देवेन्द्रनाथ ठाकुर
देवेन्द्रनाथ ठाकुर
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पूरा नाम | देवेन्द्रनाथ ठाकुर या टैगोर |
जन्म | 15 मई, 1817 |
जन्म भूमि | कलकत्ता (अब कोलकाता) |
मृत्यु | 19 जनवरी, 1905 |
मृत्यु स्थान | कलकत्ता (अब कोलकाता) |
अभिभावक | पिता- द्वारकानाथ ठाकुर |
संतान | पुत्र-रबीन्द्रनाथ ठाकुर, सत्येन्द्रनाथ ठाकुर |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | समाज सुधारक |
पुरस्कार-उपाधि | महर्षि |
विशेष योगदान | वे ब्रह्म समाज के प्रमुख सदस्य थे, जिसका 1843 ई. से उन्होंने बड़ी सफलता के साथ नेतृत्व किया। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | 19वीं शताब्दी में जिन मुट्ठी भर शिक्षित भारतीयों ने आधुनिक भारत की आधारशिला रखी, उनमें उनका नाम सबसे शीर्ष पर रखा जाएगा। |
देवेन्द्रनाथ ठाकुर अथवा 'देवेन्द्रनाथ टैगोर' (अंग्रेज़ी: Devendra Nath Thakur, जन्म: 15 मई, 1817; मृत्यु: 19 जनवरी, 1905) कलकत्ता निवासी द्वारकानाथ ठाकुर के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान् और धार्मिक नेता थे। अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने 'प्रिंस' की उपाधि प्राप्त की थी। पिता से उन्होंने ऊँची सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऋण उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। नोबेल पुरस्कार विजेता रबीन्द्रनाथ ठाकुर देवेंद्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे।
विषय सूची
नेतृत्व क्षमता
पिता के ऋण का भुगतान उन्होंने बड़ी ही ईमानदारी के साथ किया (जो कि उस समय असाधारण बात थी) और अपनी विद्वता, शालीनता, श्रेष्ठ चरित्र तथा सांस्कृतिक क्रियाकलापों में योगदान के द्वारा उन्होंने टैगोर परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा को और भी ऊपर उठाया। वे ब्रह्म समाज के प्रमुख सदस्य थे, जिसका 1843 ई. से उन्होंने बड़ी सफलता के साथ नेतृत्व किया। 1843 ई. में उन्होंने 'तत्वबोधिनी पत्रिका' प्रकाशित की, जिसके माध्यम से उन्होंने देशवासियों को गम्भीर चिन्तन हृदयगत भावों के प्रकाशन के लिए प्रेरित किया। इस पत्रिका ने मातृभाषा के विकास तथा विज्ञान एवं धर्मशास्त्र के अध्ययन की आवश्यकता पर बल दिया और साथ ही तत्कालीन प्रचलित सामाजिक अंधविश्वासों व कुरीतियों का विरोध किया तथा ईसाई मिशनरियों द्वारा किये जाने वाले धर्मपरिवर्तन के विरुद्ध कठोर संघर्ष छोड़ दिया।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भट्टाचार्य, सच्चिदानन्द भारतीय इतिहास कोश, द्वितीय संस्करण-1989 (हिन्दी), भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, 177।