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ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे॥
 
ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे॥
 
दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी।
 
दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी।
अपना-सा दुख सबका जानै, ताहि मिलै अबिनासी॥
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अपना-सा दु:ख सबका जानै, ताहि मिलै अबिनासी॥
 
सहै कुसब्द बादहूँ त्यागै, छाँड़े, गरब गुमाना।
 
सहै कुसब्द बादहूँ त्यागै, छाँड़े, गरब गुमाना।
 
यही रीझ मेरे निरंकारकी, कहत मलूक दिवाना॥  
 
यही रीझ मेरे निरंकारकी, कहत मलूक दिवाना॥  

14:04, 2 जून 2017 के समय का अवतरण

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ना वह रीझै जप तप कीन्हे -मलूकदास
मलूकदास
कवि मलूकदास
जन्म 1574 सन् (1631 संवत)
मृत्यु 1682 सन् (1739 संवत)
मुख्य रचनाएँ रत्नखान, ज्ञानबोध, भक्ति विवेक
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मलूकदास की रचनाएँ

ना वह रीझै जप तप कीन्हे, ना आतमका जारे।
ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे॥
दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी।
अपना-सा दु:ख सबका जानै, ताहि मिलै अबिनासी॥
सहै कुसब्द बादहूँ त्यागै, छाँड़े, गरब गुमाना।
यही रीझ मेरे निरंकारकी, कहत मलूक दिवाना॥

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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