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एक महान कर्म है
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जीने का हो सदुपयोग
 
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यह मनुज धर्म है
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यह मनुज धर्म है।
  
 
अपने ही में रहना
 
अपने ही में रहना
एक प्रबुद्ध कला है
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एक प्रबुद्ध कला है,
 
जग के हित रहने में
 
जग के हित रहने में
सबका सहज भला है
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सबका सहज भला है।
  
 
जग का प्यार मिले
 
जग का प्यार मिले
जन्मों के पुण्य चाहिए
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जन्मों के पुण्य चाहिए,
 
जग जीवन को
 
जग जीवन को
प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए
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प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए।
  
 
ज्ञानी बनकर
 
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मत नीरस उपदेश दीजिए
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मत नीरस उपदेश दीजिए,
 
लोक कर्म भव सत्य
 
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प्रथम सत्कर्म कीजिए
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प्रथम सत्कर्म कीजिए।
 
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11:47, 29 अगस्त 2011 का अवतरण

जीना अपने ही में -सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

जीना अपने ही में
एक महान कर्म है,
जीने का हो सदुपयोग
यह मनुज धर्म है।

अपने ही में रहना
एक प्रबुद्ध कला है,
जग के हित रहने में
सबका सहज भला है।

जग का प्यार मिले
जन्मों के पुण्य चाहिए,
जग जीवन को
प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए।

ज्ञानी बनकर
मत नीरस उपदेश दीजिए,
लोक कर्म भव सत्य
प्रथम सत्कर्म कीजिए।





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