सौत्रान्तिक दर्शन
उद्भव एवं विकास
- सामान्यतया विद्वानों की धारणा है कि सौत्रान्तिक निकाय का प्रादुर्भाव बुद्ध के परिनिर्वाण के अनन्तर द्वितीय शतक में हुआ।
- पालि-परम्परा के अनुसार वैशाली की द्वितीय संगीति के तत्काल बाद कौशाम्बी में आयोजित महासंगीति में महासांघिक निकाय का गठन किया गया और बौद्ध संघ दो भागों में विभक्त हो गया। थोड़े ही दिनों के अनन्तर स्थविर निकाय से महीशासक और वृजिपुत्रक (वज्जिपुत्तक) निकाय विकसित हुए। उसी शताब्दी में महीशासक निकाय से सर्वास्तिवाद, उससे काश्यपीय; उनसे संक्रान्तिवादी, फिर उससे सूत्रवादी निकाय का जन्म हुआ। आशय यह कि सभी अठारह निकाय उसी शताब्दी में विकसित हो गये।