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*नेवाज या निवाज का शाब्दिक अर्थ दयालु होता है।<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?mean=66489|title=शब्द अर्थ खोजें|accessmonthday=8मई |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह्|language=हिंदी}}</ref> | *नेवाज अंतर्वेद के रहने वाले [[ब्राह्मण]] थे और संवत 1737 के लगभग [[मुग़ल]] कालीन कवि थे। | ||
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*इनके अच्छे श्रृंगारी कवि होने में संदेह नहीं। संयोग श्रृंगार के वर्णन की प्रवृत्ति इनकी विशेष जान पड़ती है, जिसमें कहीं कहीं ये अश्लीलता की सीमा तक चले जाते हैं - | *इनके अच्छे श्रृंगारी कवि होने में संदेह नहीं। संयोग श्रृंगार के वर्णन की प्रवृत्ति इनकी विशेष जान पड़ती है, जिसमें कहीं कहीं ये अश्लीलता की सीमा तक चले जाते हैं - | ||
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14:24, 10 मई 2011 का अवतरण
- नेवाज अंतर्वेद के रहने वाले ब्राह्मण थे और संवत 1737 के लगभग मुग़ल कालीन कवि थे।
- नेवाज या निवाज का शाब्दिक अर्थ दयालु होता है।[1]
- ऐसा प्रसिद्ध है कि पन्ना नरेश महाराज छत्रसाल के यहाँ इन्हें 'भगवत कवि' के स्थान पर नियुक्त किया गया था, जिस पर भगवत कवि ने यह फबती छोड़ी थी -
भली आजु कलि करत हौ, छत्रसाल महराज।
जहँ भगवत् गीता पढ़ी तहँ कवि पढ़त नेवाज
- 'शिवसिंह' ने नेवाज का जन्म संवत 1739 लिखा है जो ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि इनके 'शकुंतला नाटक' का निर्माणकाल संवत 1737 है।
- दो और नेवाज हुए हैं जिनमें एक 'भगवंत राय खीची' के यहाँ थे। इन नेवाज का औरंगज़ेब के पुत्र 'आजमशाह' के यहाँ रहना भी पाया जाता है।
- इन्होंने 'शकुंतला नाटक' का आख्यान दोहा, चौपाई, सवैया आदि छंदों में लिखा।
- इनके फुटकर कवित्त भी बहुत स्थानों पर संगृहीत मिलते हैं, जिनमें इनकी काव्य कुशलता और सहृदयता का ज्ञान होता है।
- इनकी भाषा परिमार्जित, व्यवस्थित और भावों के उपयुक्त है। उसमें व्यर्थ शब्द और वाक्य बहुत ही कम मिलते हैं।
- इनके अच्छे श्रृंगारी कवि होने में संदेह नहीं। संयोग श्रृंगार के वर्णन की प्रवृत्ति इनकी विशेष जान पड़ती है, जिसमें कहीं कहीं ये अश्लीलता की सीमा तक चले जाते हैं -
देखि हमैं सब आपुस में जो कछू मन भावै सोई कहती हैं।
ये घरहाई लुगाई सबै निसि द्यौस नेवाज हमैं दहती हैं
बातें चवाव भरी सुनिकै रिस आवति पै चुप ह्वै रहती हैं।
कान्ह पियारे तिहारे लिए सिगरे ब्रज को हँसिबो सहती हैं
आगे तौ कीन्हीं लगालगी लोयन, कैसे छिपे अजहूँ जौ छिपावति।
तू अनुराग को सोधा कियो, ब्रज की बनिता सब यों ठहरावति
कौन सँकोच रह्यो है नेवाज जो तू तरसै उनहूँ तरसावति।
बावरी! जो पै कलंक लग्यो तौ निसंक ह्वै क्यों नहिं अंक लगावति
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ शब्द अर्थ खोजें (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह्। अभिगमन तिथि: 8मई, 2011।