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अवधूता युगन युगन हम योगी
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अवधूता युगन युगन हम योगी,
आवै ना जाय मिटै ना कबहूं
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आवै ना जाय मिटै ना कबहूं, सबद अनाहत भोगी।
सबद अनाहत भोगी
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सभी ठौर जमात हमरी
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सभी ठौर जमात हमरी, सब ही ठौर पर मेला।
सब ही ठौर पर मेला
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हम सब माय, सब है हम माय, हम है बहुरी अकेला।
हम सब माय सब है हम माय
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हम है बहुरी अकेला
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हम ही सिद्ध समाधि हम ही, हम मौनी हम बोले।
हम ही सिद्ध समाधि हम ही
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रूप सरूप अरूप दिखा के, हम ही हम तो खेलें।
हम मौनी हम बोले
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रूप सरूप अरूप दिखा के
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कहे कबीर जो सुनो भाई साधो, ना हीं न कोई इच्छा।
हम ही हम तो खेलें
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अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं, खेलूं सहज स्वइच्छा।
कहे कबीर जो सुनो भाई साधो
 
ना हीं न कोई इच्छा
 
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं
 
खेलूं सहज स्वेच्छा
 
 
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07:23, 14 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

अवधूता युगन युगन हम योगी -कबीर
संत कबीरदास
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

अवधूता युगन युगन हम योगी,
आवै ना जाय मिटै ना कबहूं, सबद अनाहत भोगी।

सभी ठौर जमात हमरी, सब ही ठौर पर मेला।
हम सब माय, सब है हम माय, हम है बहुरी अकेला।

हम ही सिद्ध समाधि हम ही, हम मौनी हम बोले।
रूप सरूप अरूप दिखा के, हम ही हम तो खेलें।

कहे कबीर जो सुनो भाई साधो, ना हीं न कोई इच्छा।
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं, खेलूं सहज स्वइच्छा।








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