"बाडोली": अवतरणों में अंतर
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'''बाडोली''' [[कोटा राजस्थान|कोटा]], [[राजस्थान]] से 50 किलोमीटर दक्षिण में [[चित्तौड़गढ़]] ज़िले में स्थित है। यह [[हिन्दू]] मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। बाडोली में स्थित मन्दिर समूह में नौ मन्दिर हैं, जिनमें भगवान [[शिव]], [[विष्णु]], [[त्रिमूर्ति]], [[वामन अवतार|वामन]], [[महिषासुर]] मर्दिनी एवं [[गणेश]] मन्दिर मुख्य हैं। | |||
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बाडोली के ये मन्दिर पंचायतन शैली में बने हुए हैं। इन्हें [[कर्नल जेम्स टॉड]] ने सबसे पहले 1821 ई. में खोजा था। [[फ़र्ग्यूसन]] ने इन मन्दिरों को तत्कालीन युग का सर्वश्रेष्ठ स्थापत्य बताया है। जेम्स बर्जेस, गौरीशंकर ओझा इत्यादि विद्वानों ने भी इन पर खोजपूर्ण कार्य किया। ये मन्दिर समूह आठवीं से बारहवीं शताब्दी की कृतियाँ हैं। इनका राजनीतिक इतिहास पूर्णतः स्पष्ट नहीं है। इन मन्दिर के समूहों में शिव मन्दिर प्रमुख है, जो 'घाटेश्वर शिवालय' के नाम से प्रसिद्ध है। यह [[उड़ीसा]] शैली के मन्दिरों से मिलता-जुलता है। अलंकृत मण्डप व [[तोरण]] द्वार इसकी विशिष्टता है। मूर्तियों की भंगिमाएँ, लोच व प्रवाह [[एलोरा की गुफ़ाएँ|एलोरा]] के गुफ़ा मन्दिरों में चित्रित शिव के बलिष्ठ स्वरूप की स्मृति दिलाते हैं। | |||
====स्थापत्य कला विभाजन==== | |||
बाडोली के मन्दिर स्थापत्य कला में मुख्यतः चार भाग में विभाजित हैं- | |||
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कर्नल टॉड ने बाडोली के मन्दिरों को देखकर आश्चर्यपूर्वक लिखा है कि "उनकी विचित्र और भव्य बनावट का यथावत् वर्णन करना लेखनी की शक्ति से बाहर है। यहाँ मानों हुनर का ख़ज़ाना ख़ाली कर दिया गया है।" उन्होंने इसके वर्णन में लिखा है कि "लगभग 500 हाथ की चौकोर भूमि में यह मन्दिर बना हुआ है।" इसके दीर्घ स्थायित्व के दो कारण हैं। एक प्रत्येक पत्थर से [[रंग|रंगा]] हुआ है। इस मन्दिर समूह में पूर्वाभिमुख शेषशायी [[विष्णु]] की प्रतिमा थी, जो अब 'कोटा संग्रहालय' में सुरक्षित है। | |||
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14:12, 27 मई 2012 के समय का अवतरण
बाडोली कोटा, राजस्थान से 50 किलोमीटर दक्षिण में चित्तौड़गढ़ ज़िले में स्थित है। यह हिन्दू मन्दिरों के लिए प्रसिद्ध है। बाडोली में स्थित मन्दिर समूह में नौ मन्दिर हैं, जिनमें भगवान शिव, विष्णु, त्रिमूर्ति, वामन, महिषासुर मर्दिनी एवं गणेश मन्दिर मुख्य हैं।
इतिहास
बाडोली के ये मन्दिर पंचायतन शैली में बने हुए हैं। इन्हें कर्नल जेम्स टॉड ने सबसे पहले 1821 ई. में खोजा था। फ़र्ग्यूसन ने इन मन्दिरों को तत्कालीन युग का सर्वश्रेष्ठ स्थापत्य बताया है। जेम्स बर्जेस, गौरीशंकर ओझा इत्यादि विद्वानों ने भी इन पर खोजपूर्ण कार्य किया। ये मन्दिर समूह आठवीं से बारहवीं शताब्दी की कृतियाँ हैं। इनका राजनीतिक इतिहास पूर्णतः स्पष्ट नहीं है। इन मन्दिर के समूहों में शिव मन्दिर प्रमुख है, जो 'घाटेश्वर शिवालय' के नाम से प्रसिद्ध है। यह उड़ीसा शैली के मन्दिरों से मिलता-जुलता है। अलंकृत मण्डप व तोरण द्वार इसकी विशिष्टता है। मूर्तियों की भंगिमाएँ, लोच व प्रवाह एलोरा के गुफ़ा मन्दिरों में चित्रित शिव के बलिष्ठ स्वरूप की स्मृति दिलाते हैं।
स्थापत्य कला विभाजन
बाडोली के मन्दिर स्थापत्य कला में मुख्यतः चार भाग में विभाजित हैं-
- गर्भगृह
- अन्तराल
- मुखमण्डप
- शिखर
टॉड का वर्णन
कर्नल टॉड ने बाडोली के मन्दिरों को देखकर आश्चर्यपूर्वक लिखा है कि "उनकी विचित्र और भव्य बनावट का यथावत् वर्णन करना लेखनी की शक्ति से बाहर है। यहाँ मानों हुनर का ख़ज़ाना ख़ाली कर दिया गया है।" उन्होंने इसके वर्णन में लिखा है कि "लगभग 500 हाथ की चौकोर भूमि में यह मन्दिर बना हुआ है।" इसके दीर्घ स्थायित्व के दो कारण हैं। एक प्रत्येक पत्थर से रंगा हुआ है। इस मन्दिर समूह में पूर्वाभिमुख शेषशायी विष्णु की प्रतिमा थी, जो अब 'कोटा संग्रहालय' में सुरक्षित है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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