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पदेन (र)

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हिन्दी भाषा में स्वर और व्यंजन दोनों को मिलाकर वर्ण बनते हैं। एक व्यंजन वर्ण है। हिन्दी भाषा में र का प्रयोग विभिन्न रूपों में होता है। कहीं र का प्रयोग स्वर के साथ होता है तो कहीं बिना स्वर के।[1]

  • 'र' के विभिन्न रूप कौन-कौन से हैं- र, रा, रि, री, रु, रू, रे, रै, रो, रौ !

र + उ = रु !

यहाँ र के साथ छोटी उ की मात्रा है। इनसे बने हुए शब्द - रुद्र, रुचि, रुपये, रुमाल आदि।
र + ऊ = रू !

यहाँ र के साथ बड़ी ऊ की मात्रा है। इनसे बने हुए शब्द- रूप, रूठना, अमरूद, डमरू, रूखा आदि।

  • र का सामान्य रूप-
  1. शब्द की शुरुआत में र का प्रयोग- रमन, रखवाला, रजनी आदि।
  2. शब्द के मध्य में र का प्रयोग - पुरुष, करतब, आराम आदि।
  3. शब्द के अंत में र का प्रयोग - आहार, परिवार, रविवार आदि।
  • इनके अलावा कुछ और रूपों में र का प्रयोग होता है। वह निम्नलिखित हैं-

र्र, ट्रे, क्र, ह्र ! इन रूपों के प्रयोग के बारे में चर्चा करते हैं।
र्र- इस रूप को रेफ कहा जाता है। शब्दों में इसका प्रयोग होते समय, इसके उच्चारण के बाद आने वाले वर्ण की अंतिम मात्रा के ऊपर रेफ लग जाता है, जैसे-

  1. परव = पर्व
  2. जुरमाना = जुर्माना
  3. वरणन = वर्णन
  4. परयावरण = पर्यावरण
  • कुछ-कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं, जिनमें दो रेफों का लगातार प्रयोग होता है, जैसे- धर्मार्थ, पूर्वार्ध आदि।
  • रेफ का प्रयोग कभी भी किसी शब्द के पहले अक्षर में नहीं लग सकता है।
  • र के ऊपर भी रेफ का प्रयोग किया जाता है, जैसे- खर्र-खर्र, टर्र-टर्र आदि।
  • क्र या ट्रे - र के इस रूप को "पदेन" कहा जाता है। यह र का स्वर सहित रूप है।
  • जिस वर्ण को बोलने में अ आता है, वह र का स्वर सहित रूप है, जैसे- क बोलने में अ आता है।
  • र का यह रूप अपने से पहले आए हुए व्यंजन वर्ण में लगता है।
  • पाई वाले व्यंजनों जैसे (।) क, ग, प ये सब पाई वाले व्यंजन हैं, जिन्हें लिखने में एक सीघी पायी आती है। इस व्यंजन में र का यह रूप तिरछा ( ्) होकर लगता है, जैसे- क्र, प्र, ग्र आदि।
  • क्र लिखना है तो क् + र को एक साथ लिखने पर क्र बन जाएगा।
  • पाई रहित व्यंजनों में नीचे पदेन का दूसरा रूप इस तरह होता है, जैसे- राष्ट्र, ड्रम, पेट्रोल, ड्राईवर आदि।
  • राष्ट्र लिखना है तो रा+ ष् + ट् + र को एक साथ लिखने पर राष्ट्र बन जाएगा। आप खुद लिखकर देख सकते हैं।
  • द और ह में जब नीचे पदेन का प्रयोग होता है तो द्+ र = द्र बन जाता है, जैसे- दरिद्र, रुद्र आदि।
  • ह् + र = ह्र बन जाता है, जैसे- ह्रास
  • त में जब पदेन र का प्रयोग होता है तो त् + र = त्र बन जाता है, जैसे- नेत्र, त्रिकोण, त्रिशूल आदि।
  • श में जब पदेन र का प्रयोग होता है तो श् + र = श्र बन जाता है, जैसे- श्रमिक, अश्रु, श्रवण आदि।
  • कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिनमें दो पदेन र का प्रयोग एक ही शब्द में होता है, जैसे- प्रक्रिया, प्रक्रम आदि।
  • कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिनमें पदेन और रेफ का एक ही शब्द में प्रयोग होता है, जैसे- आर्द्रता, प्रार्थना, पुनर्प्रस्तुतिकरण
  • र और ऋ में अंतर : र व्यंजन वर्ण है और ऋ स्वर वर्ण है।
  • ऋ का प्रयोग - जैसे : गृह लिखना है तो ( ृ ) ऋ की यह मात्रा जो ब्रैकेट में लिखा है, वही लगता है।
  • हृदय लिखना है तो ह में ऋ की मात्रा ( ृ) का प्रयोग किया जाता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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