"कैदी और कोकिला -माखन लाल चतुर्वेदी": अवतरणों में अंतर
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|मृत्यु=[[30 जनवरी]], 1968 ई. | |मृत्यु=[[30 जनवरी]], 1968 ई. | ||
|मृत्यु स्थान= | |मृत्यु स्थान= | ||
|मुख्य रचनाएँ=कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, | |मुख्य रचनाएँ=कृष्णार्जुन युद्ध, हिमकिरीटिनी, साहित्य देवता, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु लो गूँजे धरा, अमीर इरादे, ग़रीब इरादे | ||
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|शीर्षक 1= | |शीर्षक 1= | ||
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बन्दी सोते हैं, है घर-घर श्वासों का, | बन्दी सोते हैं, है घर-घर श्वासों का, | ||
दिन के | दिन के दु:ख का रोना है निश्वासों का, | ||
अथवा स्वर है लोहे के दरवाजों का, | अथवा स्वर है लोहे के दरवाजों का, | ||
बूटों का, या सन्तरी की आवाजों का, | बूटों का, या सन्तरी की आवाजों का, | ||
पंक्ति 102: | पंक्ति 102: | ||
मिट्टी पर अँगुलियों ने लिक्खे गान? | मिट्टी पर अँगुलियों ने लिक्खे गान? | ||
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, | हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, | ||
ख़ाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ। | |||
दिन में | दिन में करुणा क्यों जगे, रूलानेवाली, | ||
इसलिए रात में गजब ढा रही आली? | इसलिए रात में गजब ढा रही आली? | ||
पंक्ति 165: | पंक्ति 165: | ||
नभ सीख चुका है कमज़ोरों को खाना, | नभ सीख चुका है कमज़ोरों को खाना, | ||
क्यों बना रही अपने को उसका दाना? | क्यों बना रही अपने को उसका दाना? | ||
फिर भी | फिर भी करुणा गाहक बन्दी सोते हैं, | ||
स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं! | स्वप्नों में स्मृतियों की श्वासें धोते हैं! | ||
इन लोह-सीखचों की कठोर पाशों में | इन लोह-सीखचों की कठोर पाशों में |
10:23, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
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