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नाग की दस जातियाँ अफ्रीका, [[अरब]] और [[भारत]] से लेकर दक्षिणी चीन, फिलीपाइन और मलाया प्रायद्वीपों में पाई जाती हैं। कुछ जातियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका और कुछ [[बर्मा]] तथा ईस्टइंडीज में ही पाई जाती हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में नाग पाया जाता है। दक्षिण अफ्रीका में कई प्रकार के नाग पाए जाते हैं, जिनमें काली गरदनवाला नाग अधिक व्यापक है। | नाग की दस जातियाँ अफ्रीका, [[अरब]] और [[भारत]] से लेकर दक्षिणी चीन, फिलीपाइन और मलाया प्रायद्वीपों में पाई जाती हैं। कुछ जातियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका और कुछ [[बर्मा]] तथा ईस्टइंडीज में ही पाई जाती हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में नाग पाया जाता है। दक्षिण अफ्रीका में कई प्रकार के नाग पाए जाते हैं, जिनमें काली गरदनवाला नाग अधिक व्यापक है। | ||
नाग के ऊपरी जबड़े के अग्रभाग में विष की थैली रहती है। इसका काटना घातक है और अधिकतर तीन से लेकर छह घंटे के भीतर मृत्यु होती है। भारत में हजारों व्यक्ति प्रति वर्ष साँप के काटने से मरते हैं। काली गरदन वाला नाग शत्रुओं पर कई फुट दूर तक विष थूकता है। यदि विष आँखों पर पड़ जाए तो तीव्र क्षोभ उत्पन्न होता है, जिससे आक्रांत व्यक्ति या पशु अस्थायी रूप से और कभी-कभी स्थायी रूप से अंधा हो जाता है। भारत में नाग को करिया, करैत या कहीं-कहीं फेटार भी कहते हैं। नाग जमीन पर रहने वाला [[सर्प|साँप]] है। पर पेड़ों पर भी चढ़ जाता है और पानी पर भी तैर लेता है। | नाग के ऊपरी जबड़े के अग्रभाग में विष की थैली रहती है। इसका काटना घातक है और अधिकतर तीन से लेकर छह घंटे के भीतर मृत्यु होती है। भारत में हजारों व्यक्ति प्रति वर्ष साँप के काटने से मरते हैं। काली गरदन वाला नाग शत्रुओं पर कई फुट दूर तक विष थूकता है। यदि विष आँखों पर पड़ जाए तो तीव्र क्षोभ उत्पन्न होता है, जिससे आक्रांत व्यक्ति या पशु अस्थायी रूप से और कभी-कभी स्थायी रूप से अंधा हो जाता है। भारत में नाग को करिया, करैत या कहीं-कहीं फेटार भी कहते हैं। नाग जमीन पर रहने वाला [[सर्प|साँप]] है। पर पेड़ों पर भी चढ़ जाता है और पानी पर भी तैर लेता है। | ||
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==रूप और आकृति== | ==रूप और आकृति== | ||
नाग का रंग कुछ पीलापन लिए हुए गाढ़े भूरे रंग का होता है। शरीर पर काली और सफेद चित्तियाँ होती हैं। यह साढ़े पाँच से छह फुट तक लंबा होता है। यह अपने सिर को ऊपर उठाकर फण को बहुत फैला सकता है, विशेषत: तब जब उसे खिझाया या छेड़ा जाता है। इससे नाग की पहचान सरलता से हो जाती है। | नाग का रंग कुछ पीलापन लिए हुए गाढ़े भूरे रंग का होता है। शरीर पर काली और सफेद चित्तियाँ होती हैं। यह साढ़े पाँच से छह फुट तक लंबा होता है। यह अपने सिर को ऊपर उठाकर फण को बहुत फैला सकता है, विशेषत: तब जब उसे खिझाया या छेड़ा जाता है। इससे नाग की पहचान सरलता से हो जाती है। | ||
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मादा नाग सूखे पत्तों का खोता बनाकर, उसमें 12 से 22 तक अंडे देती है। अंडों से प्राय: दो महीनों में 8 से लेकर 10 इंच तक के सँपोले निकलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सँपोले नाग से भी अधिक विषैले होते हैं। नाग चूहों, मेढ़कों, चिड़ियों और उनके अंडों तथा अन्य साँपों को भी खाता है। | मादा नाग सूखे पत्तों का खोता बनाकर, उसमें 12 से 22 तक अंडे देती है। अंडों से प्राय: दो महीनों में 8 से लेकर 10 इंच तक के सँपोले निकलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सँपोले नाग से भी अधिक विषैले होते हैं। नाग चूहों, मेढ़कों, चिड़ियों और उनके अंडों तथा अन्य साँपों को भी खाता है। | ||
==नाग का विष== | ==नाग का विष== | ||
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साँप का विष तंत्रिकातंत्र को बहुत शीघ्र आक्रांत करता है। [[रुधिर]] [[कणिका|कणिकाओं]] के नष्ट हो जाने से विष का विषैला प्रभाव पड़ता है। विष के प्रभाव से बचने का एकमात्र उपाय आक्रांत भाग को तुरंत चीरकर, वहाँ का रक्त पूर्णतया निकाल देता है, ताकि विष शरीर के अन्य भागों में न फैले। आजकल साँप के प्रतिदंशविष भी बने हैं, जिनकी सूई देने से विष से निवृत्ति होती है। यह प्रतिदंशविष उन घोड़ों के सीरम से तैयार होता है जिनमें विष के प्रति प्रतिरक्षा का गुण आ जाता है। काटने के बाद प्रतिदंशविष की सुई तुरत देने से यह प्रभावकारी होता है। | साँप का विष तंत्रिकातंत्र को बहुत शीघ्र आक्रांत करता है। [[रुधिर]] [[कणिका|कणिकाओं]] के नष्ट हो जाने से विष का विषैला प्रभाव पड़ता है। विष के प्रभाव से बचने का एकमात्र उपाय आक्रांत भाग को तुरंत चीरकर, वहाँ का रक्त पूर्णतया निकाल देता है, ताकि विष शरीर के अन्य भागों में न फैले। आजकल साँप के प्रतिदंशविष भी बने हैं, जिनकी सूई देने से विष से निवृत्ति होती है। यह प्रतिदंशविष उन घोड़ों के सीरम से तैयार होता है जिनमें विष के प्रति प्रतिरक्षा का गुण आ जाता है। काटने के बाद प्रतिदंशविष की सुई तुरत देने से यह प्रभावकारी होता है। | ||
==नाग की जाति== | ==नाग की जाति== |
05:44, 24 जून 2011 का अवतरण
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Indian Cobra
नाग की दस जातियाँ अफ्रीका, अरब और भारत से लेकर दक्षिणी चीन, फिलीपाइन और मलाया प्रायद्वीपों में पाई जाती हैं। कुछ जातियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका और कुछ बर्मा तथा ईस्टइंडीज में ही पाई जाती हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में नाग पाया जाता है। दक्षिण अफ्रीका में कई प्रकार के नाग पाए जाते हैं, जिनमें काली गरदनवाला नाग अधिक व्यापक है।
नाग के ऊपरी जबड़े के अग्रभाग में विष की थैली रहती है। इसका काटना घातक है और अधिकतर तीन से लेकर छह घंटे के भीतर मृत्यु होती है। भारत में हजारों व्यक्ति प्रति वर्ष साँप के काटने से मरते हैं। काली गरदन वाला नाग शत्रुओं पर कई फुट दूर तक विष थूकता है। यदि विष आँखों पर पड़ जाए तो तीव्र क्षोभ उत्पन्न होता है, जिससे आक्रांत व्यक्ति या पशु अस्थायी रूप से और कभी-कभी स्थायी रूप से अंधा हो जाता है। भारत में नाग को करिया, करैत या कहीं-कहीं फेटार भी कहते हैं। नाग जमीन पर रहने वाला साँप है। पर पेड़ों पर भी चढ़ जाता है और पानी पर भी तैर लेता है।

Indian Cobra
रूप और आकृति
नाग का रंग कुछ पीलापन लिए हुए गाढ़े भूरे रंग का होता है। शरीर पर काली और सफेद चित्तियाँ होती हैं। यह साढ़े पाँच से छह फुट तक लंबा होता है। यह अपने सिर को ऊपर उठाकर फण को बहुत फैला सकता है, विशेषत: तब जब उसे खिझाया या छेड़ा जाता है। इससे नाग की पहचान सरलता से हो जाती है।
- मादा नाग
मादा नाग सूखे पत्तों का खोता बनाकर, उसमें 12 से 22 तक अंडे देती है। अंडों से प्राय: दो महीनों में 8 से लेकर 10 इंच तक के सँपोले निकलते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सँपोले नाग से भी अधिक विषैले होते हैं। नाग चूहों, मेढ़कों, चिड़ियों और उनके अंडों तथा अन्य साँपों को भी खाता है।
नाग का विष

Indian Cobra
साँप का विष तंत्रिकातंत्र को बहुत शीघ्र आक्रांत करता है। रुधिर कणिकाओं के नष्ट हो जाने से विष का विषैला प्रभाव पड़ता है। विष के प्रभाव से बचने का एकमात्र उपाय आक्रांत भाग को तुरंत चीरकर, वहाँ का रक्त पूर्णतया निकाल देता है, ताकि विष शरीर के अन्य भागों में न फैले। आजकल साँप के प्रतिदंशविष भी बने हैं, जिनकी सूई देने से विष से निवृत्ति होती है। यह प्रतिदंशविष उन घोड़ों के सीरम से तैयार होता है जिनमें विष के प्रति प्रतिरक्षा का गुण आ जाता है। काटने के बाद प्रतिदंशविष की सुई तुरत देने से यह प्रभावकारी होता है।
नाग की जाति
नाग की एक जाति नागराज है। यह भारत के दक्षिणी भागों, बंगाल और मद्रास में पाया जाता है। यह 8 से 12 या 15 फुट तक लंबा होता है। यह नाग से भी अधिक भयंकर और विषैला होता है। यह बहुत तेज दौड़कर आदमी का पीछा कर सकता है। इससे बचने का उपाय है, छाते या अन्य इसी प्रकार के पदार्थ को फेंक देना। इससे वह फेंके पदार्थ में उलझकर दौड़ना बंद कर देता है।
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