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*देवकीनंदन [[कन्नौज]] के पास 'मकरंद नगर' ग्राम के रहने वाले थे।  
 
*देवकीनंदन [[कन्नौज]] के पास 'मकरंद नगर' ग्राम के रहने वाले थे।  
 
*देवकीनंदन के पिता का नाम 'सषली शुक्ल' था।  
 
*देवकीनंदन के पिता का नाम 'सषली शुक्ल' था।  
*देवकीनंदन ने संवत 1841 में 'श्रृंगार चरित्र' और 1857 'अवधूत भूषण' और 'सरफराज चंद्रिका' नामक [[रस]] और [[अलंकार]] के ग्रंथ बनाए।  
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*देवकीनंदन ने संवत 1841 में 'शृंगार चरित्र' और 1857 'अवधूत भूषण' और 'सरफराज चंद्रिका' नामक [[रस]] और [[अलंकार]] के ग्रंथ बनाए।  
 
*संवत 1843 में ये 'कुँवर सरफराज गिरि' नामक किसी धनाढय महंत के यहाँ रहे थे जहाँ इन्होंने 'सरफराज चंद्रिका' नामक अलंकार का ग्रंथ लिखा।  
 
*संवत 1843 में ये 'कुँवर सरफराज गिरि' नामक किसी धनाढय महंत के यहाँ रहे थे जहाँ इन्होंने 'सरफराज चंद्रिका' नामक अलंकार का ग्रंथ लिखा।  
 
*इसके उपरांत ये रुद्दामऊ, ज़िला हरदोई के रईस 'अवधूत सिंह' के यहाँ गए जिनके नाम पर 'अवधूत भूषण' बनाया।  
 
*इसके उपरांत ये रुद्दामऊ, ज़िला हरदोई के रईस 'अवधूत सिंह' के यहाँ गए जिनके नाम पर 'अवधूत भूषण' बनाया।  
 
*इनका एक नखशिख भी है। शिवसिंह को इनके इस नखशिख का ही पता था, दूसरे ग्रंथों का नहीं।
 
*इनका एक नखशिख भी है। शिवसिंह को इनके इस नखशिख का ही पता था, दूसरे ग्रंथों का नहीं।
*'श्रृंगार चरित्र' में रस, भाव, नायिकाभेद आदि के अतिरिक्त अलंकार भी आ गए हैं।  
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*'शृंगार चरित्र' में रस, भाव, नायिकाभेद आदि के अतिरिक्त अलंकार भी आ गए हैं।  
 
*'अवधूत भूषण'  इसी का कुछ परिष्कृत रूप है।  
 
*'अवधूत भूषण'  इसी का कुछ परिष्कृत रूप है।  
 
*इनकी [[भाषा]] मँजी हुई और भाव प्रौढ़ हैं। बुद्धि वैभव भी इनकी रचना में पाया जाता है।  
 
*इनकी [[भाषा]] मँजी हुई और भाव प्रौढ़ हैं। बुद्धि वैभव भी इनकी रचना में पाया जाता है।  

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Disamb2.jpg देवकीनन्दन एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- देवकीनन्दन (बहुविकल्पी)
  • देवकीनंदन कन्नौज के पास 'मकरंद नगर' ग्राम के रहने वाले थे।
  • देवकीनंदन के पिता का नाम 'सषली शुक्ल' था।
  • देवकीनंदन ने संवत 1841 में 'शृंगार चरित्र' और 1857 'अवधूत भूषण' और 'सरफराज चंद्रिका' नामक रस और अलंकार के ग्रंथ बनाए।
  • संवत 1843 में ये 'कुँवर सरफराज गिरि' नामक किसी धनाढय महंत के यहाँ रहे थे जहाँ इन्होंने 'सरफराज चंद्रिका' नामक अलंकार का ग्रंथ लिखा।
  • इसके उपरांत ये रुद्दामऊ, ज़िला हरदोई के रईस 'अवधूत सिंह' के यहाँ गए जिनके नाम पर 'अवधूत भूषण' बनाया।
  • इनका एक नखशिख भी है। शिवसिंह को इनके इस नखशिख का ही पता था, दूसरे ग्रंथों का नहीं।
  • 'शृंगार चरित्र' में रस, भाव, नायिकाभेद आदि के अतिरिक्त अलंकार भी आ गए हैं।
  • 'अवधूत भूषण' इसी का कुछ परिष्कृत रूप है।
  • इनकी भाषा मँजी हुई और भाव प्रौढ़ हैं। बुद्धि वैभव भी इनकी रचना में पाया जाता है।
  • कला वैचित्रय की ओर अधिक झुकी हुई होने पर भी इनकी कविता में लालित्य और माधुर्य है।

बैठी रंग रावटी में हेरत पिया की बाट,
आए न बिहारी भई निपट अधीर मैं।
देवकीनंदन कहै स्याम घटा घिरि आई,
जानि गति प्रलय की डरानी बहु, बीर मैं
सेज पै सदासिव की मूरति बनाय पूजी,
तीनि डर तीनहू की करी तदबीर मैं।
पाखन में सामरे, सुलाखन में अखैवट,
ताखन में लाखन की लिखी तसवीर मैं

मोतिन की माल तोरि चीर सब चीरि डारै,
फेरि कै न जैहौं आली, दुख बिकरारे हैं।
देवकीनंदन कहै धोखे नागछौनन के,
अलकैं प्रसून नोचि नोचि निरबारे हैं
मानि मुख चंदभाव चोंच दई अधारन,
तीनौ ये निकुंजन में एकै तार तारे हैं।
ठौर ठौर डोलत मराल मतवारे, तैसे,
मोर मतवारे त्यों चकोर मतवारे हैं




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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