"कुत्ता भौंकने लगा -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला": अवतरणों में अंतर
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कात्या सिंह (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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गेहूँ के पेड़ ऐंठे खड़े हैं, | गेहूँ के पेड़ ऐंठे खड़े हैं, | ||
खेतीहरों में जान नहीं, | खेतीहरों में जान नहीं, | ||
मन मारे दरवाज़े कौड़े ताप रहे हैं | मन मारे दरवाज़े कौड़े ताप रहे हैं, | ||
एक दूसरे से गिरे गले बातें करते हुए, | एक दूसरे से गिरे गले बातें करते हुए, | ||
कुहरा छाया हुआ। | कुहरा छाया हुआ। | ||
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एक हफ़्ते के अंदर देना है। | एक हफ़्ते के अंदर देना है। | ||
चलो, बात दे आओ। | चलो, बात दे आओ। | ||
कौड़े से कुछ हट कर | कौड़े से कुछ हट कर, | ||
लोगों के साथ कुत्ता खेतिहर का बैठा था, | लोगों के साथ कुत्ता खेतिहर का बैठा था, | ||
चलते सिपाही को देख कर खडा हुआ, | चलते सिपाही को देख कर खडा हुआ, |
06:34, 24 दिसम्बर 2011 का अवतरण
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आज ठंडक अधिक है। |
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