"करम गति टारै नाहिं टरी -कबीर": अवतरणों में अंतर

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करम गति टारै नाहिं टरी ॥
करम गति टारै नाहिं टरी॥


मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि ।
मुनि वसिस्थ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ 1 ॥
सीता हरन मरन दसरथ को, बन में बिपति परी॥1॥


कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी ।
कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ 2 ॥
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि॥2॥


पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी ।
पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी।
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही ॥ 3 ॥
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही॥3॥


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05:50, 24 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

करम गति टारै नाहिं टरी -कबीर
संत कबीरदास
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

करम गति टारै नाहिं टरी॥

मुनि वसिस्थ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को, बन में बिपति परी॥1॥

कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि॥2॥

पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी।
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही॥3॥












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