सुधा मूर्ति
सुधा मूर्ति
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पूरा नाम | सुधा मूर्ति |
अन्य नाम | सुधा कुलकर्णी |
जन्म | 19 अगस्त, 1950 |
जन्म भूमि | शिग्गांव, कर्नाटक |
पति/पत्नी | एन. आर. नारायणमूर्ति |
कर्म भूमि | भारत |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण, 2023 पद्म श्री (2006) |
प्रसिद्धि | इन्फ़ोसिस फाउंडेशन की चेयरपरसन |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | सुधा मूर्ति एक बेहद प्रभावशाली लेखिका भी हैं और उन्होंने आम आदमी की पीड़ाओं को अभिव्यक्ति देते हुए आठ उपन्यास भी लिखे हैं। इन सभी उपन्यासों में महिला किरदारों को बेहद मजबूत और सिद्धांतों पर अडिग दर्शाया गया है। |
अद्यतन | 13:56, 8 जुलाई 2023 (IST)
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सुधा मूर्ति (अंग्रेज़ी: Sudha Murthy, जन्म: 19 अगस्त, 1950) इन्फोसिस फाउंडेशन के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति की पत्नी, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता व लेखिका हैं। कुछ लोग महान् लक्ष्यों को हासिल करने का मकसद लेकर जिंदगी जीते हैं, लेकिन सुधा मूर्ति एक ऐसी शख्सियत हैं जो जिंदगी को सादगी और दानिशमंदी के साथ जीने में यकीन रखती हैं और यही ‘सादगी और मन की उदारता’ उन्हें इस मुकाम पर ले आयी है, जिसे देखने के लिए लोगों को आसमान तक नजरें बुलंद करनी पड़ती हैं। उद्योग जगत में सफलता की नयी कहानी लिखने वाली आई टी कंपनी इन्फोसिस के इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्षा सुधा मूर्ति की जिंदगी मेहनत और मशक्कत की अद्भुत कहानी है। भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है।
जीवन परिचय
सुधा मूर्ति की सफलता इस बात को भी रेखांकित करती है कि पति के विशाल व्यक्तित्व की परछाई के नीचे दबने के बजाय कोई महिला यदि चाहे तो अपना अलग व्यक्तित्व गढ़ सकती है। बतौर इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष सुधा मूर्ति समाज के दबे कुचले तबके के उत्थान के लिए बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हालांकि वह सुखिर्यों में आने से परहेज करती हैं लेकिन समाज सेवा के प्रति उनका जज्बा खुद ब खुद उनकी महानता को बखान करता है। 19 अगस्त, 1950 को कर्नाटक में पैदा हुई सुधा मूर्ति की इन्फोसिस कंपनी की स्थापना में क्या भूमिका रही है उसे इसी बात से जाना जा सकता है कि उनकी ही बचत के दस हजार रुपये से इस कंपनी की नींव रखी गयी और नारायण मूर्ति आज भी बड़े गर्व से यह बात लोगों को अक्सर बताते हैं। सादा सी साड़ी और चेहरे पर सदा खिली रहने वाली मुस्कान सुधा मूर्ति के व्यक्तित्व में चार चांद लगाती हैं। जिंदगी में किन चीजों ने सुधा मूर्ति को सर्वाधिक प्रभावित किया है तो इसके जवाब में वह कहती हैं ‘ईसा मसीह तथा भगवान बुद्ध की शिक्षाओं और जे. आर. डी. टाटा के शब्दों और जीवन ने मुझे न केवल प्रभावित किया है बल्कि मेरी पूरी जिंदगी को एक दिशा दी है।’ क्रिस्टी कालेज में एमबीए और एमसीए विभाग की प्रतिभाशाली प्रोफेसर सुधा अपने छात्र जीवन में बहुत योग्य छात्रों में गिनी जाती रहीं। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस में कम्प्यूटर साइंस की शिक्षा हासिल करते हुए उन्होंने विशेष रैंक हासिल किया।
शिक्षा
शिक्षा समाप्ति के बाद सुधा मूर्ति ने सबसे पहले ग्रेजुएट प्रशिक्षु के तौर पर टाटा कंपनी और बाद में दी वालचंद ग्रुप आफ इंडस्ट्रीज में काम किया। कम्प्यूटर साइंस के क्षेत्र में उन्हें महिलाओं के लिए महारानी लक्ष्मी अम्मानी कालेज की स्थापना करने का श्रेय जाता है जो आज बेंगलूर यूनिवर्सिटी के कम्प्यूटर साइंस विभाग के तहत बेहद प्रतिष्ठित कालेज का दर्जा रखता है। महिला अधिकारों की समानता के लिए भी सुधा मूर्ति ने बेहद काम किया है। इस संबंध में एक घटना उल्लेखनीय है। उस जमाने में टाटा मोटर्स में केवल पुरुषों को भर्ती करने की नीति थी जिसे लेकर सुधा मूर्ति ने जेआरडी टाटा को एक पोस्टकार्ड भेजा। इसका असर यह हुआ कि टाटा मोटर्स ने उन्हें विशेष साक्षात्कार के लिए बुलाया और वह टाटा मोटर्स (तत्कालीन टेल्को) में चयनित होने वाली पहली महिला इंजीनियर बनीं। सुधा मूर्ति एक बेहद प्रभावशाली लेखिका भी हैं और उन्होंने आम आदमी की पीड़ाओं को अभिव्यक्ति देते हुए आठ उपन्यास भी लिखे हैं। इन सभी उपन्यासों में महिला किरदारों को बेहद मजबूत और सिद्धांतों पर अडिग दर्शाया गया है।[1]
सम्मान और पुरस्कार
- पद्म भूषण, 2023
- डॉक्टरेट ऑफ लॉ की उपाधि (2011)
- भारत सरकार ने 2006 में पद्म श्री नवाजा और सत्यभामा विश्वविद्यालय ने उन्हें मानद डाक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया।
- आर.के. नारायण पुरस्कार (2006)
- राजा- लक्ष्मी पुरस्कार (2004)
- वुमन ऑफ द ईयर (2002)
- मिलेनियम महिला शिरोमणि, कर्नाटक राज्योत्सव, ओजस्वनी पुरस्कार (2000)
- बेस्ट टीचर पुरस्कार (1995)
प्रकाशित साहित्य
सुधा मूर्ति भारत की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता टाटा इंजीनियरिंग और लोकोमोटिव कंपनी में काम पर रखने वाली पहली महिला इंजीनियर बनीं। वह एक बेहद प्रभावशाली लेखिका भी हैं और उन्होंने आम आदमी की पीड़ाओं को अभिव्यक्ति देते हुए आठ उपन्यास भी लिखे हैं। इन सभी उपन्यासों में महिला किरदारों को बेहद मजबूत और सिद्धांतों पर अडिग दर्शाया गया है।[2]
- अस्तित्व
- आजीच्या पोतडीतील गोष्टी
- आयुष्याचे धडे गिरवताना
- द ओल्ड मॅन अॅन्ड हिज गॉड (अंग्रेज़ी)
- बकुळ
- गोष्टी माणसांच्ता
- जेन्टली फॉल्स द बकुला (अंग्रेजी)
- डॉलर बहू (अंग्रेज़ी), (मराठी)
- तीन हजार टाके (मूळ इंग्रजी, ’थ्री थाउजंड स्टिचेस’; मराठी अनुवाद लीना सोहोनी)
- थैलीभर गोष्टी
- परिधी (कन्नड़)
- परीघ (मराठी)
- पितृऋण
- पुण्यभूमी भारत
- द मॅजिक ड्रम अॅन्ड द अदर फेव्हरिट स्टोरीज (अंग्रेज़ी)
- महाश्वेता (कन्नड़ व अंग्रेज़ी)
- वाइज अॅन्ड अदरवाइज (अंग्रेज़ी), (मराठी)
- सामान्यांतले असामान्य
- सुकेशिनी
- हाउ आय टॉट माय ग्रँडमदर टु रीड अॅन्ड अदर स्टोरीज (अंग्रेज़ी)
योगदान
सुधा मूर्ति इन्फोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन और गेट्स फाउंडेशन की सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पहलों की सदस्य हैं। उन्होंने कई अनाथालयों की स्थापना की, ग्रामीण विकास के प्रयासों में भाग लिया, कंप्यूटर और पुस्तकालय सुविधाओं के साथ सभी कर्नाटक के सरकारी स्कूलों को प्रदान करने के आंदोलन का समर्थन किया और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ‘द मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया’ की स्थापना की। सुधा मूर्ति ने कर्नाटक के सभी स्कूलों में कंप्यूटर और पुस्तकालय की सुविधा शुरू करने के लिए एक साहसिक कदम उठाया और कंप्यूटर विज्ञान पढ़ाया। उन्हें 1995 में रोटरी क्लब बैंगलोर में “बेस्ट टीचर अवार्ड” मिला। उन्हें उनके सामाजिक कार्यों और कन्नड़ और अंग्रेज़ी साहित्य में उनके योगदान के लिए जाना जाता है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ सुधा मूर्ति: सादगी और दानिशमंदी है जिनकी सफलता का राज (हिन्दी) वेबदुनिया हिन्दी। अभिगमन तिथि: 21 सितंबर, 2016।
- ↑ 2.0 2.1 सुधा मूर्ति की जीवनी (हिंदी) jivanihindi.com। अभिगमन तिथि: 08 जुलाई, 2023।
बाहरी कड़ियाँ
- सुधा मूर्ति की कहानी : दयावान डाक्टर
- देश की पहली इंजीनियर हैं सुधा नारायण मूर्ति
- सुधा मूर्ति जी द्वारा लिखित एक संस्मरण…
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