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'''वक़्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Waqt'') वर्ष [[1965]] में प्रदर्शित [[हिंदी सिनेमा]] की यादगार फ़िल्म है। “वक़्त इंसान से क्या, कब कैसे करवाए ये नहीं कहा जा सकता ''लाला जी, कभी-कभी रूपये गठरी में बंधे रह जाते है और इंसान भीख मांगता फिरता है.” [[यश चोपड़ा]] द्वारा निर्देशित [[1965]] में प्रदर्शित फ़िल्म वक़्त का यह संवाद जीवन का सत्य है, जो वक़्त की अस्थिरता और संजीदगी को बखूबी दर्शाता है।<ref name="aa"/>
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'''वक़्त''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Waqt'') वर्ष [[1965]] में प्रदर्शित [[हिंदी सिनेमा]] की यादगार फ़िल्म है। वक़्त इंसान से क्या, कब कैसे करवाए ये नहीं कहा जा सकता। 'लाला जी, कभी-कभी रूपये गठरी में बंधे रह जाते है और इंसान भीख मांगता फिरता है।' [[यश चोपड़ा]] द्वारा निर्देशित [[1965]] में प्रदर्शित फ़िल्म वक़्त का यह संवाद जीवन का सत्य है, जो वक़्त की अस्थिरता और संजीदगी को बखूबी दर्शाता है।<ref name="aa"/>
  
 
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जहां राजू बड़ा होकर राजा (राजकुमार) बन जाता है एक बड़ा चोर, वहीं बबलू अब रवि है जिसे खन्ना परिवार, जिनकी सिर्फ एक बेटी रेनू (शर्मीला टैगोर) है, गोद ले लेता है। राजा एवं रवि जहां [[मुंबई]] में रहते हैं वहीं लक्ष्मी और उसका छोटा बेटा विजय (शशि कपूर) दिल्ली में रहते है जहां विजय की मुलाकात मीना से कॉलेज में हो जाती है जो जल्द ही प्रेम में तब्दील हो जाती है। वृद्ध केदारनाथ अपनी पत्नी को ढूंढ़ते-ढूंढते [[मुंबई]] पहुंच जाता है।<ref name="aa"/>
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जहां राजू बड़ा होकर राजा (राजकुमार) बन जाता है एक बड़ा चोर, वहीं बबलू अब रवि है जिसे खन्ना परिवार, जिनकी सिर्फ एक बेटी रेनू (शर्मीला टैगोर) है, गोद ले लेता है। राजा एवं रवि जहां [[मुंबई]] में रहते हैं वहीं लक्ष्मी और उसका छोटा बेटा विजय ([[शशि कपूर]]) [[दिल्ली]] में रहते है जहां विजय की मुलाकात मीना ([[साधना]]) से कॉलेज में हो जाती है जो जल्द ही प्रेम में तब्दील हो जाती है। वृद्ध केदारनाथ अपनी पत्नी को ढूंढ़ते-ढूंढते [[मुंबई]] पहुंच जाते हैं।<ref name="aa"/>
  
 
अख्तर मिर्ज़ा की कहानी पर आधारित यह सिनेमा आपको रूबरू कराएगा कि कैसे इस परिवार को तकदीर मिलाती है। धरम चोपड़ा के छायांकन से संजोया हुआ यह सिनेमा आपको विकसित हो रहे [[मुंबई]] से रूबरू कराएगा। अंत में सारे परिवार को एकजुट करने वाला कोर्ट का दृश्य आपको उस समय के कोर्ट ड्रामा से परिचित कराएगा जो आज से काफ़ी विपरीत है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.bharatbolega.com/waqt-film-review/|title=फिल्म समीक्षा: वक़्त|accessmonthday= 5 जुलाई|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bharatbolega.com|language=हिन्दी}}</ref>
 
अख्तर मिर्ज़ा की कहानी पर आधारित यह सिनेमा आपको रूबरू कराएगा कि कैसे इस परिवार को तकदीर मिलाती है। धरम चोपड़ा के छायांकन से संजोया हुआ यह सिनेमा आपको विकसित हो रहे [[मुंबई]] से रूबरू कराएगा। अंत में सारे परिवार को एकजुट करने वाला कोर्ट का दृश्य आपको उस समय के कोर्ट ड्रामा से परिचित कराएगा जो आज से काफ़ी विपरीत है।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.bharatbolega.com/waqt-film-review/|title=फिल्म समीक्षा: वक़्त|accessmonthday= 5 जुलाई|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=bharatbolega.com|language=हिन्दी}}</ref>

12:38, 5 जुलाई 2017 का अवतरण

वक़्त (1965 फ़िल्म)
वक़्त(1965)
निर्देशक यश चोपड़ा
निर्माता बी. आर. चोपड़ा
लेखक अख्तर मिर्ज़ा (कहानी) अख्तर उल-इमान (संवाद)
कलाकार सुनील दत्त, बलराज साहनी, राज कुमार, शशि कपूर, साधना, शर्मिला टैगोर, रहमान
संगीत रवि
संपादन प्राण मेहरा
वितरक बी आर फ़िल्म्स
प्रदर्शन तिथि 1965
भाषा हिंदी
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वक़्त (अंग्रेज़ी: Waqt) वर्ष 1965 में प्रदर्शित हिंदी सिनेमा की यादगार फ़िल्म है। वक़्त इंसान से क्या, कब कैसे करवाए ये नहीं कहा जा सकता। 'लाला जी, कभी-कभी रूपये गठरी में बंधे रह जाते है और इंसान भीख मांगता फिरता है।' यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित 1965 में प्रदर्शित फ़िल्म वक़्त का यह संवाद जीवन का सत्य है, जो वक़्त की अस्थिरता और संजीदगी को बखूबी दर्शाता है।[1]

बलराज साहनी, सुनील दत्त, राजकुमार, शशि कपूर, साधना, शर्मिला टैगोर अभिनीत यह सिनेमा आपको लेकर चलेगा एक ऐसे समृद्ध परिवार की ज़िन्दगी में जिसके मुखिया हैं लाला केदारनाथ (बलराज साहनी), जो अपनी बीवी लक्ष्मी (अचला सचदेव) एवं तीन लड़के राजू, बबलू और मुन्ना के साथ एक सुखद जीवन जी रहे होते हैं। अचानक आए भूकंप से उनका परिवार बिखर जाता है।[1]

जहां राजू बड़ा होकर राजा (राजकुमार) बन जाता है एक बड़ा चोर, वहीं बबलू अब रवि है जिसे खन्ना परिवार, जिनकी सिर्फ एक बेटी रेनू (शर्मीला टैगोर) है, गोद ले लेता है। राजा एवं रवि जहां मुंबई में रहते हैं वहीं लक्ष्मी और उसका छोटा बेटा विजय (शशि कपूर) दिल्ली में रहते है जहां विजय की मुलाकात मीना (साधना) से कॉलेज में हो जाती है जो जल्द ही प्रेम में तब्दील हो जाती है। वृद्ध केदारनाथ अपनी पत्नी को ढूंढ़ते-ढूंढते मुंबई पहुंच जाते हैं।[1]

अख्तर मिर्ज़ा की कहानी पर आधारित यह सिनेमा आपको रूबरू कराएगा कि कैसे इस परिवार को तकदीर मिलाती है। धरम चोपड़ा के छायांकन से संजोया हुआ यह सिनेमा आपको विकसित हो रहे मुंबई से रूबरू कराएगा। अंत में सारे परिवार को एकजुट करने वाला कोर्ट का दृश्य आपको उस समय के कोर्ट ड्रामा से परिचित कराएगा जो आज से काफ़ी विपरीत है।[1]


कलाकार

अभिनेता भूमिका
बलराज साहनी लाला केदारनाथ
राज कुमार राजा (राजू)
सुनील दत्त रवि (बबलू)
शशि कपूर विजय (मुन्ना)
साधना मीना मित्तल
शर्मिला टैगोर रेणु खन्ना
अचला सचदेव लक्ष्मी केदारनाथ
रहमान चिनॉय सेठ
मदन पुरी बलबीर
मनमोहन कृष्ण श्रीमान मित्तल
लीला चिटनिस श्रीमती मित्तल
जीवन अनाथालय प्रमुख
सुरेन्द्र श्रीमान खन्ना
सुमति गुप्ते श्रीमती खन्ना
शशिकला रानी साहिबा
हरि शिवदासानी लाला हरदयाल राय
मोतीलाल सरकारी वकील
ऐरिका लाल पार्टी में गायिका
मुबारक न्यायाधीश
जगदीश राज पुलिस इंस्पेक्टर

संगीत

क्रमांक गीत गायक / गायिका
1. ऐ मेरी जोहरा जबीं मन्ना डे
2. वक्त से दिन और रात मोहम्मद रफ़ी
3. कौन आया आशा भोंसले
4. दिन है बहार के आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर
5. हम जब सिमट के आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर्
6. मैने एक ख्वाब सा देखा है आशा भोंसले, महेन्द्र कपूर्
7. चेहरे पे खुशी छा जाती है आशा भोंसले
8. आगे भी जाने न तू आशा भोंसले


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 फिल्म समीक्षा: वक़्त (हिन्दी) bharatbolega.com। अभिगमन तिथि: 5 जुलाई, 2016।

बाहरी कड़ियाँ

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