गीता 8:4

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

गीता अध्याय-8 श्लोक-4 / Gita Chapter-8 Verse-4

प्रसंग-


अब भगवान् अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ विषयक प्रश्नों का उत्तर क्रमश: देते हैं-


अधिभूतं क्षरो भाव: पुरुषश्चाधिदैवतम् ।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ।।4।।



उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, हिरण्यमय पुरुष अधिदैव है और हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन[1] ! इस शरीर में मैं वासुदेव[2] ही अन्तर्यामी रूप से अधियज्ञ हूँ ।।4।।

All perishable objects are Adhibhuta; the shining purusa (Brahma) is Adhidaiva; and in this body I myself, dwellings as the inner witness, am adhiyajna, O Arjuna! (4)


क्षर:भाव: = उत्पत्ति विनाश धर्मवाले सब पदार्थ ; पुरुष: = हिरण्यमय पुरुष ; अधिदैवतम् = अधिदैव है (और) ; देहभृताम् वर = हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन ; अधिभूतम् = अधिभूत हैं ; च = और ; अत्र = इस ; देहे = शरीर में ; अहम् = मैं वासुदेव ; एव = ही (विष्णुरूप से) ; अधियज्ञ: = अधियज्ञ हूं



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

संबंधित लेख