बौद्ध दर्शन
भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्तित होने पर भी बौद्ध दर्शन कोई एक दर्शन नहीं, अपितु दर्शनों का समूह है। कुछ बातों में विचार साम्य होने पर भी परस्पर अत्यन्त मतभेद हैं। शब्द साम्य होने पर भी अर्थ भेद अधिक हैं। अनेक शाखोपशाखाओं में विभक्त होने पर भी दार्शनिक मान्यताओं में साम्य की दृष्टि से बौद्ध विचारों का चार विभागों में वर्गीकरण किया गया है, यथा-
- वैभाषिक,
- सौत्रान्तिक,
- योगाचार एवं
- माध्यमिक।
- यद्यपि अठारह निकायों का वैभाषिक दर्शन में संग्रह हो जाता है और अठारह निकायों में स्थविरवाद भी संग्रहीत है, जागतिक विविध दु:खों के दर्शन से तथागत शाक्यमुनि भगवान बुद्ध में सर्वप्रथम महाकरुणा का उत्पाद हुआ। तदनन्तर उस महाकरुणा से प्रेरित होने की वजह से 'मैं इन दु:खी प्राणियों को दु:ख से मुक्त करने और उन्हें सुख से अन्वित करने का भार अपने कन्धों पर लेता हूँ और इसके लिए बुद्धत्व प्राप्त करूंगा'- इस प्रकार का उनमें बोधिचित्त उत्पन्न हुआ।
- उनकी देशनाएं तीन पिटकों और तीन यानों में विभक्त की जाती हैं।
- सूत्र,
- विनय और
- अभिधर्म- ये तीन पिटक हैं।
- श्रावकयान,
- प्रत्येक बुद्धयान और
- बोधिसत्त्वयान- ये तीन यान हैं।
- श्रावकयान और प्रत्येकबुद्धयान को हीनयान और बोधिसत्त्वयान को महायान कहते हैं।
श्रावकयान
जो विनेय जन दु:खमय संसार-सागर को देखकर तथा उससे उद्विग्न होकर तत्काल उससे मुक्ति की अभिलाषा तो रखते हैं, किन्तु तात्कालिक रूप से सम्पूर्ण प्राणियों के हित और सुख के लिए सम्यक सम्बुद्धत्व की प्राप्ति का अध्याशय (इच्छा) नहीं रखते- ऐसे विनेय जन श्रावकयानी कहलाते हैं। उनके लिए प्रथम धर्मचक्र का प्रवर्तन करते हुए भगवान ने चार आर्यसत्व और उनके अनित्यता आदि सोलह आकारों की देशना की और इनकी भावना करने से पुद्गलनैरात्म्य का साक्षात्कार करके क्लेशावरण का समूल प्रहाण करते हुए अर्हत्त्व की और निर्वाण की प्राप्ति का मार्ग उपदिष्ट किया।