"पुहकर कवि": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*पुहकर कवि परतापपुर, ज़िला मैनपुरी के रहने वाले थे, पर बाद में [[गुजरात]] में [[सोमनाथ|सोमनाथ जी]] के पास भूमिगाँव में रहते थे।  
'''पुहकर कवि''' परतापपुर, ज़िला मैनपुरी के रहने वाले थे, पर बाद में [[गुजरात]] में [[सोमनाथ|सोमनाथ जी]] के पास भूमिगाँव में रहते थे।  
*ये जाति के [[कायस्थ]] थे और [[जहाँगीर]] के समय में वर्तमान थे।  
*ये जाति के [[कायस्थ]] थे और [[जहाँगीर]] के समय में वर्तमान थे।  
*कहते हैं कि जहाँगीर ने किसी बात पर इन्हें [[आगरा]] में कैद कर लिया था। वहीं कारागार में इन्होंने '[[रसरतन]]' नामक ग्रंथ [[संवत्]] 1673 में लिखा जिस पर प्रसन्न होकर बादशाह ने इन्हें कारागार से मुक्त कर दिया।  
*कहते हैं कि जहाँगीर ने किसी बात पर इन्हें [[आगरा]] में कैद कर लिया था। वहीं कारागार में इन्होंने '[[रसरतन]]' नामक ग्रंथ [[संवत्]] 1673 में लिखा जिस पर प्रसन्न होकर बादशाह ने इन्हें कारागार से मुक्त कर दिया।  
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
[[Category:कवि]]  
[[Category:कवि]]  
[[Category:निर्गुण भक्ति]]   
[[Category:निर्गुण भक्ति]]   
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]]
[[Category:चरित कोश]]  
[[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:चरित कोश]]  
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:भक्ति काल]]  
[[Category:भक्ति काल]]  
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

14:42, 10 सितम्बर 2012 का अवतरण

पुहकर कवि परतापपुर, ज़िला मैनपुरी के रहने वाले थे, पर बाद में गुजरात में सोमनाथ जी के पास भूमिगाँव में रहते थे।

  • ये जाति के कायस्थ थे और जहाँगीर के समय में वर्तमान थे।
  • कहते हैं कि जहाँगीर ने किसी बात पर इन्हें आगरा में कैद कर लिया था। वहीं कारागार में इन्होंने 'रसरतन' नामक ग्रंथ संवत् 1673 में लिखा जिस पर प्रसन्न होकर बादशाह ने इन्हें कारागार से मुक्त कर दिया।
  • इस ग्रंथ में संयोग और वियोग की विविधा दशाओं का साहित्य की रीति पर वर्णन है। वर्णन उसी ढंग के हैं जिस ढंग के श्रृंगार के मुक्तक कवियों ने किए हैं।
  • इस कवि के और ग्रंथ नहीं मिले हैं। पर प्राप्त ग्रंथ को देखने से ये एक अच्छे कवि जान पड़ते हैं। इनकी रचना की शैली दिखाने के लिए उध्दृत पद्य पर्याप्त होंगे -

चले मैमता हस्ति झूमंत मत्ता। मनो बद्दला स्याम साथै चलंता
बनी बागरी रूप राजंत दंता। मनौ बग्ग आसाढ़ पाँतैं उदंता
लसैं पीत लालैं, सुढालैं ढलक्कैं। मनों चंचला चौंधिा छाया छलक्कैं


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 5”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 162।

संबंधित लेख