"अंगुत्तरनिकाय" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replace - '[[category' to '[[Category')
 
छो (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
(7 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 14 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
+
'''अंगुत्तरनिकाय''' महत्त्वपूर्ण [[बौद्ध]] [[ग्रंथ]] है। इसके लेखक महंत आनंद कौसलायन हैं। महाबोधि सभा, [[कलकत्ता]] द्वारा इसको वर्तमान समय में प्रकाशित किया गया है।  
==अंगुत्तरनिकाय / Anguttara Nikaya==
+
*11 निपातों से युक्त इस निकाय में [[बुद्ध|महात्मा बुद्ध]] द्वारा भिक्षुओं को उपदेश में की जाने वाली बातों का वर्णन है। इस निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के [[महाजनपद|सोलह महाजनपदों]] का उल्लेख मिलता हैं
*अंगुत्तरनिकाय महत्वपूर्ण [[बौद्ध]] ग्रंथ है। इसके लेखक महंत आनंद कौसलायन हैं। महाबोधि सभा, कलकत्ता द्वारा इसको वर्तमान समय में प्रकाशित किया गया है।  
+
*बौद्ध ग्रन्थ-बौद्धमतावल्बियों ने जिस साहित्य का सृजन किया, उसमें [[भारतीय इतिहास]] की जानकारी के लिए प्रचुर सामग्रियाँ उपलब्ध हैं।
*बौद्ध ग्रन्थ-बौद्धमतावल्बियों ने जिस साहित्य का सृजन किया, उसमें भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए प्रचुर सामग्रियाँ उपलब्ध हैं।
 
 
*बौद्ध संघ, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान विनय पिटक में प्राप्त होते हैं।  
 
*बौद्ध संघ, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान विनय पिटक में प्राप्त होते हैं।  
*अंगुत्तरनिकाय की अपनी एक विशेषता है। इसमें सुत्तों का संग्रह एक व्यवस्था के अनुसार किया गया है। इस में ऐसे सुत्त हैं जिनमें बुद्ध भगवान के एक संख्यात्मक पदार्थों विषयक उपदेश संग्रह है, तत्पश्चात दो पदार्थों विषयक सुत्तों का और फिर तीन, चार आदि। इसी क्रम से इस निकाय के भीतर एकनिपात, दुकनिपात एवं तिक, चतुवक, पंचक, छक्क, सत्तक, अट्ठक, नवक, दशक और एकादशक इन नामों के ग्यारह निपातों का संकलन है।
+
*अंगुत्तरनिकाय की अपनी एक विशेषता है। इसमें सुत्तों का संग्रह एक व्यवस्था के अनुसार किया गया है। इस में ऐसे सुत्त हैं जिनमें बुद्ध भगवान के एक संख्यात्मक पदार्थों विषयक उपदेश संग्रह है, तत्पश्चात् दो पदार्थों विषयक सुत्तों का और फिर तीन, चार आदि। इसी क्रम से इस निकाय के भीतर एकनिपात, दुकनिपात एवं तिक, चतुवक, पंचक, छक्क, सत्तक, अट्ठक, नवक, दशक और एकादशक इन नामों के ग्यारह निपातों का संकलन है।
 
*ये निपात पुन: वर्गों में विभाजित हैं, जिनकी संख्या निपात क्रम से 21, 16, 16, 26, 12, 9, 9, 9, 22 और 3 है । इस प्रकार 11 निपातों में कुल वर्गों की संख्या 169 है। प्रत्येक वर्ग के भीतर अनेक सुत्त हैं जिनकी संख्या एक वर्ग में कम से कम 7 और अधिक से अधिक 262 है।
 
*ये निपात पुन: वर्गों में विभाजित हैं, जिनकी संख्या निपात क्रम से 21, 16, 16, 26, 12, 9, 9, 9, 22 और 3 है । इस प्रकार 11 निपातों में कुल वर्गों की संख्या 169 है। प्रत्येक वर्ग के भीतर अनेक सुत्त हैं जिनकी संख्या एक वर्ग में कम से कम 7 और अधिक से अधिक 262 है।
*इस प्रकार अंगुत्तरनिकाय से सुत्तों की संख्या 2308 है ।
+
*इस प्रकार अंगुत्तरनिकाय से सुत्तों की संख्या 2308 है।
 
 
 
 
 
 
[[Category:विविध]]
 
  
 +
{{लेख प्रगति
 +
|आधार=
 +
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
 +
|माध्यमिक=
 +
|पूर्णता=
 +
|शोध=
 +
}}
 +
==संबंधित लेख==
 +
{{बौद्ध साहित्य}}
 +
{{बौद्ध धर्म}}
 +
[[Category:बौद्ध साहित्य]]
 +
[[Category:साहित्य_कोश]]
 +
[[Category:बौद्ध धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

07:51, 23 जून 2017 के समय का अवतरण

अंगुत्तरनिकाय महत्त्वपूर्ण बौद्ध ग्रंथ है। इसके लेखक महंत आनंद कौसलायन हैं। महाबोधि सभा, कलकत्ता द्वारा इसको वर्तमान समय में प्रकाशित किया गया है।

  • 11 निपातों से युक्त इस निकाय में महात्मा बुद्ध द्वारा भिक्षुओं को उपदेश में की जाने वाली बातों का वर्णन है। इस निकाय में छठी शताब्दी ई.पू. के सोलह महाजनपदों का उल्लेख मिलता हैं
  • बौद्ध ग्रन्थ-बौद्धमतावल्बियों ने जिस साहित्य का सृजन किया, उसमें भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए प्रचुर सामग्रियाँ उपलब्ध हैं।
  • बौद्ध संघ, भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिये आचरणीय नियम विधान विनय पिटक में प्राप्त होते हैं।
  • अंगुत्तरनिकाय की अपनी एक विशेषता है। इसमें सुत्तों का संग्रह एक व्यवस्था के अनुसार किया गया है। इस में ऐसे सुत्त हैं जिनमें बुद्ध भगवान के एक संख्यात्मक पदार्थों विषयक उपदेश संग्रह है, तत्पश्चात् दो पदार्थों विषयक सुत्तों का और फिर तीन, चार आदि। इसी क्रम से इस निकाय के भीतर एकनिपात, दुकनिपात एवं तिक, चतुवक, पंचक, छक्क, सत्तक, अट्ठक, नवक, दशक और एकादशक इन नामों के ग्यारह निपातों का संकलन है।
  • ये निपात पुन: वर्गों में विभाजित हैं, जिनकी संख्या निपात क्रम से 21, 16, 16, 26, 12, 9, 9, 9, 22 और 3 है । इस प्रकार 11 निपातों में कुल वर्गों की संख्या 169 है। प्रत्येक वर्ग के भीतर अनेक सुत्त हैं जिनकी संख्या एक वर्ग में कम से कम 7 और अधिक से अधिक 262 है।
  • इस प्रकार अंगुत्तरनिकाय से सुत्तों की संख्या 2308 है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख