी वे पूरी रुचि लेते थे। | ||
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12:22, 23 अक्टूबर 2016 का अवतरण
दीपिका2
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पूरा नाम | गणेश वासुदेव जोशी |
अन्य नाम | सार्वजनिक काका |
जन्म | 20 जुलाई, 1828 |
जन्म भूमि | सतारा, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 25 जुलाई, 1880 |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | सार्वजनिक कार्यकर्ता |
पद | वकील |
भाषा | मराठी, अंग्रेज़ी |
अन्य जानकारी | गणेश वासुदेव जोशी ने सार्जनिक क्षेत्र में भी काम करना आरंभ किया और इस उद्देश्य से 1870 ई. में 'पुणे सार्वजनिक सभा' की स्थापना की। |
गणेश वासुदेव जोशी (अंग्रेज़ी: Ganesh Vasudeo Joshi, जन्म-20 जुलाई,1828, सतारा, महाराष्ट्र; मृत्यु- 25 जुलाई, 1880) अपने समय के प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्ता और पूना की प्रसिद्ध 'सार्वजनिक सभा' के संस्थापक थे।
परिचय
गणेश वासुदेव जोशी का जन्म 20 जुलाई, 1828 को सतारा, महाराष्ट्र में हुआ था। ये अपने समय के प्रमुख सार्वजनिक कार्यकर्ता और पूना (वर्तमान पुणे) की प्रसिद्ध 'सार्वजनिक सभा' के संस्थापक थे। इन्हे सार्वजनिक काका के नाम से भी जाना जाता था। गणेश जी के पिता ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी थे। किंतु उनका असमय ही निधन हो गया। गणेश जी औपचारिक शिक्षा केवल मराठी भाषा में हो पाई। बड़े होने पर निजी तौर पर उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा सीखी। उन्होंने 'मुख्तार वकील' की परीक्षा पास की और पुणे में वकालत करने लगे। साथ ही उन्होंने सार्जनिक क्षेत्र में भी काम करना आरंभ किया और इस उद्देश्य से 1870 ई. में 'पुणे सार्वजनिक सभा' की स्थापना की। इस सभा में उस समय के लगभग सभी प्रमुख व्यक्ति सम्मिलित हो गए। महादेव गोविंद रानाडे भी इसके सदस्य थे। सभा का उद्देश्य जनता की कठिनाइयों की ओर अंग्रेज़ अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट करके उनके निवारण का प्रयत्न करना था। उस समय की परिस्थितियों में और किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि संभव नहीं थी। 'सार्वजनिक सभा' को अपने इस कार्य में काफी हद तक सफलता भी मिली। [1]
- राजनैतिक जीवन
नमक पर कर कम किया गया, किसानों की दशा की जाँच करने के लिए कमीशन बैठा, 1876 के भयंकर अकाल में सरकार से सहायता प्राप्त करने में कामयाबी मिली। उनकी 'सार्वजनिक सभा' के प्रयत्न से सरकार जागृति का आरंभ हुआ जिसकी परिणति 1885 में कांग्रेस की स्थापना की रूप में देश के सामने आई। इन सब कार्यों के कारण गणेश वासुदेव जोशी का नाम भी 'सार्वजनिक काका' पड़ गया था।
निधन
25 जुलाई, 1880 को गणेश वासुदेव जोशी देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी |पृष्ठ संख्या: 218 |
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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दीपिका2
| |
पूरा नाम | गिरिजा शंकर बढेका |
अन्य नाम | मोछाई माँ |
जन्म | 15 नवम्बर, 1885 |
जन्म भूमि | सौराष्ट्र, चित्तल |
मृत्यु | 23 जून, 1939 |
कर्म-क्षेत्र | लेखक, शिक्षाशास्त्री |
मुख्य रचनाएँ | 'आनन्दी कौआ', 'चालाक खरगोश','बुढ़िया और बंदरिया |
भाषा | गुजराती भाषा |
नागरिकता | न=भारतीय |
अन्य जानकारी | गीजू भाई अपनी संस्था में हरिजनों को प्रवेश दिया और बारदोली सत्याग्रह के समय लोगों की सहायता के लिए बच्चों की 'वानर सेना' संगठित की। |
गीजू भाई (अंग्रेज़ी: Giju Bhai, जन्म-15 नवम्बर, 1885, सौराष्ट्र, चित्तल; मृत्यु- 23 जून, 1939) गुजराती भाषा के लेखक और महान शिक्षाशास्त्री थे। छोटे बच्चों की शिक्षा को नई दिशा देने ने इनका अत्याधिक योगदान रहा है। गीजू भाई समाज सुधार और राष्ट्रीय महत्त्व के अन्य कामों में भी वे पूरी रुचि लेते थे।
परिचय
गीजू भाई का जन्म 15 नवम्बर, 1885 को सौराष्ट्र के चित्तल नामक स्थान में हुआ था। उनका असली नाम 'गिरिजा शंकर बढेका' था, लेकिन वे गीजू के नाम से ही प्रसिद्ध हुए। बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण लोग उन्हें 'मोछाई माँ' अर्थात् मूछों वाली माँ भी कहते थे। छोटे बच्चों की शिक्षा को नई दिशा देने ने इनका अत्याधिक योगदान रहा है।
गीजू भाई को कॉलेज की शिक्षा बीच में छोड़ कर आजीविका के लिए 1907 में पूर्वी अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ से वापस आने पर उन्होंने कानून की शिक्षा पूरी की और वकालत करने लगे थे।
शिक्षा का नया रूप
गीजू भाई अपने पुत्र की शिक्षा के सिलसिले में जब वे छोटे बच्चों के विद्यालय में गए तो उन्हें मांटेसरी पद्धति की एक पुस्तक मिली। उसका गीजू भाई पर बड़ा प्रभाव पड़ा। उस पद्धति को तथा पश्चिम की कुछ अन्य शिक्षा पद्धतियों को मिलाकर भारतीय परिस्थितियों के अनुसार बच्चों की आरंभिक शिक्षा को नया रूप देने का काम उन्होंने हाथ में लिया। सर्वप्रथम भावनगर में 'दक्षिणमूर्ति' नाम से एक छात्रावास की स्थापना हुई। अपनी वकालत छोड़कर गीजू भाई इसी काम में जुट गए। नाना भाई भट्ट इसमें उनके सहयोगी थे।
शिक्षा की नई पद्धति के प्रयोग के लिए शिक्षकों का प्रशिक्षण आवश्यक समझ कर गीजू भाई के आचार्यत्व में 'दक्षिणमूर्ति' को अध्यापक प्रशिक्षण केन्द्र का रूप दे दिया गया।
- बाल मंदिर की स्थापना
इन्होंने 1920 में एक बाल मंदिर की स्थापना हुई। साथ ही यह भी आवश्यक था कि बच्चों के लिए रोचक ढंग की उपयुक्त पाठ्य-सामग्री तैयार की जाए। गीजू भाई ने यह काम भी अपने हाथ में ले लिया। इसके लिए उन्होंने विभिन्न शैलियों में एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी इन पुस्तकों में से अनेक आज भी काम में आ रही हैं।
'दक्षिणामूर्ति' संस्था से गीजू भाई 1936 तक जुड़े रहे। बाद में उन्होंने राजकोट में 'अध्यापक मंदिर' की स्थापना की। बच्चों की शिक्षा उनका मुख्य क्षेत्र था, पर समाज सुधार और राष्ट्रीय महत्त्व के अन्य कामों में भी वे पूरी रुचि लेते थे। उन्होंने अपनी संस्था में हरिजनों को प्रवेश दिया और बारदोली सत्याग्रह के समय लोगों की सहायता के लिए बच्चों की 'वानर सेना' संगठित की।
बालकथाएँ
- आनन्दी कौआ
- चालाक खरगोश
- बुढ़िया और बंदरिया
- मां-जाया भाई[1]
- सौ के साठ
निधन
23 जून, 1939 ई. को गीजू भाई का देहांत हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गिजुभाई बधेका, बालकथाएँ (हिंदी) गद्य कोश। अभिगमन तिथि: 23 अक्टूबर, 2016।
बाहरी कड़ियाँ
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