"सूरदास मदनमोहन": अवतरणों में अंतर
No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "खजाने" to "ख़ज़ाने") |
||
(2 सदस्यों द्वारा किए गए बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
सूरदास मदनमोहन [[अकबर]] के समय में संडीले के अमीन थे। जाति के [[ब्राह्मण]] और [[गौड़ीय संप्रदाय]] के [[वैष्णव]] थे। ये जो कुछ पास में आता प्राय: सब साधुओं की सेवा में लगा दिया करते थे। कहते हैं कि एक बार संडीले तहसील की मालगुजारी के कई लाख रुपये सरकारी | '''सूरदास मदनमोहन''' [[अकबर]] के समय में संडीले के अमीन थे। जाति के [[ब्राह्मण]] और [[गौड़ीय संप्रदाय]] के [[वैष्णव]] थे। ये जो कुछ पास में आता प्राय: सब साधुओं की सेवा में लगा दिया करते थे। कहते हैं कि एक बार संडीले तहसील की मालगुजारी के कई लाख रुपये सरकारी ख़ज़ाने में आए थे। इन्होंने सबका सब साधुओं को खिला पिला दिया और शाही ख़ज़ाने में कंकड़ पत्थरों से भरे संदूक भेज दिए जिनके भीतर <poem>काग़ज़ के चिट यह लिखकर रख दिए | ||
तेरह लाख सँडीले आए, सब साधुन मिलि गटके। | तेरह लाख सँडीले आए, सब साधुन मिलि गटके। | ||
सूरदास मदनमोहन आधी रातहिं सटके</poem> | सूरदास मदनमोहन आधी रातहिं सटके</poem> | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
अपनी भुजा स्याम भुज ऊपर, स्याम भुजा अपने उर धारिया | अपनी भुजा स्याम भुज ऊपर, स्याम भुजा अपने उर धारिया | ||
करत विनोद तरनि तनया तट, स्यामा स्याम उमगि रस भरिया। | करत विनोद तरनि तनया तट, स्यामा स्याम उमगि रस भरिया। | ||
यौं लपटाइ रहे उर अंतर मरकत मनि कंचन ज्यों | यौं लपटाइ रहे उर अंतर मरकत मनि कंचन ज्यों ज़रिया | ||
उपमा को घन दामिनी नाहीं, कँदरप कोटि वारने करिया। | उपमा को घन दामिनी नाहीं, कँदरप कोटि वारने करिया। | ||
सूर मदनमोहन बलि जोरी नंदनंदन बृषभानु दुलरिया</poem> | सूर मदनमोहन बलि जोरी नंदनंदन बृषभानु दुलरिया</poem> | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
{{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 134| chapter =प्रकरण 5}} | {{cite book | last =आचार्य| first =रामचंद्र शुक्ल| title =हिन्दी साहित्य का इतिहास| edition =| publisher =कमल प्रकाशन, नई दिल्ली| location =भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language =हिन्दी | pages =पृष्ठ सं. 134| chapter =प्रकरण 5}} | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category:कवि]] | [[Category:कवि]] | ||
[[Category:निर्गुण भक्ति]] | [[Category:निर्गुण भक्ति]] | ||
[[Category:चरित कोश]] | |||
[[Category:साहित्य कोश]] | [[Category:साहित्य कोश]] | ||
[[Category:भक्ति काल]] | [[Category:भक्ति काल]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
10:55, 26 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
सूरदास मदनमोहन अकबर के समय में संडीले के अमीन थे। जाति के ब्राह्मण और गौड़ीय संप्रदाय के वैष्णव थे। ये जो कुछ पास में आता प्राय: सब साधुओं की सेवा में लगा दिया करते थे। कहते हैं कि एक बार संडीले तहसील की मालगुजारी के कई लाख रुपये सरकारी ख़ज़ाने में आए थे। इन्होंने सबका सब साधुओं को खिला पिला दिया और शाही ख़ज़ाने में कंकड़ पत्थरों से भरे संदूक भेज दिए जिनके भीतर
काग़ज़ के चिट यह लिखकर रख दिए
तेरह लाख सँडीले आए, सब साधुन मिलि गटके।
सूरदास मदनमोहन आधी रातहिं सटके
और आधी रात को उठकर कहीं भाग गए। बादशाह ने इनका अपराध क्षमा करके इन्हें फिर बुलाया, पर ये विरक्त होकर वृंदावन में रहने लगे। इनकी कविता इतनी सरस होती थी कि इनके बनाए बहुत से पद सूरसागर में मिल गए। इनकी कोई पुस्तक प्रसिद्ध नहीं। कुछ फुटकल पद लोगों के पास मिलते हैं। इनका रचनाकाल संवत् 1590 और 1600 के बीच अनुमान किया जाता है -
मधु के मतवारे स्याम! खोलौ प्यारे पलकैं।
सीस मुकुट लटा छुटी और छुटी अलकै
सुर नर मुनि द्वार ठाढ़े, दरस हेतु कलकैं।
नासिका के मोती सोहै बीच लाल ललकैं
कटि पीतांबर मुरली कर श्रवन कुंडल झलकै।
सूरदास मदनमोहन दरस दैहौं भलकै
नवल किसोर नवल नागरिया।
अपनी भुजा स्याम भुज ऊपर, स्याम भुजा अपने उर धारिया
करत विनोद तरनि तनया तट, स्यामा स्याम उमगि रस भरिया।
यौं लपटाइ रहे उर अंतर मरकत मनि कंचन ज्यों ज़रिया
उपमा को घन दामिनी नाहीं, कँदरप कोटि वारने करिया।
सूर मदनमोहन बलि जोरी नंदनंदन बृषभानु दुलरिया
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 5”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 134।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख