"रतन (कवि)": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "फतह" to "फ़तह") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "Category:रीति काल" to "Category:रीति कालCategory:रीतिकालीन कवि") |
||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
==सम्बंधित लेख== | ==सम्बंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category:रीति काल]] | [[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]] | ||
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
09:47, 14 अक्टूबर 2011 का अवतरण
- ये रीति काल के कवि थे।
- रतन कवि का जीवन वृत्त कुछ ज्ञात नहीं है।
- शिवसिंह ने इनका जन्म काल संवत 1798 लिखा है।
- इनका कविता काल संवत 1830 के आसपास माना जा सकता है।
- यह श्रीनगर, गढ़वाल के 'राजा फ़तहसिंह' के यहाँ रहते थे।
- उन्हीं के नाम पर 'फतेह भूषण' नामक एक अच्छा अलंकार का ग्रंथ इन्होंने बनाया।
- इसमें लक्षणा, व्यंजना, काव्यभेद, ध्वनि, रस, दोष आदि का विस्तृत वर्णन है।
- इन्होंने श्रृंगार के ही पद्य न रखकर अपने राजा की प्रशंसा के कवित्त बहुत रखे हैं।
- संवत 1827 में इन्होंने 'अलंकार दर्पण' लिखा।
- इनका निरूपण भी विशद है और उदाहरण भी बहुत मनोहर और सरस है।
- यह एक उत्तम श्रेणी के कुशल कवि थे।
बैरिन की बाहिनी को भीषन निदाघ रवि,
कुबलय केलि को सरस सुधाकरु है।
दान झरि सिंधुर है, जग को बसुंधार है,
बिबुधा कुलनि को फलित कामतरु है
पानिप मनिन को, रतन रतनाकर को,
कुबेर पुन्यजनन को, छमा महीधारु है।
अंग को सनाह, बनराह को रमा को नाह,
महाबाह फतेसाह एकै नरबरु है
काजर की कोरवारे भारे अनियारे नैन,
कारे सटकारे बार छहरे छवानि छ्वै।
स्याम सारी भीतर भभक गोरे गातन की,
ओपवारी न्यारी रही बदन उजारी ह्वै
मृगमद बेंदी भाल में दी, याही आभरन,
हरन हिए को तू है रंभा रति ही अवै।
नीके नथुनी के तैसे सुंदर सुहात मोती,
चंद पर च्वै रहै सु मानो सुधाबुंद द्वै
|
|
|
|
|