बरेदी नृत्य
बरेदी नृत्य बुंदेलखंड की संस्कृति से जुड़ा है। मार्शल आर्ट यूरोपीय देशों की ऐसी कला है, जो दूसरे के प्रहार करने पर खुद को शरीर की रक्षा करने में सक्षम बनाती है। कुछ वैसे ही बुंदेलखंड के बरेदी नृत्य में लाठी का इस्तेमाल भी मार्शल आर्ट से कम नहीं है। इसका रोमांच दीपावली के बाद परेवा व भैया दूज को राम की तपोभूमि चित्रकूट में दिखता है।
क्षेत्रीय कलाकार
- लोक संस्कृति को सहेजे बघेलखंडी व बुंदेलखंडी कलाकार अपने करतब से स्तब्ध कर देते हैं। अमावस्या पर पांच दिवसीय दीपदान मेला क्षेत्र में यू.पी. बुंदेलखंड के चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर और महोबा, मध्य प्रदेश के जबलपुर, दमोह, सागर, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, रीवा और सतना से आने वाले कलाकारों की टोलियां आकर्षक परिधान में अलग-अलग स्थान पर सबका मन मोह लेती हैं।
- चित्रकूट मेला क्षेत्र में दीपावली बरेदी नृत्य करने वाले कलाकार घुंघरुओं से मढ़ा नेकर पहनते हैं, जिसे 'लांग' कहते हैं। लांग चढ़ाना शान समझा जाता है। इस दौरान कई जगहों पर हाथ में मयूर पंख लेकर 'मयूरी नृत्य' की झलकियां भी दिखती हैं।
जोशीला लाठी युद्ध
बरेदी नृत्य अहीर ग्वाले करते हैं। ढोल-नगाड़े बजते ही पैरों में घुंघरू, कमर में पट्टा व हाथों में लाठियां संग इनका जोशीला अंदाज देखते ही बनता है। एक-दूसरे पर लाठी के तड़ातड़ वार से दिल दहल जाते हैं। हालांकि, लाठियों से किसी को तनिक भी चोट नहीं आती है।
बुंदेलखंड की परंपरा
लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन में जुटे समाजसेवी गोपाल भाई के अनुसार- "बुंदेलखंड की माटी परंपराओं से रची-बसी है। उसमें दिवारी नृत्य भी है, जिसे 'पाई डंडा नृत्य' भी कहते हैं। ऐसा नृत्य पूरे देश में कहीं पर नहीं होता है। इनके संरक्षण की जरूरत है"।
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