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− | इस प्रकार पश्चाताप करने के बाद अब < | + | इस प्रकार पश्चाताप करने के बाद अब [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वह [[द्रोणाचार्य]] का सबसे प्रिय शिष्य था। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में जीतने वाला भी वही था।</ref> अपना निर्णय सुनाते हैं- |
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− | हा ! शोक ! हम लोग बुद्धिमान् होकर भी | + | हा ! शोक ! हम लोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं, जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उद्यत हो गये हैं ।।45।। |
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− | बत = शोक है (कि); वयम् = हम लोग (बुद्धिमान् होकर भी); महत्पापम् = | + | बत = शोक है (कि); वयम् = हम लोग (बुद्धिमान् होकर भी); महत्पापम् = महान् पाप; कर्तुम् = करने को; व्यवसिता: = तैयार हुए हैं; यत् = जो कि; राज्यसुखलोभेन =राज्य और सुख के लोभ से; स्वजनम् = अपने कुल को; हन्तुम् = मारने के लिये; उद्यता: = उद्यत हुए हैं |
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14:06, 30 जून 2017 के समय का अवतरण
गीता अध्याय-1 श्लोक-45 / Gita Chapter-1 Verse-45
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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