"बौद्ध संगीति प्रथम": अवतरणों में अंतर
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*महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए संगीति में उनके तीन शिष्यों-'महापण्डित महाकाश्यप', सबसे वयोवृद्ध 'उपालि' तथा सबसे प्रिय शिष्य '[[आनन्द (बौद्ध)|आनन्द]]' ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया। | *महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए संगीति में उनके तीन शिष्यों-'महापण्डित महाकाश्यप', सबसे वयोवृद्ध 'उपालि' तथा सबसे प्रिय शिष्य '[[आनन्द (बौद्ध)|आनन्द]]' ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया। | ||
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07:44, 23 जून 2017 के समय का अवतरण
प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन 483 ई.पू. में 'राजगृह' (आधुनिक राजगिरि), बिहार की 'सप्तपर्णि गुफ़ा' में किया गया था। महात्मा गौतम बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के कुछ समय बाद ही इस संगीति का आयोजन किया गया था।
- इस संगीति में बौद्ध स्थविरों (थेरों) ने भी भाग था।
- बुद्ध के प्रमुख शिष्य 'महाकस्यप' (महाकश्यप) ने इसकी अध्यक्षता की।
- महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए संगीति में उनके तीन शिष्यों-'महापण्डित महाकाश्यप', सबसे वयोवृद्ध 'उपालि' तथा सबसे प्रिय शिष्य 'आनन्द' ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया।
- इसके पश्चात् उनकी ये शिक्षाएँ गुरु-शिष्य परम्परा से मौखिक चलती रहीं, उन्हें लिपिबद्ध बहुत बाद में किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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