स्पीतियन जाति

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स्पीतियन जाति की सरजमीं हिमालय की गोद में बसी स्पीति घाटी है। स्पीतियन समाज में सन्यासी पुरूष को 'लामा' और सन्यासिनी महिला को 'चेमो' कहा जाता है।

  • 'भोटी भाषा' स्पीतियनों की भाषा है, यह भाषा तिब्बती से इतनी मिलती-जुलती है कि इसे तिब्बतन का दूसरा रूप भी कहते हैं।
  • सिलाई, बुनाई, खाने पकाने के साथ-साथ कृषि कार्यों में भी महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पारिवारिक मसलों पर निर्णय लेने का अधिकार तो महिलाओं के पास नहीं होता, परन्तु सभी मसलों पर उनकी राय बहुत अहम होती है।
  • स्पीतियन लोगों के घर, दो से तीन मंजिल के होते हैं। इन घरों को 'कांगचिंपा' कहा जाता है। इन घरों में भूतल का प्रयोग जानवरों को रखने के लिए किया जाता है। इसके अलावा इस भूतल का प्रयोग उन पशुओं के चारा रखने और ईंधन रखने के लिए भी किया जाता है।
  • स्पीतियन लोगों का खान-पान, इनके भौगोलिक परिवेश के आधार पर होता है। खान-पान का यह तरीका काफी हद तक, तिब्बती खान-पान से मिलता हुआ नजर आता है।
  • कृषि स्पीतियन लोगों के लिए व्यवसाय तो नहीं, परन्तु जीविका चलाने के लिए, एक जरिया जरूर है। स्पीतियन समाज में ज्यादातर कृषक उच्च वर्गों से ही आते है।
  • स्पीतियन लोगों को कपड़े के रंग-रोगन में भी खासी महारत हासिल है और इनके कपड़ों के रंगाई की धूम तिब्बत तक फैली है।
  • हथकरघे लगभग सभी स्पीतियन लोगों के घरों में होते हैं। ठंड के दिनों में जब घरों से निकलना मुश्किल होता है, तो इन करघों पर यह बुनाई का काम करते हैं। इनके बुने हुए सूती और उनी कपड़ों की मांग अन्य जगहों पर अच्छी-खासी मांग है।
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