शकुंतला चौधरी

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शकुंतला चौधरी
शकुंतला चौधरी
पूरा नाम शकुंतला चौधरी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र समाज सेवा
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 2022
प्रसिद्धि गाँधीवादी समाज सेविका
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख महात्मा गांधी, विनोबा भावे
अन्य जानकारी 'जमनालाल बजाज पुरस्कार' से सम्मानित हो चुकी शकुंतला चौधरी 1947 से ही सेविका विद्यालय और कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की असम शाखा में सबसे प्रमुख लोगों में से हैं।
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शकुंतला चौधरी (अंग्रेज़ी: Shakuntala Choudhary) भारत की गाँधीवादी समाज सेविका हैं। वह महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों को आगे बढ़ा रही हैं। उनकी गांधीवादी छवि पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। 'जमनालाल बजाज पुरस्कार' से सम्मानित हो चुकी शकुंतला चौधरी सन 1947 से ही सेविका विद्यालय और कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की असम शाखा में सबसे प्रमुख लोगों में से हैं। साल 2022 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया है।

परिचय

102 साल की शकुंतला चौधरी असम की रहने वाली हैं। वह गुवाहाटी के उलूबारी में कस्तूरबा आश्रम में पर्यवेक्षक हैं और असम की प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह हांडीक गर्ल्स कॉलेज के पहले बैच की छात्रा रह चुकी हैं। शकुंतला चौधरी ने अपना 100वां जन्मदिन कालेज की छात्रा के साथ कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की असम शाखा में मनाया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक शकुंतला चौधरी असम की अकेली महिला और वरिष्ठ नागरिक हैं, जिन्होंने 100 साल पार किए हैं।[1]

गांधीवादी छवि

समाज सेविका शकुंतला देवी महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों को आगे बढ़ा रही हैं। उनकी गांधीवादी छवि पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। शकुंतला चौधरी, कस्तूरबा आश्रम से जुड़ी हुई हैं। वहीं महात्मा गांधी चौथी और आखिरी बार 1946 में असम दौरे पर आए थे, जब उन्होंने कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की असम शाखा और गांधीवादी संस्था ग्राम सेविका विद्यालय का उद्घाटन किया था। जमनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी शकुंतला चौधरी 1947 से ही सेविका विद्यालय और कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट की असम शाखा में सबसे प्रमुख लोगों में से हैं।

विनोबा भावे की सहयोगी

शकुंतला चौधरी विनोबा भावे की करीबी सहयोगी थीं। भूदान आंदोलन के अंतिम चरण में उन्होंने असम में डेढ़ साल की पदयात्रा में सक्रिय तौर पर भाग लिया था। इस पदयात्रा के दौरान शकुंतला चौधरी विनोबा भावे के दल का हिस्सा थीं और उनके उनके संदेशों को असम के लोगों के सामने अनुवादित किया था। उनको फिर से विनोबा भावे ने असम में 'पदयात्रा' आयोजित करने का काम सौंपा था, जो 1973 में गांधीवादी द्वारा दिए गए एक आह्वान के जवाब में आयोजित राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम का एक हिस्सा था।[1]

असमिया विश्व नागरी पत्रिका

कहा जाता है कि शकुंतला चौधरी को विनोबा भावे ने ही देवनागरी लिपि में एक मासिक पत्रिका शुरू करने की सलाह दी थी, जिसका नाम पड़ा 'असमिया विश्व नागरी'। शकुंतला चौधरी ने कुछ साल पहले ही इस पत्रिका का संपादित करना शुरू किया था। यह पत्रिका आज भी गांधीवादी आदर्शों, विचारों और आध्यात्मिकता पर प्रकाश डालती है। विनोबा भावे ने 1978 में 'गाय वध प्रतिबंध सत्याग्रह' की शुरुआत की थी, इस आंदोलन में भी शकुंतला चौधरी सबसे आगे थीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 शकुंतला चौधरी का जीवन परिचय (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 03 फरवरी, 2022।

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