रामेश्वर
रामेश्वर
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वर्णन | रामेश्वर हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह हिंदुओं के चार धामों में से एक धाम है। यह तमिलनाडु राज्य में स्थित है। |
स्थान | मदुरै |
देवी-देवता | शिव और पार्वती |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर- 9° 16' 48.00", पूर्व- 79° 18' 0.00" |
संबंधित लेख | अजगर कोइल, गांधी संग्रहालय मदुरै, तिरुमलई नायक महल, मरियम्मन तेप्पाकुलम, वैगई बाँध |
मानचित्र लिंक | गूगल मानचित्र |
अन्य जानकारी | श्री रामेश्वर जी का मन्दिर एक हज़ार फुट लम्बा, छ: सौ पचास फुट चौड़ा तथा एक सौ पच्चीस फुट ऊँचा है। इस मन्दिर में प्रधान रूप से एक हाथ से भी कुछ अधिक ऊँची शिव जी की लिंग मूर्ति स्थापित है। |
अद्यतन | 17:47, 2 फ़रवरी 2012 (IST)
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रामेश्वर / रामेश्वरम / श्रीरामलिंगेश्वर ज्योतिर्लिंग (अंग्रेज़ी: Rameswaram) हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह हिंदुओं के चार धामों में से एक धाम है। यह तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरम ज़िले में स्थित है। मन्नार की खाड़ी में स्थित द्वीप जहां भगवान् राम का लोक-प्रसिद्ध विशाल मंदिर है।
वास्तु शिल्प
श्री रामेश्वर जी का मन्दिर एक हज़ार फुट लम्बा, छ: सौ पचास फुट चौड़ा तथा एक सौ पच्चीस फुट ऊँचा है। इस मन्दिर में प्रधान रूप से एक हाथ से भी कुछ अधिक ऊँची शिव जी की लिंग मूर्ति स्थापित है। इसके अतिरिक्त भी मन्दिर में बहुत-सी सुन्दर-सुन्दर शिव प्रतिमाएँ हैं। नन्दी जी की भी एक विशाल और बहुत आकर्षक मूर्ति लगायी गई है। भगवान शंकर और पार्वती की चल-प्रतिमाएँ भी हैं, जिनकी शोभायात्रा वार्षिकोत्सव पर निकाली जाती है। इस अवसर पर सोने और चाँदी के वाहनों पर बैठा कर शिव और पार्वती की सवारी निकलती है। वार्षिकोत्सव पर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग को चाँदी के त्रिपुण्ड और श्वेत उत्तरीय से अलंकृत किया जाता है अर्थात सजाया जाता है, जिससे लिंग की अद्भुत शोभा होती है। उत्तराखंड के गंगोत्री से गंगाजल लेकर श्री रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने का विशेष महत्त्व बताया गया है। श्री रामेश्वर पहुँचने वाले तीर्थ यात्री के पास यदि गंगाजल उपलब्ध नहीं है, तो वहाँ के पण्डे लोग दक्षिणा लेकर छोटी-छोटी शीशियों में (इत्र की शीशी जैसी) गंगाजल देते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ *ऐतिहासिक स्थानावली से पृष्ठ संख्या 792| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
- ↑ हिन्दूओं के तीर्थ स्थान |लेखक: सुदर्शन सिंह 'चक्र' |पृष्ठ संख्या: 135 |
- ↑ स्कन्द पुराण ब्रा. खं. सं. मा. अध्याय 45
- ↑ शिव पुराण कोटि रुद्र संहिता 31/30-34
- ↑ रामचरितमानस, लंकाकाण्ड, दोहा 2 के बाद