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09:47, 14 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

  • हरिनाथ काशी के रहने वाले गुजराती ब्राह्मण थे।
  • इन्होंने संवत 1826 में 'अलंकार दर्पण' नामक एक छोटा सा ग्रंथ बनाया जिसमें एक एक पद के भीतर कई कई उदाहण हैं।
  • इनका कार्य विलक्षण है। इन्होंने पहले अनेक दोहों में बहुत से लक्षण कहे हैं और फिर एक साथ सबके उदाहरण कवित्त आदि में दिए गए हैं।
  • कविता साधारणत: अच्छी है।

तरुनी लसति प्रकास तें मालति लसति सुबास।
गोरस गोरस देत नहिं गोरस चहति हुलास


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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