छेकानुप्रास अलंकार
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छेकानुप्रास - जहाँ अनेक व्यंजनों की एक बार स्वरूपत: व क्रमश: आवृत्ति हो, वहाँ 'छेकानुप्रास अलंकार' होता है।
- उदाहरण-
रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै,
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।
उपरोक्त पंक्तियों में 'रीझि-रीझि', 'रहसि-रहसि', 'हँसि-हँसि', और 'दई-दई' में छेकानुप्रास अलंकार है, क्योंकि व्यंजन वर्णों की आवृत्ति उसी क्रम और स्वरूप में हुई है।
- अन्य उदाहरण-
- देखौ दुरौ वह कुंज कुटीर में बैठो पलोटत राधिका पायन।[1]
- मैन मनोहर बैन बजै सुसजै तन सोहत पीत पटा है।[2]
उपर्युक्त पहली पंक्ति में 'द' और 'क' का तथा दूसरी पंक्ति में 'म' और 'ब' का प्रयोग दो बार हुआ है। इन वर्णों की आवृत्ति एक बार होने से यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है।
इन्हें भी देखें: रस, अलंकार एवं छन्द
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